Friday 9 October 2020

Poems : अरुणोदय व विधा

आज आप सब के साथ मुझे  राजस्थान(सिरोही) के मंझे हुए साहित्यकार छगन लाल गर्ग "विज्ञ" जी की कविता को साझा करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है। इनको हिन्दी साहित्य में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त है।

छगन लाल जी ने अपनी रचना को दुर्मिल सवैया वर्णिक छंद में प्रस्तुत किया है।

इस विधा में इनका सुप्रभात कहना अति आकर्षक लगा, तो आप सबके ‌साथ साझा कर रहे हैं।

आइए हम इस कविता के माध्यम से अद्भुत सुप्रभात का आनन्द लें।

अरुणोदय व विधा 



छवि तारक ज्योति उजास भरी , 

उर नीरव नेह विचुंबित है !


अरुणोदय स्नेहिल स्वप्न जगा , 

नव चेतन रूप विमोचित है !


वसुधा जड़ अंतर विश्व बसा , 

नभ में नव रश्मि प्रकाशित है !


गुरु देव दया दृग दीप जले , 

मन मंदिर श्याम  सुशोभित है  !!


Disclaimer:

इस पोस्ट में व्यक्त की गई राय लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि वे विचार या राय इस blog (Shades of Life) के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों। कोई भी चूक या त्रुटियां लेखक की हैं और यह blog उसके लिए कोई दायित्व या जिम्मेदारी नहीं रखता है। 

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