Tuesday, 20 November 2018

Poem : लाडो मेरी नाज़ों से पली

देव उत्थान आते ही सारे मांगलिक कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं।
मेरी आज की ये कविता हर उस दुल्हन को समर्पित है, जो अपने जीवन- साथी के साथ मंगल-परिणय में बंधने जा रही हैं  


लाडो मेरी नाज़ों से पली





लाडो मेरी 
नाज़ों से पली
चली रे चली
वो ससुराल चली
लाल पीली चूड़ी
साथ सोने के कंगन  
छोड़ चली
वो बाबुल का आँगन
घूँघट में मुखड़ा लगे ऐसा
बादलों के बीच
चाँद झांक रहा जैसा  
हाथों में मेंहदी
पैरों में पायल
रूप सजा ऐसा
सब हुए कायल
सिंदूर, बिंदिया की
लाली है छाई
देखो मेरी लाडो की
बारात आई
सजीली है दुल्हन
समा भी सजीला
दूल्हा भी बांका छैल-छबीला
खुशियाँ ही खुशियाँ हो
झोली में तुम्हारी
यही दुआ निकले
सदा दिल से हमारी

नवजीवन की बहुत बहुत बधाईयाँ व हार्दिक शुभकामनाएँ