Wednesday, 5 October 2022

India's Heritage: रावण के पुतले का ही दहन क्यों?

आज दशहरा पर्व है। विजयदशमी – असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक।

त्रेतायुग से आज तक हम सभी दशहरा पर्व पर रावण दहन करते आए हैं। 

पर कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों है कि हम सदियों से रावण के पुतले का दहन करते आएं हैं? ऐसा भी क्या है? क्या वो बड़ा राक्षस था, इसलिए? या उसने बहुत अत्याचार किए थे, इसलिए? या प्रभू श्रीराम ने रावण का वध किया, इसलिए?

तो बड़ा राक्षस तो कंस भी था, उसके द्वारा किए गए अत्याचार के आगे तो रावण का अत्याचार कमतर ही कहा जाएगा, क्योंकि उसने तो नवजात शिशुओं व छोटे छोटे बच्चों का भी वध कर दिया था। और जहांँ तक रही उसके वध की बात, तो उसका वध भी भगवान श्रीकृष्ण ने किया था।

अन्य बड़े राक्षसों का वध भी, ईश्वर के द्वारा हुआ है, जैसे विष्णु, महेश, ब्रह्मा व बहुत से मातारानी के शक्ति स्वरूप द्वारा।

फिर उनके पुतले क्यों नहीं?

आइए, इस India's Heritage, segment के अंतर्गत इस तथ्य को थोड़ा समझने का प्रयास करते हैं।

रावण के पुतले का ही दहन क्यों?




रावण दहन का कारण:

प्रतिवर्ष दशहरे पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है। इसके पीछे की मुख्य वजह क्या है? मान्यता है कि असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में यह परंपरा शुरू हुई। दशहरे के दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। 

दशहरे के दिन रावण का पुतला दहन करने की परंपरा है। हालांकि कई जगह रावण की पूजा भी होती है और दहन नहीं होता है। दशहरे के दिन भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। दशहरे के दिन ही नवरात्रि की समाप्ति होती है, इसी दिन देवी मां की प्रतिमा का विसर्जन करते हैं।


‘अत्यंत शक्तिशाली था रावण ’

ज्योतिषाचार्य शैलेंद्र पांडेय जी के अनुसार,  रावण पर विजय हासिल करना इतना आसान नहीं था। रावण तपस्वी, मूर्धन्य, समस्त अस्त्र-शस्त्र का पारंगत, बलशाली, सोने की लंका का सम्राट था। उसके राज्य में प्रजा खुशहाल थी, सभी संतुष्ट व संपन्न थे।

इन सबसे बढ़कर, रावण एक प्रकांड विद्वान तथा राजधर्म का ज्ञाता भी था। 

यही वजह थी कि प्रभू श्रीराम ने अपने अनुज, लक्ष्मण को मृत्यु-शैय्या पर पड़े रावण के पास राजधर्म का रहस्य जानने भेजा था। 

ज्योतिषाचार्य के अनुसार रावण की सत्ता भी कोई मामूली सत्ता नहीं थी।  रावण के 10 सिर थे। धर्म कहता है कि 10 दिशाएं होती हैं। अतः जो रावण 10 दिशाओं पर नियंत्रण कर सकता था, उस पर विजय प्राप्त करना बड़ी बात थी। 

इसलिए इसे विजयादशमी कहते हैं और इसे विजय पर्व के रूप में मनाते हैं। अहंकार और क्रोध ने रावण का तो सर्वनाश किया ही था, साथ ही इस आग ने पूरे राक्षस कुल की तिलांजलि दिलवा दी थी, अर्थात पूरे राक्षस कुल ने प्राण देकर रावण के बुरे कर्मों की कीमत चुकाई थी। इसीलिए राम ने जब रावण का वध किया, तो इससे बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर देखा गया।

राम और रावण की कुंडली देखें  तो, ज्योतिषाचार्य जी बताते हैं कि रावण पर विजय हासिल करना आसान काम नहीं था। भगवान श्रीराम और रावण दोनों की ही कुंडलियाँ बहुत शक्तिशाली थीं। 

दोनों की लग्न में विद्यमान बृहस्पति दोनों को अत्यंत पराक्रमी और शक्तिशाली बनाता था। भगवान राम के लग्न का मालिक चंद्रमा और रावण के लग्न का मालिक सूर्य था। चंद्रमा सौम्य स्वभाव देता है, जबकि सूर्य उग्र स्वभाव के लिए जाना जाता है। यहाँ अंतर यह भी था कि भगवान राम का बृहस्पति 'उच्च' का है, जो उन्हें विशिष्ट बनाता है। हालांकि रावण के बृहस्पति ने भी उसे अच्छे परिणाम दिए।

ज्योतिषाचार्य जी ने बताया कि रावण की कुंडली की एक और बड़ी मुश्किल ये थी, कि पंचम भाव में धनु राशि में राहु बैठा हुआ था, जिसने मति भ्रष्ट कर दी और इसी वजह से रावण को राक्षस की श्रेणी में रख दिया गया। कुछ यही वजह थीं कि भगवान राम का बृहस्पति भारी रहा और रावण की हार हुई। 

दोनों की कुंडली बेहद मजबूत और शक्तिशाली थीं‌। दोनों ही पराक्रमी और बुद्धिमान थे, लेकिन इसके बाद भी अच्छाई ने बुराई को हराकर जीत कायम की।

इस दिन संसार को एक नया संदेश मिला कि बुराई या झूठ कितना भी शक्तिशाली ही क्यों न हो, अंत में जीत अच्छाई और सत्य की ही होती है। इसी वजह से बुराई रूपी रावण के पुतले के दहन की परंपरा निभाई जाती है।


दशहरे के दिन करें मां दुर्गा और राम का पूजन:

मान्यता है कि भगवान राम की पूजा से विजय प्राप्त होती है। भगवान राम को यह वरदान दो जगह से प्राप्त होता है। एक सूर्य से — जब महर्षि अगस्त्य उन्हें आदित्य ह्रदय स्त्रोत के बारे में बताते हैं और दूसरा भगवान श्रीराम ने स्वंय महानवमी वाले दिन शक्ति रूप की पूजा की थी और दशहरे के दिन विजय प्राप्त की थी। दशहरे के दिन अस्त्र-शस्त्रों की भी पूजा की जाती है और विजय का पर्व भी मनाया जाता है।

दशहरे के दिन महिषासुर-मर्दिनी माँ दुर्गा के उस स्वरूप की पूजा होती है, जिसमें माँ दुर्गा का शक्ति का सबसे प्रचंड स्वरूप है, जिसमें माँ दुर्गा पापों का नाश करती हैं। वहीं भगवान राम की पूजा होती है, क्योंकि दशहरा भगवान श्रीराम की विजय का पर्व है। 

इस दिन, माँ दुर्गा और भगवान श्रीराम की पूजा करने से संपूर्ण बाधाओं का नाश होता है।

चतुर्मास में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत नहीं करते हैं। पर कहा जाता है कि दशहरे का मुहूर्त, अबूझ मुहूर्त होता है, इसलिए दशहरे के दिन किसी भी कार्य की शुरुआत करना शुभ है। इस दिन हवन पूजन करके अपने नवग्रहों को शांत करने के लिए आप उपाय भी कर सकते हैं।

रावण के दहन के समय क्या करना चाहिए?

दशहरे के दिन रावण के पुतले का दहन किया जाता है। माना जाता है कि जो इस आयोजन में शामिल होता है, उसके जीवन में बहुत सारी उपलब्धियाँ हासिल होती हैं। जब रावण दहन शुरू होने वाला हो, तो माँ दुर्गा और भगवान श्रीराम का स्मरण करें।

जब रावण का पुतला जल रहा होता है, तो भगवान श्रीराम का स्मरण करें और फिर पुतला जलता हुआ देखें। जब पुतला दहन हो जाए, तब माँ दुर्गा और भगवान राम की आरती करें। इसके बाद अपनी इच्छा अनुसार, परिवार के साथ मिलकर प्रार्थना करें। इससे जीवन में विजय मिलेगी और जीवन में आने वाली हर प्रकार की बाधाएँ दूर हो जाएंगी। 

अब आप को समझ आ गया होगा कि क्यों रावण का ही दहन किया जाता है।

पर उसके दहन के समय, हमे अपने अंदर मौजूद, अहंकार व क्रोध का दहन भी करना चाहिए। उसके साथ ही, अपने अंदर मौजूद, छल, कपट, राग-द्वेष, लालच, झूठ, बेइमानी, जैसे अन्य दोषों का भी दहन करना चाहिए।

और सबसे बड़ी बात, रावण के महान रुप का सम्मान भी करना चाहिए और उन गुणों को अपने अंदर समाहित भी करना चाहिए।

विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ, शुभो विजया, Happy Dussehra💐

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