Saturday, 23 June 2018

Story Of Life : अकेली

                           अकेली


एकांत कमरे में सुमन आराम कुर्सी में बैठी हुई थी, तभी सन्नाटे को phone की घंटी की आवाज़ ने भंग कर दिया।  
अमेरिका से राम खिलावन का फोन था, मेमसाब, राघव बाबा पुछवाय रही, और पइसा चाही के रही, सुमन ने इंकार कर दिया, पूछा राघव कैसा है? कब तक भारत लौटेगा?
मेमसाब! राघव बाबा एकदमे ठीक हैं, कलही तो उन्हें 1 और तरक्की मिली है, बहुते ही खुश थे। हाँ घर लौटन की तो अबही कछुह ना बोले हैं, बोलेंगे तो बताई, अच्छा प्रणाम मेमसाब।
फोन रखने के साथ ही सुमन ने T.V. खोल लिया, उसमे पुराना गाना- वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गयी....... आ रहा था।
उसे देखते देखते सुमन भी अपनी पुरानी यादों में खो गयी।
सुमन का विवाह एक धनवान परिवार में हुआ था, राजेश भी उच्च पद पर आसीन था, बस अपनी मानसिक संतुष्टि और सबके बीच अपनी साबनाने के लिए उसने भी job join कर ली थी
राघव उनका एकलौता बेटा था, पर सुमन का मन तो घर-बच्चो में लगता ही नहीं था।
राघव की देखभाल के लिए रामखिलावन को रख लिया गया था, वो भी बहुत मन से राघव का ध्यान  रखता, राघव ने बड़े प्यार से उसका नाम रामू काका रख लिया था।
राघव और रामू काका इस कदर एक दूसरे में घुलमिल गए थे, कि राघव ने भी सबसे पहला शब्द माँ या पा नहीं, का ही बोला था।
सुमन और राजेश दोनों ही अपने काम में इतने busy रहते थे, कि राघव के बचपन की शरारतें, उसका भोलापन कुछ भी वो नहीं जानते थे, जब office से छुट्टी मिलती, तो अपने social network बनाने में लग जाते।
राघव जब थोड़ा बड़ा होकर school जाने लगा, तो उसे, और बच्चों की देखादेखी अपने माँ पापा के साथ की कमी लगने लगी। वो घर पंहुच कर अपने माँ पापा को phone कर के बड़ी मासूमियत से पूछता, घर कब आएंगे तो वे बड़ी बेफिक्री से कह देते, हमें time लगेगा। जब वो जिद्द करता, कि नहीं अभी आओ तो कह देते, तुम्हारे लिए ही तो पैसा कमा रहे हैं, रामू काका हैं ना, उनसे कह दो, तुम्हें जो चाहिए। और हाँ खाना खा के सो जाना, तुम्हें स्कूल जल्दी जाना होता है ना, हम रामू काका से तुम्हारी सारी demands पूछ लेंगें
माता-पिता का साथ, लाड़-प्यार, अपनापन राघव कभी जान ही नहीं पाया।  
एक दिन राघव बुखार से तड़प रहा था........ 

क्या राघव की बीमारी से सुमन और राजेश में कोई बदलाव आया,जानिए अकेली भाग २ में