Thursday, 25 May 2023

Short Story : बहुमूल्य रत्न

 बहुमूल्य रत्न 




बहुत पुरानी बात है, एक सौदागर था विक्रम, जिसे पूरी दुनिया से नायाब चीजें एकत्रित करने का शौक था।

उसके खजाने में एक से एक नायाब रत्न थे। तिजोरियों में सोने चांदी का अंबार लगा हुआ था।  उसके अस्तबल में एक से बढ़कर एक घोड़े, ऊंट और गाय थी। बहुत से गोदाम मेवा, अनाज, फल, सब्जियों से भरे हुए थे। 

देखा जाए तो वो बस नाम का ही सौदागर था, वरना उसकी धन-दौलत, किसी बादशाह से कम नहीं थी।

पर इतना सब होने के बाद भी जब भी वो कोई सौदा करता था, तो बहुत तोल-मोल कर के, एक नये पैसे की भी कमी उसे बर्दाश्त नहीं थी। इसलिए ही सब उसे उसके नाम से कम और सौदागर नाम से ज्यादा जानते थे।

एक बार की बात है, वो एक पशु मेले में पहुंचा। वहां उसे एक ऊंचे कद का आकर्षक सा अरबी घोड़ा दिखाई दिया।

वो घोड़ा, लंबा, ऊंचा, हट्टा-कट्टा, तगड़ा, काले रंग का चिकना घोड़ा था। धूप की किरण, उस पर कुछ इस तरह से पड़ रही थी कि, उसके अलावा मेलें में कोई जानवर दिख ही नहीं रहा था।

सौदागर भी अपने को रोक नहीं पाया और घोड़े के मालिक के पास पहुंच गया। 

उसने घोड़े के मालिक मंगलू से उस घोड़े के दाम पूछे - मंगलू ने बहुत गर्व से अपने घोड़े के बहुत ऊंचे दाम बताएं।

सौदागर ने कुछ पल सोचा, फिर बोला, तुम ज़्यादा ही उम्मीद नहीं कर रहे हो? सही सही बताओ..

मंगलू, उसी गर्वीली आवाज़ में बोला, साहेब दाम तो कम ही बताया है, वरना आप को इतने में, बादल को कोई नहीं देगा। 

अच्छा, इसमें ऐसा भी क्या है?

साहेब, यह हमारी जान है, हम आप को गारंटी दे सकते हैं इसकी, पसंद नहीं आए तो हम से दुगने पैसे ले जाना।

विक्रम ने घोड़ा खरीद लिया। मंगलू, अच्छे दाम में घोड़ा बेच कर खुश था और विक्रम बहुत ही बेहतरीन घोड़ा खरीद कर खुश था।

घर पहुंच कर विक्रम ने अपने नौकर हरिया से कहा, घोड़े की काठी बदल कर, मखमली काठी लगा दो, फिर इसे अस्तबल में ले जाकर चने खिला देना। 

हरिया बोला- साहब,आप घोड़ा बहुत बढ़िया लाए हैं, मंगलू से लिया है क्या?

हाँ, विक्रम ने सिर हिला दिया। 

अच्छा, उसके पास बहुत अच्छे घोड़े हैं और यह कहकर हरिया, घोड़े की काठी बदलने लगा।

जैसे ही उसने काठी बदलने के लिए पुरानी काठी निकाली, तो काठी के साथ एक थैली भी गिर गई और उसमें से बहुमूल्य रत्न बिखर गए। 

उन्हें लेकर हरिया, सौदागर के पास गया और थैली के विषय में बताया।

सौदागर बोला, जाओ बादल को ले आओ, मैं अभी मंगलू को उसकी थैली दे आऊं। 

हरिया बोला, क्या साहब? जब घोड़ा आपका तो थैली भी आपकी, कौन किसी को पता चलेगा, वैसे भी मंगलू ने कौन कम पैसों में इसे बेचा होगा... 

(हरिया, मंगलू के गांव का ही था और अपने पास अच्छे घोड़े होने के कारण वो सबसे बहुत अकड़ कर बात करत  था। जिसके कारण हरिया को मंगलू एक आंख ना भाता था )

हीं हरिया, मैंने सिर्फ घोड़ा खरीदा है यह रत्न नहीं, फिर कैसे वो मेरे हुए? मैं अभी इन्हें वापस कर के आता हूं। 

हरिया ने अनमने मन से थैली पकड़ा दी।

विक्रम उल्टे पांव, मेले में लौट गया। 

विक्रम को आया देखकर, मंगलू सोच में पड़ गया, कि ना जाने बादल ने क्या किया? जो इसे वापस करने आ गये... और बड़ी परेशानी उसकी यह थी कि वो दुगने पैसे कहां से लाएगा?

क्या हुआ साहेब? बादल पसंद नहीं आया?

अरे नहीं मंगलू, तुमने सही कहा था, बादल सच में बहुत अच्छा है, मुझे बहुत पसंद आया...

फिर! फिर क्या हुआ, मंगलू ने असमंजस में पड़ कर पूछा...

तुमने बादल की काठी में यह थैली रखी थी, वही वापस लौटाने आया था...

मंगलू के थैली देखकर, खुशी के आंसू निकल आए, उसने विक्रम से कहा, साहेब आप धन्य हो, जो मेरे रत्न लौटाने आ गए।

फिर वो बोला, आप, मेरे इतने सारे रत्न वापस करने आए हैं, मैं आपको धन्यवाद के रूप में दो रत्न देना चाहता हूं, कृपया अपने पसंद का कोई दो रत्न ले लीजिए।

विक्रम मना करता रहा और मंगलू देने का आग्रह करता रहता।

बहुत ना-नुकुर के बाद विक्रम ने मंगलू से सकुचाते हुए कहा, मैंने आने से पहले ही दो बहुमूल्य रत्न अपने पास रख लिए थे।

सुनकर मंगलू, सकपका गया,उसने पूरी थैली पलट दी‌ और उसको अच्छे से देखने लगा, फिर बोला सब कुछ तो है, तो आप ने ऐसे कौन से दो बहुमूल्य रत्न ले लिए?

अपनी ईमानदारी और अपना स्वाभिमान...

मंगलू ने विक्रम के पैर छुए और कहा, आपने आज मुझे सबसे बहुमूल्य रत्न के विषय में बता दिया, आप सचमुच सबसे बड़े सौदागर हो...

विक्रम ने घर आकर, हरिया को दस सोने की अशर्फियां दीं और कहा कि मेरे पास तो अथाह है, तब मैंने ईमानदारी और स्वाभिमान रखा। पर तुम्हारे पास, उतना नहीं है, तुम मुझे बिना बताए, वो थैली रख सकते थे, पर तुमने वो थैली मुझे दे दी।

हरिया बोला, साहब कहते हैं कि जैसा अन्न खाओ, वैसी ही बुद्धि हो जाती है। तो आप का दिया अन्न खाते हैं तो आप के साथ गलत कैसे कर सकते थे। ना वो घोड़ा मेरा, ना उसमें मिले रत्न मेरे। तो मैं कैसे रख सकता था,उस पर आपका या मंगलू का ही अधिकार था। 

यह कहकर उसने अशर्फियां वापस कर दी।


जिसके पास भी स्वाभिमान और ईमानदारी जैसे बहुमूल्य रत्न हैं, वो संसार का सबसे सुखी इंसान हैं..