Friday, 8 March 2019

Poem : नारी हूँ मैं


नारी हूँ मैं



नारी हूँ मैं, अबला नहीं
चिंगारी हूँ मैं, कोयला नहीं
धरा से नभ तक हूँ फैली
अब ना मैं, बैठी रोती अकेली
ठानूँ जो, कर के दिखाऊँ
कंधे से कंधा मिलाऊँ  
क्षेत्र कोई बाकी नहीं
जिसमें, मैं दिखती नहीं
हो खेलकूद, या हो जंग
लोहा लेती मैं सबके संग
ज्ञान हो, या हो विज्ञान  
है, इसमें भी मेरी पहचान 
घर के हों या बाहर के काम
गूंजे चहूं ओर मेरा नाम
जिम्मेदारी हो या रुप रंग
संभाल लूं, सबको एक संग
संपूर्णता मुझ बिन अधूरी
हर बात की मैं हूं धुरी
सृष्टि की सृजनकारी हूँ मैं
नारी हूँ मैं, नारी हूँ मैं

समस्त नारी को समर्पित( महिला सशक्तिकरण)
Happy women's day

11 comments:

  1. Replies
    1. बहुत खूब .. आज की नारी कमजोर नहीं है

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    2. Thank you so much Ma'am for your admiration.

      Fabulous readers like you inspire me to keep penning my thoughts.

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  2. नारी सशक्तिकरण पर लिखी हुई सुन्दर कविता है ।

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    1. Thank you so much Ma'am for your admiration.

      Fabulous readers like you inspire me to keep penning my thoughts.

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  3. सम्पूर्णता मुझ बिन अधूरी ...हर बात की मैं हूँ धूरी...आत्मविश्वास से भरी सशक्त कविता👌👌👌

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    1. आपके सराहनीय शब्दों का अनेकानेक धन्यवाद
      आपके शब्द मुझे लिखने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।
      🙏 🙏

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  4. एक सम्पूर्ण नारी का सुंदर चित्रण। काफी प्रेरणा दायक।
    रूबी वर्मा

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    1. आपके सराहनीय शब्दों का अनेकानेक धन्यवाद
      आपके शब्द मुझे लिखने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।
      🙏 🙏

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  5. A perfect poem presenting a complete woman....superb

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    1. Thank you so much ma'am for your applausive words. I look forward for readers like you.

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