Sunday, 6 January 2019

Article : ज़िंदगी और मौत(पल दो पल)


ज़िंदगी और मौत(पल दो पल)


अभी कुछ दिन, मन बहुत विचलित रहा, अभी 30 December को ही तो अपनी बुआ सास से बात की थी। वो बड़ी खुश थीं, कि कुम्भ मेले में जाएंगी। गंगा जी का कुम्भ में स्नान, वहाँ camp में रहना, ये सब सोच कर वे बेहद आनंदित हो रही थीं। मेरे बेटा अद्वय उन्हें बेहद प्रिय था, उसके लिए भी स्वेटर, मोजे बनाने की बात भी कर रहीं थीं। हम दोनों में और भी काफी अच्छी बातें हुई।
पर 1 January को भाभी का शाम को फोन आया, कि बुआ ने इस दुनिया से विदा ले ली। दो पल तो यकीन ही नहीं हुआ, ऐसा कैसे हो सकता है, 30 को ही तो बात की थी, तब तो बुआ एकदम ठीक थीं, प्रसन्न थीं, तो ऐसा कैसे हो सकता है? पर यही सच था, वो परमालीन हो गयीं थीं।
उनकी इस अकस्मात मृत्यु ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया। कि मौत और ज़िंदगी में बस पल दो पल का अंतर होता है। जो कुछ क्षण पहले आपके साथ है, वो अगले क्षण इतना दूर चला जाता है। कि ना तो आप उसे कभी देख पाते हैं, ना मिल पाते हैं, ना बात कर पाते हैं।
अक्सर देखा है, सर्दी के दिनों में बच्चों और बुजुर्गों को अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है। हम बच्चों की देखभाल में तो लग जाते हैं, पर बुजुर्गों की देखभाल के प्रति लापरवाह हो जाते हैं। अकसर यही कह देंगे, अरे इनकी तो ठंड में कुछ ज्यादा ही परेशानी बढ़ जाती है, ज्यादा ही ठंड लगती है। कुछ नहीं हुआ है, बस आदत है इनकी, कुछ ज्यादा ही परेशानी बताते हैं........ आदि ऐसी ही बातें किया करते हैं।
पर कभी सोचा है, जब हम छोटे थे, तब हमारे द्वारा कही हुई एक भी परेशानी उनके लिए चिंता का विषय हुआ करती थी। और उसे दूर करना उनका पहली priority हुआ करती थी। तब हम इतने insensitive क्यों हो जाते हैं? हम उनके प्रति अपने फर्ज को पूरा करने से क्यों हिचकते हैं?
अपने माँ- पापा, सास- ससुर की सेवा से हिचकिए नहीं, उनकी सेवा से जो संतोष व सुख मिलता है, उसके बराबर कुछ भी ही नहीं है। ईश्वर को प्रसन्न करने का इससे आसान तरीका भी कुछ नहीं है।
तो सर्दी में अपने बच्चों के साथ-साथ बुजुर्गों की देखभाल पूर्ण रूप से करिए, वे नाटक नहीं करते हैं, ना ही उनकी व्यर्थ की परेशानी बताने की आदत होती है। हम भी जब उस उम्र में पहुंचेंगे, शायद इससे भी अधिक कमजोर अवस्था में हों। तब हमें भान होगा, कि वे सच कहा करते थे। पर तब सिवाय अफसोस के और कुछ नहीं बचेगा? पर अगर पूर्ण सेवा की होगी, तो अफसोस नहीं संतोष होगा कि, जब उन्हें आपकी आवश्यकता थी, आपने उनकी सेवा की थी। और सच मानिए, उनकी उस पल में की गयी सेवा से प्रसन्न हो कर ईश्वर आपको सदैव सुख ही प्रदान करेगा।
जब भी आपको सेवा करने का अवसर मिले, उससे भागिए नहीं, अपितु उस पल में सेवा करके आशीर्वाद प्राप्त करें। क्योंकि मृत्यु तो कभी भी आ सकती है। बाद में आपको अफसोस ना रहे कि हमने अपने बुज़र्गों की सुनी नहीं।
साथ ही आपके द्वारा की गयी सेवा बच्चे भी देखेंगे, तो उनमें भी ये संस्कार आएंगे, कि बुज़ुर्गों की सेवा करनी चाहिए। और जिस तरह आपके बुज़र्ग सुख पूर्वक रहे हैं, वे आपको भी वैसे ही रखेंगे।क्योंकि बच्चे तो जो देखते हैं, वही सीखते हैं।
अब ये आपकी इच्छा है, कि आप संतोष और सुख चाहते हैं, या ज़िंदगी भर का अफसोस।
सर्दी बहुत पड़ रही है, अपने बुज़ुर्गों का ध्यान रखें, व उनका अधिक दिन तक सानिध्य, प्यार और आशीर्वाद पाएँ।