Thursday, 19 December 2019

Story Of Life : पड़ाव (भाग-3)

पड़ाव (भाग-1)... और
पड़ाव (भाग-2)... के आगे...
पड़ाव (भाग-3) 

जब बहू मुझे parlour ले गयीतब मुझे समझ नहीं आयासारी जवानी तो बिना parlour के निकाल दीतो आज क्यों? खैर बहू की इच्छा के आगे चुप रही। 

जिस दिन anniversary थीमैं पूजा-पाठ की तैयारी में जुट गयीऔर इंतज़ार करने लगी कि पंडित जी आने वाले होंगे। 

पर मेरी सोच के विपरीत कोई पंडित नहीं आए। मन खिन्न हो गयासास थींतो कम से कम कथा हो जाती थीआज तो वो भी नहीं।


शाम को बहू मुझे फिर parlour ले गयीजहाँ उसने मुझे दुल्हन सा 
सजा दिया। कुछ समझ नहीं आ रहा थाआखिर इतनी साज-सज्जा क्यों?


फिर मैं और बहू उस होटल में पहुँचेजहाँ मेरे पतिबेटा, बेटी, दामाद और बहुत सारे मेहमान थेवो भी जिनकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।



सब उससे भी अच्छा थाजैसा मैंने पहली anniversary में कल्पना की थी।बहुत बड़ा cake, बिल्कुल फिल्मी set जैसी decoration, और सब से मिल रहा VIP treatment, बहुत सारी variety वाला menu, सब कुछ मेरी कल्पना से परेमानों मैं सपनों की दुनिया में पहुँच गईं हूँकुछ पल तो मैं सपनों की दुनिया में ही रही। 

पर जब धरातल में लौटीतो सोचने लगीऐसी 25 anniversary तो नहीं सोची थी मैंने।


पर बच्चों और पति का जोश और मुझे खुश करने की चाह ने चेहरे पर खुशी बरकरार रखी।


घर पहुँचीतो हमारा कमरा तो बेटे-बहू के कमरे से भी ज्यादा सुन्दर सजा था। ऐसा तो तब भी ना सजा थाजब मैं नयी नवेली आई थी। बेटे और बेटी ने कान में धीरे से कहाये सब बहू ने सजाया है।


कब आ कर उसने कियामुझे तो एहसास ही नहीं हुआहाँ याद आयाहमे खाने की table में बैठाकर हम लोगों की ज़िम्मेदारी बेटी को सौंप कर वो आधे घंटे के लिए दिखी नहीं थी। शायद तब यहीं आई होगी।


बच्चों के सामने कमरा सजा देखकर मुझे इतनी लाज आईकि बिना किसी के कहेमैं अन्दर चली गयी।


पति जब अन्दर आएतो...

कहानी का अंतिम भाग पढ़ें पड़ाव(भाग-4) में...