Friday, 8 November 2019

Poem : सती वृंदा से तुलसी तक

सती वृंदा के तुलसी बनने की परम पवित्र कथा को काव्यबद्ध करने का प्रयास किया है
आप सभी को देवउठान एकादशी व तुलसी विवाह की हार्दिक शुभकामनाएँ

सती वृंदा से तुलसी  तक 




नाम था वृंदा,
असुर जलंधर की रानी।
पति था राक्षस पर,
वृंदा थी सती महारानी।।

वो भक्त श्री हरि की,
पति क्रूर अभिमानी।
पति ही सर्वस्व उनके,
सती वृंदा की है यह कहानी।।

युद्ध हुआ राक्षसों और देवों का,
कोई जलंधर को हरा ना पाए।
सती के व्रत, तप, प्रभाव से,
जलंधर युद्ध में विजयी हो जाए।।

हर युक्ति विफल हुई,
देवों की जलंधर पर ।
हाथ जोड़ कर आए सभी,
श्री हरि के द्वार पर।।

प्रभू इस कठिन विपदा से,
अब आप ही हमें बचाएं।
त्राहि माम, त्राहि माम,
सभी देव चिल्लाएं।।

वृंदा मेरी परम भक्त,
मैं क्या करूं उपचार?
आप ही करें प्रभू कुछ,
हमारे सारे वार बेकार।।

धर्म की अधर्म पर जीत हो,
प्रभू यह काज आप ही कर पाएं।
छद्म वेश धर जलंधर का,
प्रभू वृंदा के सम्मुख आए।।


प्रभू को पति जान कर,
सती वृंदा ने तप तोड़ा।
उसी क्षण देवों ने वार किया,
जलंधर ने प्राण को छोड़ा।।

सती धर्म भ्रष्ट हुआ तो,
वृंदा कुपित हुई अपार।
प्रभू हों जाए पत्थर के,
यह श्राप करें स्वीकार।।

वृंदा अब तुलसी हुई,
श्री हरि, शालिग्राम।
एकादशी दिन विवाह करें,
रखें श्राप का मान।।


भक्ति, तप हो, सती वृंदा जैसी,
तो प्रभू स्वयं प्रकट हो जाएँ।
संग रखें प्रभू साथ सदा,
श्री हरि संग, तुलसी पूजी जाएँ।।


देवउठान एकादशी व तुलसी विवाह से सम्बंधित सभी जानकारी के लिए यह लेख पढ़ें 

Article : देवउठनी एकादशी व तुलसी विवाह