Wednesday, 29 October 2025

Article : ढलते सूर्य को प्रणाम

कल लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा का सूर्य देव को अर्घ्य कर समापन हो गया।

छठ पूजा, मुख्यतः बिहारी लोग करते हैं, और 2014 से पहले यह लगभग बिहार तक ही सीमित था।

शायद कुछ लोगों को यह अच्छा न लगे, पर सच्चाई यही है कि 2014 के बाद से भारतीय संस्कृति, तीज-त्यौहार इत्यादि, किसी एक राज्य तक सीमित नहीं रह गये हैं बल्कि हर राज्य में सभी भारतीय तीज-त्यौहार अपनी छटा बिखेर रहे हैं।

अभी हाल में छठ पूजा में वही माहौल दिल्ली व अन्य राज्यों में देखने को मिला। 

ढलते सूर्य को प्रणाम


ऐसा नहीं है कि इस साल जब दिल्ली में BJP government आई है, तब ही छठ पर्व धूमधाम से मनाया गया है। उससे पहले आप सरकार के समय भी धूमधाम थी, पर इस साल धूमधाम थोड़ी और बढ़ गई है।

और यदि BJP government centre में रही, और जिस तरह का जोश लोगों में देखने को मिल रहा है, सभी तरह के त्यौहारों को प्राथमिकता मिलती ही रहेगी। 

छठ पर्व बहुत सालों से मनाया जा रहा है‌ और इसमें सूर्यदेव की हर समय की पूजा की जाती है। 

लेकिन शायद ही किसी का ध्यान, इस ओर गया हो, जिस ओर मोदी जी का ध्यान गया और वो कि सिर्फ और सिर्फ छठ पर्व में ही ढलते सूर्य की भी पूजा की जाती है।

सूरज की दो अवस्थाएं होती हैं, उगता सूरज और ढलता सूरज।

उगते सूरज को भाग्योदय, सफलता और समृद्धि से संदर्भित किया जाता है, जबकि वहीं ढलते हुए सूरज को जीवन के ढलान‌ से, जीवन के आखिरी पड़ाव आदि से संदर्भित किया जाता है।

इस तरह से हमेशा उगते सूर्य को प्रणाम किया जाता है, उसे ही मान देते हैं।

तो जो अगर डूबते हुए सूरज को भी अर्घ्य दे रहा है, तो उसमें ऐसा क्या विशेष है?

वो विशेषता है, संस्कार की...

संस्कार की! इसमें संस्कार वाली बात कहां से आ गई?

जी बिल्कुल, संस्कार ही होते हैं। उन मनुष्यों में, जो सामने वाले को उसका पद, समृद्धि और वैभव देखकर नहीं, अपितु उसको हर स्थिति में सम्मान देता है।

यहाँ यह सम्मान, किसी गरीब को देना, किसी retired बुजुर्ग को देना, जो महिलाएँ नौकरी पेशा नहीं हैं, उन्हें देना, इत्यादि। एक तरह से देखा जाए तो सबको हर स्थिति में सम्मान प्रदान करना।

और छठ पूजा, सूर्य देव की हर स्थिति में पूजा करना उसी सम्मान को दर्शाता है।

इसके साथ ही एक और बात है, जो बिहारियों को बाकी राज्यों के हिन्दूओं से श्रेष्ठ बनाता है और वो कि छठ पर्व का बहुत कठिन नियम होता है। पर आज भी वो सारे कठिन नियमों का विधिवत न केवल पालन कर रहे हैं, बल्कि पूरा परिवार एकजुट होकर कंधे से कंधा मिलाकर काम करने में एक दूसरे का साथ देते हैं।

मुस्लिमों में पांच वक्त के नमाज़ी को विशेष सम्मान दिया जाता है। उसी प्रकार हिन्दुओं को भी छठ पूजा करने वाले को विशेष सम्मान प्रदान करना चाहिए। 

बल्कि इसके इतर, बिहारियों को वो सम्मान नहीं मिलता है, जो उन्हें मिलना चाहिए।

एक कहावत है, एक बिहारी, सब पर भारी और देखा जाए तो यह कुछ हद तक सही भी है।

बिहारियों के सभी व्रत-त्यौहार सबसे कठिन होते हैं, फिर भी वो वैसे ही विधिवत पूजन करते आ रहे हैं, उनके अंदर आज भी ईश्वर के प्रति आस्था सबसे अधिक है।

अगर अपने से बड़ों को सम्मान देने की बात कहें तो वो भी सबसे अधिक इनमें मिलता है।

अगर संस्कार कहें तो वो भी बहुत कुछ पहले जैसा ही है, पहनने-ओढ़ने में, रखरखाव में, बातचीत में, खाना-पीना बनाने इत्यादि में।

और अगर शिक्षा की बात करें तो सबसे ज़्यादा IAS, PCS officer बिहार से ही select होते हैं। 

छठ व्रत रखने वाले सभी व्रतियों को सम्पूर्ण सम्मान के साथ प्रणाम।

हमें आधुनिकता के साथ-साथ अपने संस्कारों से भी सदैव जुड़े रहना चाहिए। जहां दोनों हैं, सही अर्थों में वही सफल से, समृद्ध है, भाग्यवान है।

जय छठी मैया, जय भारत 🙏🏻