Friday, 16 September 2022

Article : शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष🌜🌝🌛🌚

यह हिन्दी दिवस का सप्ताह चल रहा है। जिस एक हफ्ते में हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के विषय में, हम सभी बातें करते हैं। और यह सप्ताह व्यतीत होते ही हम पुनः विदेशी भाषाओं पर ध्यान केंद्रित कर लेते हैं।

उसी के कारण, हमारी युवा पीढ़ी, दुनिया की सबसे ज्यादा वैज्ञानिक भाषा से अनभिज्ञ हैं। और वह भाषा है हिन्दी...

यह भाषा, जितनी वैज्ञानिक भाषा है, उतनी ही सरल सहज व सटीक भी। फिर भी हमारे बच्चे, हिंदी में कोई रुचि नहीं लेना चाहते हैं।

जिसका बहुत बड़ा कारण है, हिंदी भाषा का बहुत कम ज्ञान। 

इसी में एक कड़ी है, कलेंडर

हमें अंग्रेजी कलेंडर, उसके महीने, उसकी तिथि, सब मुँह ज़ुबानी याद रहती है, पर अगर बात हिन्दी कलेंडर की आती है, तो हम बगलें झांकने लगते हैं।

तो आज की इस विरासत की श्रृंखला में आप को हिन्दी कलेंडर के विषय में ही बता रहे हैं, जिसे हिन्दी भाषा में पंचांग भी कहते हैं। हम आपको सिलसिले वार पूरे कलेंडर के विषय में बताते हैं।

शुक्ल व कृष्ण पक्ष 🌜🌝🌛🌚


जैसा कि सब को पता है कि, हिंदू धर्म में किसी भी खास आयोजन में तिथियों की विशेष भूमिका होती है। कोई भी कार्य बिना शुभ मुहूर्त के बिना नहीं होता है।

 पंचांग एक हिंदू कैलेंडर है। 

पंचांग, दो तरह के होते हैं, दैनिक और मासिक... 

दैनिक पंचांग में जहां एक दिन विशेष का विवरण होता है,  वहीं मासिक पंचांग में पूरे महीने भर का विवरण होता है। 

मासिक पंचांग यानी हिंदू कैलेंडर में एक महीने को 30 दिनों में बांटा गया है। 

इस 30 दिनों को फिर से दो-दो पक्षों में बांटा जाता है, और दोनों ही पक्षों के अपने अपने नाम हैं।

जिसमें 15 दिन के एक पक्ष को शुक्ल पक्ष कहते है और बाकी बचे 15 दिन को कृष्ण पक्ष कहा जाता है।  

कृष्ण का अर्थ है, काला व शुक्ल का अर्थ होता है, चमकदार, श्वेत इत्यादि... 

चंद्रमा की कलाओं के ज्यादा और कम होने को ही शुक्ल और कृष्ण पक्ष कहते हैं। आइए जानते हैं वैदिक शास्त्र में इन दोनों पक्षों का महत्व। 

 

कृष्ण पक्ष 🌚

पूर्णिमा और अमावस्या के बीच वाले हिस्से को हम कृष्ण पक्ष कहते हैं। जिस दिन पूर्णिमा तिथि होती है उसके अगले दिन से कृष्ण पक्ष की शुरूआत हो जाती है, जो अमावस्या तिथि के आने तक 15 दिनों तक रहती है। 

कृष्ण पक्ष में नहीं किए जाते हैं शुभ कार्य

मान्यता है कि जब भी कृष्ण पक्ष होता है तो उस दौरान कोई भी शुभ कार्य करना उचित नहीं होता है। दरअसल इसके पीछे ज्योतिष में चंद्रमा की घटती हुई कलाएं होती है। पूर्णिमा के बाद जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ता है वैसे वैसे चंद्रमा घटता जाता है। यानी चंद्रमा का प्रकाश कमजोर होने लगता है। चंद्रमा के आकार और प्रकाश में कमी आने से रातें अंधेरी होने लगती है। इस कारण से भी कृष्ण पक्ष को उतना शुभ नहीं माना जाता।

कृष्ण पक्ष की तिथियां-  15 दिन (पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वितीय, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी)

शुक्ल पक्ष 🌝

अमावस्या और पूर्णिमा के बीच वाले भाग को शुक्ल पक्ष कहा जाता है। अमावस्या के बाद के 15 दिन को हम शुक्ल पक्ष कहते हैं। अमावस्या के अगले ही दिन से चन्द्रमा का आकर बढ़ना शुरू हो जाता है और अंधेरी रात चांद की रोशनी में चमकने लगती है। 

पूर्णिमा के दिन चांद बहुत बड़ा और रोशनी से भरा हुआ होता है। इस समय में चंद्रमा बलशाली होकर अपने पूरे आकार में रहता है यही कारण है कि कोई भी शुभ कार्य करने के लिए इस पक्ष को उपयुक्त और सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

शुक्ल पक्ष की तिथियां- 15 दिन (अमावस्या, प्रतिपदा, प्रतिपदा, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी)

शुक्ल और कृष्ण पक्ष से जुड़ी कथाएं

पौराणिक कथाओं में शुक्ल और कृष्ण पक्ष से संबंध में कथाएं प्रचलित है।

कृष्ण पक्ष की शुरुआत

शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की 27 बेटियां थीं। इन सभी का विवाह दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा से किया। दक्ष प्रजापति की ये 27 पुत्रियां वास्तव में 27 नक्षत्र थी। चंद्रमा सभी में सबसे ज्यादा रोहिणी से प्रेम करते थे। 

चंद्रमा बाकी सभी से हमेशा रुखा सा व्यवहार करते थे। ऐसे में बाकी सभी स्त्रियों ने चंद्रमा की शिकायत अपने पिता दक्ष से की। 

इसके बाद राजा दक्ष ने चंद्रमा को डांट लगाई और कहा कि सभी पुत्रियों के साथ समान व्यवहार करें।

इसके बाद भी चंद्रमा का रोहिणी के प्रति प्यार कम नहीं हुआ और बाकी पत्नियों को नजरअंदाज करते रहे। 

इस बात को लेकर दक्ष प्रजापति गुस्से में आकर चंद्रमा को क्षय रोग का शाप दे देते हैं। इसी शाप के चलते चंद्रमा का तेज धीरे-धीरे मध्यम होता गया। तभी से कृष्ण पक्ष की शुरुआत मानी गई।

शुक्ल पक्ष की शुरुआत

दक्ष प्रजापति के शाप के चलते क्षय रोग से चंद्रमा का तेज कम होता गया और उनका अंत करीब आने लगा। 

तब चंद्रमा ने भगवान शिव की आराधना की और शिवजी ने चंद्रमा की आराधना से, प्रसन्न होकर चंद्रमा को अपनी जटा में धारण कर लिया। 

शिवजी के प्रताप से चंद्रमा का तेज फिर से लौटने लगा और उन्हें जीवनदान मिला। पर दक्ष के शाप को रोका नहीं जा सकता था ऐसे में शाप में बदलाव करते हुए चंद्रमा को हर 15-15 दिनों में कृष्ण और शुक्ल पक्ष में जाना पड़ता है। इस तरह से शुक्ल पक्ष की शुरुआत हुई। 

आशा है अब आप सभी व हमारे बच्चों को हिन्दी के कलेंडर के विषय में ज्ञान भी हो गया होगा और उसमें रुचि भी  ...

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