Thursday, 9 November 2023

Article: So called sophisticated

So called sophisticated 



Diwali आ रही है और इसके आते ही एक वर्ग बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाता है। 

इस वर्ग में विभिन्न धर्मों के लोग शामिल होते हैं। बाकी धर्म के लोग शामिल हों तो कौन बड़ी बात है, जब इसमें बहुतायत से वो लोग भी शामिल होते हैं, जिस धर्म के लोगों का यह सबसे बड़ा त्यौहार है। 

बाकी धर्म के लोग दीपावली को मद्धम करें या धूमिल करें तो उन्हें भी नहीं करने देना चाहिए। पर उन हिन्दूओं को क्या समझायें जो अपने आपको बहुत ही hi-fi समझते हैं और हिन्दू त्यौहारों को कैसे मद्धम किया जाए, यही सोचते हैं। यह होते हैं so called sophisticated लोग...

जो बच्चों को हर साल यही समझाते हैं कि, पटाखे बिल्कुल ना चलाएं, वो हमारे पर्यावरण को बहुत नुक्सान पहुंचाते हैं, और इस मुहिम में वो भी शामिल हैं, जिन्होंने अपने बचपन में खूब पटाखे चलाए हैं। तब उसी खुशी की अहमियत जानते थे, पर अब सब भूल गए।

मुर्गी, मछली, बकरा, सबकी हड्डियां तक चबा जाने वालों को तब इन जानवरों पर इन्हें कोई दया नहीं आती है, लेकिन पटाखे चलाने से पशु-पक्षियों को परेशानी होती है, यह तुरन्त समझ आ जाता है। रोक जो लगानी बच्चों की खुशियों पर... 

AC चलाएं, एक अकेला कार चलाए, बारहों मासी गीज़र चले, तो उससे बढ़ता प्रदूषण भी नहीं दिखेगा, पर पटाखे... अरे बाप रे... एक चला नहीं कि पूरी दुनिया धुएं से भर जाएगी...

Cigarette smoking, use liquor and tobacco are injurious to health. शरीर के लिए हानिकारक होती है, यह चेतावनी लिखी रहती है, लेकिन इससे होता क्या है? तब भी साल भर यह सब धड़ल्ले से बिकता है और लोग इस्तेमाल करते हैं। जबकि cigarette smoking से तो passive smoker को भी बहुत ज्यादा नुकसान करती है। पर वो सब चल सकता है, पूरे साल भर... नहीं चल सकते हैं तो पटाखे, वो भी सिर्फ एक दिन, दीपावली में.... क्योंकि बाकी त्यौहारों में तो पटाखे कोई प्रदूषण नहीं फैलाते हैं।

Christmas, New year, किसी की शादी हो, मैच जीता हो, कोई भी बड़ा event हो तब... नहीं नहीं, तब पटाखे, पर्यावरण को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाते हैं, उस समय तो वो खुशी और status के पर्याय हो जाते हैं। 

सोचिए, कितना भेदभाव है हमारे सबसे बड़े त्यौहार के साथ.... वो भी हमारे हिन्दू बाहुल्य देश में.. जब यहां ऐसा है तो बाकी जगह क्या होगा...

Ban हमेशा हिन्दुओं के त्यौहारों पर ही क्यों लगता है?

क्योंकि हम खुद उसके लिए तैयार रहते हैं.... 

क्यों?...

आखिर हम खुद क्यों अपने ही धर्म को मद्धम करते जा रहे हैं? और कब तक करेंगे?  क्या तब तक, जब तक सब खत्म ना हो जाए?...

कुछ सालों से हम इस topic पर लिख रहे हैं और तब तक लिखते रहेंगे, जब तक लोग, हिन्दुओं के त्यौहारों को मद्धम करते रहेंगे। फिर चाहे वो बात दीपावली की हो, होली की हो या अन्य त्यौहारों की हो... 

बंद कीजिए त्यौहारों को मद्धम करना, यह चंद दिन ही जिन्दगी है, बाकी दिन तो बस कट जाते हैं ऐसे ही...

जीवन खूबसूरत तभी तक है, जब तक उसमें जिंदगी शामिल है... और पूरे जीवन में बचपन सबसे ज्यादा जिंदगी से भरपूर रहता है। 

तो जीने दीजिए अपने बच्चों को जीवन के सबसे खूबसूरत जिंदगी के पल.. त्यौहारों को वैसे ही रहने दीजिए, जैसे हमारे बचपन में थे।

उत्साह, उमंग और मस्ती से भरे हुए... 

पर्यावरण रक्षा के लिए पेड़ लगाए, शहरों को कांक्रीट की दुनिया बनने से रोकें, बाकी जिन कारणों से पर्यावरण प्रदूषित होता है आपके सुख के लिए, उस पर रोक लगाएं...

हम सब हमेशा यही कहते हैं, हम इतना सब कुछ किसके लिए कर रहे हैं, बच्चों के लिए ही ना....

तो कीजिए बच्चों के लिए...

लाइए, वैसे ही खुशियों भरे पल त्यौहार के, जैसे हमने जीए थे बचपन में... तब हमारे मां-पापा के पास संसाधन कम थे, पर वो जानते थे कि बच्चों के लिए खुशियां कैसे लाई जाती है।

बहुत कुछ सीखा है, मां-पापा से, तो यह करना क्यों भूल गए? 

उत्साह उमंग और मस्ती से भरे हुए दीपावली के पंच दिवसीय त्यौहार को मनाएं...

ईश्वर सब पर सदैव अपनी कृपा दृष्टि बनाएं रखें 🙏🏻