Thursday, 14 August 2025

Poem : बारिश की नन्हीं बूंदें

रिमझिम बारिश को देख मन स्वतः ही काव्य-रस में भीगकर नन्हीं बूंदों संग अठखेलियां करता हुआ यह कविता गढ़ता चला गया। आइए इसका आनन्द लें और बारिश के मनभावन मौसम का लुत्फ उठाएं…

बारिश की नन्हीं बूंदें


बारिश की नन्हीं बूंदें, 

इठलाती-बलखाती सी।

नभ से उतरकर जो,

धरा की अंक में समाती हैं।

सौंधी खुशबू से हर एक के

तन-मन को महकाती हैं।।

तरुणी को आया नवयौवन, 

भाता उनका चंचल चितवन।

क्षणिक मनोहर-सी वो आभा,

 नैनों को तृप्ति दिलाती है।

विटप नहाए, पपीहा गाए,

प्रकृति में हरियाली छाए।।

देखकर ऐसी छवि निराली, 

जन-जन को हर्षाती है। 

बारिश की नन्हीं बूंदें, 

इठलाती-बलखाती सी।

नभ से उतरकर जो,

धरा की अंक में समाती हैं।।