Tuesday, 14 December 2021

Story of Life : ज़िन्दगी बड़े शहरों की (भाग -3)

अब तक आपने पढ़ा, 

ज़िन्दगी बड़े शहरों की  (भाग -1)  और

ज़िन्दगी बड़े शहरों की  (भाग -2)...

अब आगे....

ज़िन्दगी बड़े शहरों की  (भाग -3)



सबको छोड़कर आना, फिर work load बढ़ना। इससे राघव और गीतिका दोनों चिड़चिड़े रहने लगे थे। वो जब भी आपस में बात करते झगड़ते ज्यादा थे।

ऐसे ही एक महीना बीत गया। Sunday की एक रात band बाजे की आवाज आ रही थी, उसे सुनकर गीतिका उत्साह से भर गई, अपनी खिड़की से झांक झांक कर देख रही थी कि दूल्हा कैसा है...

 फिर मायूस होकर बोली, हमारी जिंदगी कितनी नीरस हो गई है, ना कोई हमें जन्मदिन में बुलाता है, ना ही कोई विवाह बारात में शामिल करता है।

इन खुशी भरे माहौल की तो छोड़ो, ना ही कोई हमें अपने घर बुलाता है ना हम किसी को बुलाते हैं।

दिन भर काम करते रहो, फिर भी खर्चे पूरे नहीं पड़ते हैं। हमारे पास एक-दूसरे के लिए भी समय नहीं है। कहीं घूमने-फिरने के लिए हम साथ हैं ही नहीं! हम चाहकर भी बच्चे को अपनी जिंदगी में लाने की नहीं सोच सकते हैं...

हम जी क्यों रहे हैं, बस दौड़ते रहने के लिए?

क्या इसी बेरंग जिंदगी की चाह थी तुम्हें? 

क्या यही है बड़े शहर की जिंदगी? 

राघव मैं थक गई हूँ, यहाँ ना हमारे पास एक दूसरे के लिए समय है, ना कोई अड़ोसी-पड़ोसी हमारा अपना है। ना कोई सुख में है ना दुःख में। ना हंसी, ना ख़ुशी, ना कोई उमंग।

बस दौड़ते रहो, दौड़ते रहो...

और अंत क्या, खर्चे तब भी पूरे नहीं होंगे, हाथ आएगी केवल हताशा...

मुझे अपने गांव वापस जाना है, मुझे फिर से सुकून चाहिए। मुझे अपना बच्चा चाहिए। मुझे उसका बचपन जीना है। बस यह दे दो मुझे, फिर कभी कुछ नहीं मांगूंगी।

राघव बोला, तुम्हें यह क्यों नहीं दिखता, शहर कितना advance है, हर सुख-सुविधा है यहाँ। क्या रखा है गांव में?  

फिर गांव किस मुंह से जाऊंगा? लोग सिर्फ मज़ाक ही उड़ाएंगे कि बड़ा सीना फुलाकर गया था।

गीतिका ने गर्व से ओत-प्रोत होकर कहा, गांव में जिंदगी है! 

तुम्हें advance और सुख-सुविधा दिखती है, मन का सुकून नहीं...

पिता जी ने यहांँ आने के पहले ही बोल दिया था, जब आना हो आ जाना। कोई कुछ नहीं बोलेगा और अगर कोई कुछ बोलेगा तो कह देना कि मेरी सबके बिना तबियत बिगड़ गई थी।

मुझे शहर की हवा रास नहीं आई...

दो क्षण तो राघव कुछ नहीं बोला...

आगे पढ़े, आखिर अंक, ज़िन्दगी बड़े शहरों की (भाग -4) में