प्राकट्य, माँ सरस्वती का
बात उस समय की है जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया।
पेड़-पौधे, पशु-पक्षी आदि बनाने के पश्चात् उन्होंने मनुष्य की रचना की...
जब सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण हो गया, तो वह धरती पर भ्रमण करने के लिए आए।
उन्हें अपनी हर कृति पर बहुत नाज़ हो रहा था। लहलहाती हुई प्रकृति, झूमते हुए पशु-पक्षी, सब वैसे ही थे, जैसी उन्होंने कल्पना की थी।
अंत में वो वहां गए, जहां मनुष्य थे। पर मनुष्यों को देख कर उन्हें बहुत ही ग्लानि हुई।
क्योंकि मनुष्य को बनाकर उन्हें लगा था कि उन्होंने बहुत ही सर्वश्रेष्ठ कृति की रचना की है, पर ऐसा कुछ नहीं था। क्योंकि मनुष्यों और पशुओं में कोई विशेष अंतर नहीं था।
मनुष्य भी पशुओं के समान ही बुद्धिहीन और मूकबधिर सा प्रतीत हुआ...
क्षुब्ध होकर ब्रह्म देव, वापस ब्रह्मलोक में लौट आए।
उन्हें व्यथित देखकर भगवान श्री हरि बोले, “हे ब्रह्म देव! आप के दुःख का निवारण आपके अंदर ही निहित है।”
श्री हरि के इतना कहते ही ब्रह्म देव ने आह्वान किया तो एक अत्यन्त तेज़ और ओज से परिपूर्ण श्र्वेत वस्त्र को धारण किए हुए हंस पर विराजमान देवी प्रकट हुई। उनके हाथों में वीणा और अक्ष माला थी।
ब्रह्म देव, उन्हें देख कर बहुत प्रसन्न हुए। देवी का रूप और गुण देखकर उनका नाम माता सरस्वती रखा गया।
भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करते हुए, सरस्वती माता ने धरती पर विचरण किया, और सभी मनुष्यों को वो प्रदान किया जो उन्हें पशु प्रवृत्ति से भिन्न करती थी। अर्थात् उनके भीतर ज्ञान और विवेक का संचार किया।
मनुष्य के अंदर का ज्ञान और विवेक ही है, जो मनुष्य को मनुष्य बनाता है। अर्थात् देवी सरस्वती के प्राकट्य के पश्चात् ही मनुष्य को अपना अस्तित्व मिला।
मां सरस्वती को अपने अस्तित्व को प्रदान करने के लिए, उनका पूजन, ध्यान करना। पीला प्रसाद तैयार करना, पीले पुष्प अर्पित करना पीले वस्त्र धारण करना... बस यही है, बसंत पंचमी पर्व का त्यौहार... और यही है कारण है कि बसंत पंचमी पर्व को सनातन धर्म में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।