Thursday, 28 March 2019

Story Of Life : लालसा


लालसा


आज अपने दोस्तों का साथ बहुत दिनों के बाद मिला था। पहले तो हम बहुत सारे घंटे साथ बिताया करते थे। पहले स्कूल में, फिर tuition, और उस के बाद, कुछ घंटे मस्ती के। कभी चाय की दुकान पर या कभी चाट- पकौड़ी के ठेलों पर। वो खींचते थे, एक दूसरे को, कि आज भी याद आ जाता है, तो चेहरे पर एक मंद मुस्कान छोड़ ही जाता है। और जो हम घंटों खेला करते थे, उसको तो जोड़ा ही नहीं जा सकता। क्या मस्ती भरे दिन थे।

फिर सारे set हो गए बड़ी बड़ी post पर। और उसके बाद शादी, family। बस फिर क्या था, सारा समय ना जाने कहाँ फुर्र हो गया। दोस्तों के लिए तो क्या अपने शौक के लिए भी time नहीं मिलता है। पहले office के सौ काम, फिर घर के 36 झमेले। इन से फुर्सत मिलते- मिलते पूरा पस्त।

पर आज रजत का सुबह फोन आया। यार, अनिल London से एक हफ्ते के लिए आ रहा है, उससे मिलने का Sunday का plan है, hotel rivera में। हम सभी 10 दोस्तों का मिलने का plan है। इस समय नरेंद, और निखिल भी पुणे, और केरल से आए हुए हैं।
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देख मना मत करना, तू भी आ जाएगा तो अपनी क्रिकेट की team इकठ्ठा हो जाएगी। रजत की ऐसी बात सुन कर मैं मना नहीं कर पाया। सच बहुत दिनों बाद ऐसा बढ़िया मौका हाथ आया था।

पर अब रचना से बात करनी थी, वो कई दिनों से मुझसे अपने लिए diamond का set लेने को बोल रही थी। पर काम के busy schedule के कारण मैं उसे एक महीने से टाल रहा था। पर अभी पिछले हफ्ते ही इस Sunday में चलने की बात की थी।

अब समझ नहीं आ रहा था, आखिर कैसे उससे कहूँ, कि इस Sunday भी नहीं जाऊँगा। क्योंकि दोस्तों के साथ समय बिताना है। ladies को वैसे भी गहनों से बहुत लगाव होता है, फिर वो set उसे अपने भाई की शादी में पहनना था। महिना भर बाद तो मैं उसे दिलाने का दिन निकाल पाया था। 

और साथ ही problem ये भी थी कि अगर मैं इस Sunday को नहीं जाता तो, उसे शादी में पहनने के लिए set नहीं ही दिला पाता। क्योंकि मेरे next दो Sunday tour थे, फिर शादी की date आ जानी थी।

मैं अभी इसी उधेड़बुन मैं ही था, कि सामने से रचना आ गयी। मुझे यूं सोच में डूबा देखकर वो पूछने लगी, क्या हुआ, सुमित? क्या सोच रहे हो? कोई problem है क्या? मैंने सच बोलना ही उचित समझा। और रचना को रजत से फोन पर हुई सारी बात बता दी।

मुझे पूरी उम्मीद थी, सुन कर रचना गुस्सा हो जाएगी। पर नहीं! ऐसा कुछ नहीं हुआ......

ऐसा क्या हुआ, कि रचना गुस्सा नहीं हुई, जानते हैं लालसा (भाग- 2) में