Thursday, 7 January 2021

Short Story : ममता

 ममता


25- 30 साल के लगभग, छरहरे बदन वाली श्याम वर्ण की ममता ने हमारे घर काम पकड़ा था।

सर्दी की ठिठुरती सुबह हो, फुहारों की पड़ती सांझ या गर्मी की चिलचिलाती दोपहर, ममता  हमारे घर की घंटी अवश्य बजाती।

उसकी एक अनोखी अदा थी कि वो रोज़ सुबह आने पर दरवाजा खोलते ही बड़े अदब से नमस्ते जरुर करती।

भीतर आकर बड़ी फुर्ती से वो काम में जुट जाती थी।

हमारे घर के अलावा वो चार और घरों में काम करती थी।

उसे जब देखतीं तो लगता कि इस एक हड्डी में भी कितनी जान है। हम से अपने एक अकेले घर के काम निपटाने में हाथ-पांव कीर्तन करने लगते हैं और एक यह है जो पांच घरों का काम निपटा कर अपने घर का काम भी बखूबी कर लेती है।

मुझे खाना बनाने का बहुत शौक है तो आए दिन, special dishes बनाती ही रहती हूँ।

कभी खस्ता समोसा, कभी चाट पकौड़ी, कभी cake, Pizza, pasta तो कभी खीर, जलेबी, ice-cream, आदि .....

मेरा घर पकवानों की खुशबू से महकता है और बर्तन से भी पता चलता था कि कुछ विशेष बना है।

फिर ऐसे में उसको वो सब खाने को ना देना, मुझे रास नहीं आता था। मेरा मानना था, हर पकवान में उसका भी हक़ है। 

तो, जब भी मैं कुछ special बनाती, उसका भी उसमें हिस्सा भी जरुर शामिल होता।

उसके आने के साथ ही मैं उसे उसका हिस्सा दे दिया करती थी।

पर मैं देखा करती, वो सदैव उसे घर ले जाती, कभी खाती नहीं थी।

एक दिन मैंने उससे पूछा कि एक बात बताओ ममता, मैं इतनी स्वादिष्ट पकवान तुम्हें देती हूँ, पर तुम कभी खाती क्यों नहीं हो?

भाभी, बच्चों के लिए ले जाती हूँ।

ठीक है....

पर कभी तुम्हारे खाने का मन नहीं होता है? 

भाभी मेरा मन तो आप घर में उड़ती हुई स्वादिष्ट खुशबू ही भर देती है।

और आपके बनाएं हुए स्वादिष्ट पकवान बच्चों को खाते हुए देखती हूँ, तो आत्मा भी तृप्त हो जाती है।

जो पकवान मैंने कभी नहीं खाए थे, वो आप के कारण मेरे बच्चे आए दिन खाते हैं।

इतनी अच्छी खुशबू उड़ रही हो, सामने स्वादिष्ट पकवान हो, फिर भी कोई चखे तक नहीं। बहुत बड़े त्याग की बात है।

उसकी बातों से दिल में एक ही अनुभूति होती कि यह काम एक माँ ही कर सकती है कि खुद भूखी रहे और बच्चों को खिलाती रहे। 

उसकी ममता के आगे उसे कोई नहीं डिगा सकता।

क्या बच्चे भी माँ का इतना ध्यान रख सकते हैं?

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