Tuesday, 11 February 2020

Short Stories : भावना

भावना



हमेशा की तरह मैं आज भी सिक्कों से भरी थैली लेकर दान करने beggars lane आया था। सबको चंद सिक्के देते देतेमैं एक आदमी के पास गयावो आदमी नशे में धुत्त था।



उसको देखकर मैंने बोलाकैसे दुष्ट हो तुमसुबह-सुबह ही पी रखी हैइसी के लिएतुम्हें पैसे चाहिए होते हैं?

ये कहकर मैं उसे बिना सिक्केदिये पलट गया। 

तभी उसने ज़ोर से चिल्लायाओ धन्ना सेठ! जब मैं उसकी तरफ पलटातो उसने अपने कटोरे से बहुत से सिक्के मेरी तरफ उछल दिये। 

फिर कहने लगाखाने को खाना नहीं हैपहनने को कपड़ा नहीं हैसिर पर छत नहीं हैऔर तुम चंद सिक्के देकर अपने को बड़ा महान समझ रहे हो।

उसकी बात से मैं अंदर तक सिहिर गया। अगली बार से मैंने कम्बल बाँटने शुरू कर दियेपर देखता क्या हूँबहुत से लोग आधे दाम में कम्बल बेच दे रहे थे।

मैं उस कम्बल वाले के पास गयाउससे बोला- तुम इन लोगों से कम्बल क्यों खरीदते हो?

वो बोला साहबमैं इनसे कम्बल लेता हूँतो उन पैसे से यह अपने मन के सारे समान ले लेते हैंमुझे भी सस्ता माल मिल जाता है।

आप तो बस अपनी दान की भावना सच्ची रखोयह सब देखने चलोगेतो सब तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिखेगा।