भावना
हमेशा की तरह मैं आज भी सिक्कों से भरी थैली लेकर दान करने beggars lane आया था। सबको चंद सिक्के देते देते, मैं एक आदमी के पास गया, वो आदमी नशे में धुत्त था।
उसको देखकर मैंने बोला, कैसे दुष्ट हो तुम, सुबह-सुबह ही पी रखी है, इसी के लिए, तुम्हें पैसे चाहिए होते हैं?
ये कहकर मैं उसे बिना सिक्के, दिये पलट गया।
तभी उसने ज़ोर से चिल्लाया, ओ धन्ना सेठ! जब मैं उसकी तरफ पलटा, तो उसने अपने कटोरे से बहुत से सिक्के मेरी तरफ उछल दिये।
फिर कहने लगा, खाने को खाना नहीं है, पहनने को कपड़ा नहीं है, सिर पर छत नहीं है, और तुम चंद सिक्के देकर अपने को बड़ा महान समझ रहे हो।
तभी उसने ज़ोर से चिल्लाया, ओ धन्ना सेठ! जब मैं उसकी तरफ पलटा, तो उसने अपने कटोरे से बहुत से सिक्के मेरी तरफ उछल दिये।
फिर कहने लगा, खाने को खाना नहीं है, पहनने को कपड़ा नहीं है, सिर पर छत नहीं है, और तुम चंद सिक्के देकर अपने को बड़ा महान समझ रहे हो।
उसकी बात से मैं अंदर तक सिहिर गया। अगली बार से मैंने कम्बल बाँटने शुरू कर दिये, पर देखता क्या हूँ, बहुत से लोग आधे दाम में कम्बल बेच दे रहे थे।
मैं उस कम्बल वाले के पास गया, उससे बोला- तुम इन लोगों से कम्बल क्यों खरीदते हो?
वो बोला साहब, मैं इनसे कम्बल लेता हूँ, तो उन पैसे से यह अपने मन के सारे समान ले लेते हैं, मुझे भी सस्ता माल मिल जाता है।
आप तो बस अपनी दान की भावना सच्ची रखो, यह सब देखने चलोगे, तो सब तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिखेगा।
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