Friday, 10 April 2020

Story of life : छटपटाहट

छटपटाहट


जब से lockdown हुआ है, अजीब सी छटपटाहट रहने लगी है।

आखिर और कितने दिन यूं ही गुजारने होंगे?

पति, बच्चे घर में ही दिन रात रहते हैं। चहल-पहल,शोर रहता घर में.......

खाने पीने की limited चीजें हैं, उनसे ही सोचो कि कैसे क्या बनाएं?

कामवाली बाई को हटा तो दिया, पर दिन रात काम कर कर के शरीर टूट रहा है।

ना जाने कितने दिनों से बाहर नहीं निकले, 
ना गपबाजी और समौसे, गोल गप्पे तो बस सपने...... 

हाँ, दिन-रात बस खाने और सोने से कुछ लोग गोलगप्पे जरुर बन गए हैं।

घर की घंटी दिन में सौ बार बजती थी।अब तो ना बजे हुए कुछ दिन ही हुए थे, पर अरसा बीत गया हो, ऐसा लग रहा था।

पर बगल वाले घर में हर तीन दिन में घंटी जरुर बजती थी, दरवाजे के खुलने की आवाज़ भी आती थी, और लोगों के बाहर निकलने की भी।
स्वादिष्ट खाने की खुशबू भी आती थी, नहीं आती थी तो बस कुछ बोलने की।

आज भी ऐसा ही हुआ था, कुछ दिन पहले ही पड़ोसी shift हुए थे, तो वो कौन हैं? कैसे हैं? क्या करते हैं?

इस मुए lockdown ने यह भी तो नहीं जानने दिया था।

मन में आया कि आज तो मैं भी दरवाजा खोल कर देखूंगी, आखिर माजरा क्या है?

घंटी बजने के साथ मैंने भी दरवाजे को धीरे से खोला कि एक झीर सी बन जाए, जिससे मुझे तो बाहर का दिखे, पर वो लोग मुझे ना देख पाएं।

मन में आज अलग सी संतुष्टि थी, आज के दिन यह सब देखूंगी, तो कुछ तो अलग जाएगा, रोज़ - रोज़ वही ढर्रे की जिंदगी।

तभी देखा, उस घर के बाहर, थका हुआ सा एक आदमी घर से दूर बैठा था, घर का मालिक सा प्रतीत हो रहा था, उसकी पत्नी ने स्वादिष्ट खाने से सजी थाली रखी और वापस दरवाजे पर खड़ी हो गई, उसके साथ उसकी पांच साल की बच्ची भी खड़ी थी, दोनों के अनवरत अश्रु बह रहे थे।

उस इंसान ने खाना उठाया, और फिर दूर बैठ गया, पर इतने स्वादिष्ट खाने को वो स्वाद से नहीं खा रहा था, उसका ध्यान तो बस अपनी बीबी और बेटी पर था।

उसकी थकी बोझल आंखें घर को यूं निहार रही थीं, मानो पूछ रहीं हों, कब आऊंगा मैं घर?

उसका खाना ख़त्म हुआ, तब उसके चेहरे की थकान दूर हो चुकी थी, उसकी निराशा जोश से भर चुकी थी, मानों पुनः तत्पर था, अपने कर्तव्यों के लिए।

वो चला गया, और उसके घर में सन्नाटा पसरा रहा।

थोड़ी देर बाद मैंने भी दरवाजे को बंद कर दिया।

पर आज दरवाजा मेरे भीतर का खुल गया, कि उस घर का मालिक तीन दिन में आता है, खतरों में है, हमें खतरे से बचाने के लिए....
अपने घर- परिवार को छोड़कर दिन-रात बस हमें ठीक करने की चिंता में, 

और एक हम हैं, सबके साथ हैं, घर में हैं, सब सुरक्षित हैं, limited ही सही‌ पर सामान है तो, फिर भी, थकान है, बैचेनी है, छटपटाहट है।

लोग अलग अलग बात बनाकर बाहर निकल कर, lockdown में जमघट लगा कर इसे बर्बाद कर रहे हैं।

कभी उनकी सोची है, जो घर नहीं आ रहे हैं, मजबूर हैं, घर और परिवार को दूर से देखकर संतुष्ट होने के लिए। अपने परिवार से भी distance बनाएं हैं।

आज से मैं भी अपने कर्तव्य को निष्ठा से निभाऊंगी, घर में रह कर lockdown के हर नियम का पालन करुंगी, वो भी खुशी-खुशी, मैं कितनी खुश नसीब हूँ कि घर में हूँ, पूरे परिवार के साथ, सब सुरक्षित हैं।

पर आज मुझे अपना कर्तव्य निष्ठा से निभाना है, उनके लिए भी जो हमारी सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ बनाए रखने के लिए दिन-रात लगे हैं, जिससे वो भी सुरक्षित लौट सकें अपने घर, अपने परिवार के पास।

आज मैं नये जोश से भरी थी, मुझे अब थकान नहीं हो रही थी, ना छटपटाहट थी बाहर जाने की।
बस एक आस थी, जल्दी वो दिन आएगा जब हम बाहर निकलेंगे और वो अपने घर आएंगे, अपने परिवार के पास, जो कब से घर के अंदर नहीं आए।

आप भी करेंगे ना, अपने परिवार के साथ उनके लिए.......