Tuesday, 25 June 2019

Article : आधुनिकता (मज़ा या सज़ा)


आधुनिकता (मज़ा या सज़ा)


हम पल-पल, हर पल अंधाधुंध से आधुनिकता की ओर दौड़े जा रहे हैं,बिना इस बात की परवाह करे, कि जिस ओर हम बढ़े जा रहे हैं, वहाँ जाने से मज़ा मिलेगा? या कहीं सज़ा तो नहीं मिल जाएगी?

आप कहेंगे, कैसी बात कर रहीं हैं, आधुनिकता सदैव सुख ही प्रदान करती है।

तो चलिये, इस विषय में भी थोड़ी बात कर लेते हैं।



पहले ज़मीन पर बैठ कर मिट्टी के बर्तन में चूल्हे में खाना बनता था, खाना बहुत स्वादिष्ट बनता था। फिर खाना खाने के लिए भी मिट्टी के बर्तन और पत्तल रहा करती थी, सभी स्वस्थ भी रहते थे। हाँ पर गृहणी को चूल्हे पर मिट्टी के बर्तन में खाना बनने में घंटों लगते थे, और साथ ही धुएँ से भी उन्हें बहुत problem होती थी।

फिर आई gas, धुएँ से मुक्ति मिल गयी। मिट्टी के बर्तन की जगह भी metal के बर्तनों ने ले ली, काम जल्दी होने लगा। पहले लोहा आया, फिर पीतल उसके बाद एल्युमिनियम, स्टील, काँच और फिर आया plastic। 

नयी नयी चीज़ें बढ़ती गयीं, काम आसान और जल्दी होता गया, कहीं कहीं gas की जगह microwave ने भी ले ली। बैठने की जगह, खड़े होकर खाना बनने लगा। 

पर इसके साथ ही हमें अपने स्वाद और स्वास्थ्य के साथ समझौता करना पड़ा।

Plastic, aluminium, steel का जब बहुतायत से उपयोग होने 
लगा, तो scientist कहने लगे, इनके उपयोग से cancer जैसी भयंकर बीमारी हो सकती है। microwave की waves बहुत harmful है।

Earthen pot, पत्तल, glass को ही use में लाएँ, ये natural है।cooking and eating के लिए best हैं।

मतलब जहाँ से चलना शुरू हुए थे, फिर वहीं।

नहीं, बिल्कुल भी नहीं, पहले earthen pot इंडिया की धरोहर थी। 
अब वही बर्तन हम विदेशों से बहुत अधिक कीमत चुका कर खरीदेंगे और कहेंगे, हम तो सब organic use करते हैं।

तो मुझे तो यही समझ नहीं आता है, कि आधुनिकता सुख प्रदान करती है या दुख और कष्ट। उससे मज़ा मिलता है या सज़ा?

आधुनिकता की ओर बढ़ते हुए एक बार सोचिएगा जरूर!