Wednesday, 16 September 2020

Short Stories : निवाला

आज आप सब के साथ मुझे डेहरी ऑन सोन,रोहतास बिहार के कहानीकार श्री विनय कुमार मिश्रा जी की कहानी साझा करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है। 

विनय जी ने अपनी कहानी के माध्यम से बताया है कि कठिन समय में साथ कैसे दिया जाता है।


निवाला



बड़ी बेचैनी से रात कटी। बमुश्किल सुबह एक रोटी खाकर, घर से अपने शोरूम के लिए निकला। आज किसी के पेट पर पहली बार लात मारने जा रहा हूँ। ये बात अंदर ही अंदर कचोट रही है।

ज़िंदगी में यही फ़लसफ़ा रहा मेरा कि, अपने आस पास किसी को, रोटी के लिए तरसना ना पड़े। पर इस विकट काल मे अपने पेट पर ही आन पड़ी है। दो साल पहले ही अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर कपड़े का शोरूम खोला था।

मगर दुकान के सामान की बिक्री, अब आधी हो गई है।अपने कपड़े के शोरूम में, दो लड़के और दो लड़कियों को रखा है मैंने। ग्राहकों को कपड़े दिखाने के लिए। लेडीज डिपार्टमेंट की दोनों लड़कियों को निकाल नहीं सकता। एक तो कपड़ो की बिक्री उन्हीं की ज्यादा है। दूसरे वो दोनों बहुत गरीब हैं।

 दो लड़कों में से एक पुराना है, और वो घर में इकलौता कमाने वाला है। जो नया वाला लड़का है दीपक, मैंने विचार उसी पर किया है। शायद उसका एक भाई भी है, जो अच्छी जगह नौकरी करता है। और वो खुद, तेजतर्रार और हँसमुख भी है। उसे कहीं और भी काम मिल सकता है। 

इन सात महीनों में, मैं बिलकुल टूट चुका हूँ। स्थिति को देखते हुए एक वर्कर कम करना मेरी मजबूरी है। यही सब सोचता दुकान पर पहुंचा। चारो आ चुके थे। मैंने चारो को बुलाया और बड़ी उदास हो बोल पड़ा..

"देखो, दुकान की अभी की स्थिति तुम सब को पता है, मैं तुमसब को काम पर नहीं रख सकता"

उन चारों के माथे पर चिंता की लकीरें, मेरी बातों के साथ गहरी होती चली गईं। मैंने बोतल  के पानी से अपने गले को तर किया

"किसी एक का..हिसाब आज.. कर देता हूँ!दीपक तुम्हें कहीं और काम ढूंढना होगा"

"जी अंकल"  उसे पहली बार इतना उदास देखा। बाकियों के चेहरे पर भी कोई खास प्रसन्नता नहीं थी। एक लड़की जो शायद उसी के मोहल्ले से आती है, कुछ कहते कहते रुक गई। 

"क्या बात है, बेटी? तुम कुछ कह रही थी?

"अंकल जी, इसके भाई का..भी काम कुछ एक महीने पहले छूट गया है, इसकी मम्मी बीमार रहती है"

नज़र दीपक के चेहरे पर गई। आँखों में ज़िम्मेदारी के आँसू थे। जो वो अपने हँसमुख चेहरे से छुपा रहा था। मैं कुछ बोलता कि तभी एक और दूसरी लड़की बोल पड़ी

"अंकल! बुरा ना माने तो एक बात बोलूं?"

"हाँ..हाँ बोलो ना!" 

"किसी को निकालने से अच्छा है, हमारे पैसे कम कर दो..बारह हजार की जगह नौ हजार कर दो आप" 

मैंने बाकियों की तरफ देखा

"हाँ साहब! हम इतने से ही काम चला लेंगे"

बच्चों ने मेरी परेशानी को, आपस में बांटने का सोच, मेरे मन के बोझ को कम जरूर कर दिया था।

"पर तुमलोगों को ये कम तो नहीं पड़ेगा न?"

"नहीं साहब! कोई साथी भूखा रहे..इससे अच्छा है, हमसब अपना निवाला थोड़ा कम कर दें"

मेरी आँखों में आंसू छोड़,ये बच्चे अपने काम पर लग गए, मेरी नज़रों में, मुझसे कहीं ज्यादा बड़े बनकर..!


Disclaimer:

इस पोस्ट में व्यक्त की गई राय लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि वे विचार या राय इस blog (Shades of Life) के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों। कोई भी चूक या त्रुटियां लेखक की हैं और यह blog उसके लिए कोई दायित्व या जिम्मेदारी नहीं रखता है।

1 comment:

Thanks for reading!

Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)

Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.