Monday, 22 April 2019

Poem : Happy earth day


Happy earth day


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आज पुकारा है धरा ने
अपने सभी सपूतों को
क्या सुन सकते हो
करुण व्यथा तुम
मेरे मन के, भीतर की
है नीर नहीं, अब कुछ बाकी
अंदर, बाहर सूखी हूँ
सोच रहीं हूँ मैं बैठी  
कैसे हरियाली को सीचूंगी
भूख मिटाने अपने, बच्चों की
कब तक अपने को, खीचूंगी
तुम नर से, दानव बन बैठे
बना दिया मुझको बंजर
हर वृक्ष उखाड़ कर
तुमने बना लिए, कितने घर
गर कंकरीट की, दुनिया से  
तुम अपना नाता जोड़ोगे
तब नहीं रहेगी, प्राण-वायु
जीवन से नाता तोड़ोगे
मुझको अपनी परवाह नहीं
पर व्यथा तेरी, नहीं सह सकती  
देख तेरी बर्बादी का मंजर
अब मैं चुप, नहीं रह सकती
वृक्ष लगा, नीर बचा
यही जीवन की धारा है
जीवन अशेष पाने का  
यही लक्ष्य सारा है