Monday, 14 January 2019

Poem : त्योहार की बहार


त्योहार की बहार


कहीं संक्रांत, कहीं लोहड़ी
कहीं पोंगल की बहार है
भारत के हर क्षेत्र में
मन रहे त्योहार हैं
फसलों की हर ओर
हो रही कटाई है
समृद्धि और संपन्नता 
चहुं ओर छाई है




मकर में हो रहा, 
सूर्य का प्रवेश है
उल्लास और उत्साह का
दिलों में समावेश है


नीले-नीले अम्बर पर
रंगीनी छाई है     
ऊंची-ऊंची सबने 
पतंगे उड़ाई है

पॉपकोर्न, रेवड़ी,तिल-गुड़ की 
सौगात है
खिचड़ी में पिघलते घी की
क्या बात है





ढोल की ताल पर
थिरक रहा तन है
खुशियों की आस में
झूम रहा मन है

आओ मनाए त्योहार 
संग संग 
भारत को हम रंग दे
एक रंग 
शरद ऋतु में रंगों का,
निखार है
हर ओर दिख रही
त्योहार की बहार है