Saturday, 4 March 2023

Article : होलिका दहन की पूजा का मुहूर्त

होलिका दहन की पूजा का मुहूर्त


होली, रंगों की बहार, बच्चों से बुजुर्गों तक सबका त्यौहार... 

होली का पावन त्यौहार, होलिका दहन की पूजा से प्रारंभ होता है। 

जहां होलिका दहन किया जाता है, पहले उस जगह की सफाई की जाती है, फिर लकड़ियों से ऊंची सी होलिका तैयार की जाती है। जिसे गोबर के उपलों की माला, कपूर आदि से सजाया जाता है। फिर शुभ मुहूर्त में होलिका दहन की पूजा की जाती है।

होलिका दहन की पूजा प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा में की जाती है। लेकिन इस वर्ष यह पूर्णिमा दो दिन है, 6 और 7 तारीख को। जब पूर्णिमा दो दिन है, तो होलिका दहन किस दिन किया जाना शुभ है, यह एक प्रश्न है?

इस प्रश्न का उत्तर उन लोगों के लिए और आवश्यक है, जिनके घर में बहुत सारे होली के पकवान बनाए जाते हैं, क्योंकि वो उन सब का कुछ हिस्सा, होलिका दहन की पूजा में अर्पित करते हैं। फिर वहां चढ़ाने के बाद, कुछ भाग लाकर घर में रखे पकवान में मिला देते हैं, जिससे सारे पकवान प्रसाद बन जाते हैं। अतः गुझिया, मठरी, चिप्स, पापड़, आदि पकवान होलिका दहन से पहले बन जाने चाहिए।

तो आप सभी, जो यह जानना चाहते हैं कि इस वर्ष होलिका दहन की पूजा का मुहूर्त कब है? हम आज उसे ही share कर रहे हैं। 

6 या 7 में आखिर कौन सा दिन अच्छा है, उसके पहले यह जान लेते हैं कि होलिका दहन की पूजा क्यों करते हैं?


भक्त प्रहलाद की रक्षा-

हम बचपन से ही यह सुनते आ रहे हैं कि भक्त प्रहलाद की बुआ होलिका, उसे गोद में लेकर, जलती हुई लकड़ियों की सेज में बैठ गई थी, जिससे भक्त प्रहलाद आग में भस्म किया जा सके।

होलिका को यह वरदान मिला था कि वो यदि अग्नि में प्रवेश भी कर ले, तो उसका बाल भी बांका नहीं होगा...

पर चंद मिनटों में ही होलिका स्वयं भस्म हो गई थी और विष्णु जी का अनन्य भक्त प्रहलाद पूर्णतः सुरक्षित अग्नि से बाहर आ गया था।

तब से असत्य पर सत्य की जीत और भक्तों पर ईश्वर की कृपा के रूप में होली पर्व का आरंभ, होलिका दहन से किया जाता है।

पर इस के साथ ही एक और तथ्य है, जिसके कारण हम होलिका दहन करते हैं और वो है कि होली को सतयुग में सर्वाधिक चमत्कारिक दिनों में से एक माना जाता है। यह दिन सृष्टि को अपने तेज से भस्म करने की शक्ति रखने वाले अग्निदेव की आराधना और उनके शीतलता के गुणों को भी देखे जाने के दिन के रूप में याद किया जाता है। 

भारत वर्ष में, सभी देवी-देवताओं के पूजन के साथ जीवन व्यतीत किया जाता है। हमारे व्रत त्यौहार पूजा पाठ सभी इनके ही चारों ओर केन्द्रित रहते है।

वर्ष के आरंभ में संक्रांति पर्व में सूर्य देव की, वैसे ही होली में अग्निदेव की पूजा की जाती है।

अग्निदेव की पूजा और उनसे आशीर्वाद पाने के पर्वों में होलिकोत्सव पर्व श्रेष्ठतम है। 

भगवान विष्णु के अनन्य रूपों में से एकरूप अग्निदेव का भी है अतः इस दिन होलिका दहन के समय अग्नि पूजा का सर्वाधिक महत्व है।

होली भक्ति पर आए संकट के निवारण का दिन है, इस दिन होलिका दहन से पहले अग्निदेव की पूजा का विधान है। भगवान अग्नि पंचतत्वों में प्रमुख है जो सभी जीवात्माओं के शरीर में अग्नि तत्व के रूप में विद्यमान रहते हुए देह की क्रिया शीलता की प्राणांतपर्यंत रक्षा करते हैं।

होलिका दहन की पूजा का मुहूर्त-

होलिका दहन पूर्णिमा में होता है और पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 06 मार्च को शाम 04 बजकर 17 मिनट पर होगी और इसका समापन 07 मार्च को शाम 06 बजकर 09 मिनट पर होगी।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 07 मार्च, मंगलवार को शाम 06 बजकर 24 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक रहेगा।

इस बार पूर्णिमा के साथ ही भद्रा भी लगी है, जिसका समय इस प्रकार है...

भद्रा काल का समय 06 मार्च को शाम 04 बजकर 48 मिनट पर शुरू होगा और 07 मार्च को सुबह 05 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगा।

अब जानते हैं 7 मार्च अधिक शुभ क्यों है?

उसका एक कारण है, 6 मार्च को पूर्णिमा शाम को 04 बजकर 17 मिनट से आरंभ होगी, जबकि 7 मार्च को पूर्णिमा, प्रातः काल से प्रारंभ होकर शाम तक है, अतः 7 मार्च को उदयातिथि है। और यदि किसी भी व्रत त्यौहार की तिथि दो दिन होती हैं तो मान्यता उदयातिथि को देते हैं। पर इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि यदि कोई पूजा, व्रत त्यौहार रात्रि के है तो मूहर्त काल शाम और रात्रि तक रहे।

दूसरा बड़ा कारण 6 मार्च को भद्रा भी लगी हुई है, और उससे क्या होता है, वो भी जान लेते हैं।

हमारे सभी धर्मग्रंथों में होलिका दहन के लिए विधि-विधान के संबंध में एक सी बातें कही गई हैं। जैसे अग्नि प्रज्ज्वलन के समय भद्रा बीत चुकी हों, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि हो, तो यह अवधि सर्वोत्तम मानी गई है। यदि भद्रा रहित प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्यरात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। परन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदापि नहीं करना चाहिए। कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष और भद्रा पूंछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिए। 

इस तरह से देखने से पता चलता है कि 7 मार्च को भद्रा प्रातः में ही समाप्त हो जाएगी। तो जब भद्रा रहित काल मिल रहा है तो उसी में होलिका दहन करें।

यही सब कारण हैं कि 7 मार्च को होलिका दहन का मुहूर्त शुभ है। 

अब आप भी बिना किसी संशय के होलिका दहन की पूजा करें और श्रीहरि व अग्निदेव का आशीर्वाद प्राप्त करें 🙏🏻

Disclaimer : बहुत से authentic sources से information collecte कर के निकाले गए निष्कर्ष को ही आप लोगों के साथ साझा कर रहे हैं।

होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं 💐🎉 🙏🏻