Wednesday 11 September 2024

Article : कुछ पल सनातन के

हमारे पतिदेव के जन्मदिवस में इस बार सोचा, उन्हें कुछ ऐसा birthday gift दिया जाए, जिससे वो अपना बचपन फिर से जी लें।

ऐसा gift, इसलिए सोचा, क्योंकि हर एक के लिए बचपन के पलों से मीठा और सुखद कुछ नहीं होता है।

हमने ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के व महाकालेश्वर के दर्शन का program plan किया।

महाकाल जी से तो, आप सभी परिचित होंगे, पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से शायद कुछ लोग अनभिज्ञ हों।

कुछ पल सनातन के



1. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग :

भगवान शिव-शंभू के 12 ज्योतिर्लिंग हैं, उनमें से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भी एक है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग जाने का विचार, इसलिए आया, क्योंकि हमारे ससुर जी वहां के आश्रम से जुड़े हुए थे। और उस आश्रम में अक्सर परिवार के साथ जाया करते थे। उन्हीं गुरुदेव जी का एक आश्रम बाराबंकी में भी है।

हमारे पतिदेव शादी के दूसरे साल में ही हमें हमारे ददिहाल ले कर गए थे, वहीं पर हमारे परिवार द्वारा आस्था रखे जाने वाले चच्चा जी महाराज की समाधि भी है। चच्चा जी महाराज, हमारे परनाना, हमारे पूरे परिवार के गुरु, ईश्वर या यूं कहें कि सर्वत्र हैं, जिनके कारण हमारे पूरे खानदान का आस्तित्व है।

इनका हमें वहां लेकर जाना, हमारी सम्पूर्ण ज़िंदगी की सर्वश्रेष्ठ जगह है 🙏🏻

तो अब बारी हमारी थी, उसी तरह की आस्था वाली जगह, जिससे उनका परिवार जुड़ा है, उसे चुनने की...

और वो है ओंकारेश्वर 🙏🏻

जब ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने जाएं और महाकालेश्वर के दर्शन ना करें, यह तो संभव ही नहीं था। तो वहां भी गये।

आज आप को ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन के विषय में बताते हैं, आगे महाकालेश्वर के विषय में बताएंगे।

जैसा कि धार्मिक स्थल पर बहुत अधिक भीड़ होती है, वही हमें वहां भी मिली।

बहुत भीड़ होने के बाद भी सब बहुत systematic था, सभी श्रद्धालु अपनी-अपनी जगह पर बिना धक्का-मुक्की किए बम-बम भोले, हर हर महादेव का स्वर नाद करते हुए आगे बढ़ रहे‌ थे, इससे भक्ति और जोश का ऐसा माहौल बना कि कब हम लोग ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के सामने पहुंच गए, ज्ञात ही नहीं हुआ। 

महादेव जी के बहुत अच्छे दर्शन हुए, उसके बाद हम लोग ममलेश्वर महादेव जी के मंदिर में गये।

ममलेश्वर महादेव 

वहां पर ओंकारेश्वर मंदिर के बनिस्पत काफ़ी कम भीड़ थी। वहां भी सब शिव मय था।

दोनों जगह दर्शन करके, ऐसा लगा, मानो जीवन में वो पा लिया, जिसकी कल्पना भी नहीं की थी। परम सुख, परम आनन्द...

भोले भंडारी का हर दर ऐसा ही होता है, जहां माथा टेका और सर्वत्र पा लिया..🙏🏻

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिग के दर्शन के लिए हम श्री मार्कण्डेय संन्यास आश्रम में रुके थे। क्योंकि पापा जी (हमारे ससुर जी) ओंकारेश्वर में आने पर सदैव यहीं रुका करते थे।

2. आश्रम की व्यवस्था :

हम लोग दिल्ली से by train खंडवा तक, वहां से by Cab से श्री मार्कण्डेय आश्रम  पहुंचे थे। दिल्ली से ओंकारेश्वर तक की कोई सीधी train नहीं है...

श्री मार्कण्डेय संन्यास आश्रम, ओंकारेश्वर में पहुंच कर पता चला कि भक्तों के रहने की व्यवस्था ऊपर के कमरों में थी और संतों के रुकने की व्यवस्था नीचे के एक बड़े से कमरे में थी।

कमरे में पहुंच कर देखा कि एक पलंग था, जिसमें सिर्फ एक व्यक्ति ही सो सकता था, उसके अलावा बाकी तीन गद्दे, चादर, तकिया इत्यादि सब था।

कमरे में सुविधा के नाम पर बस एक tube light और एक fan था। Attached bathroom भी था। सब कुछ बेहद साफ-सुथरा...

मतलब no AC, no TV, साथ ही signals भी weak, तो mobile भी लगभग किसी काम का नहीं था, means entertainment का कोई साधन नहीं था।

वह आश्रम बिल्कुल नर्मदा नदी के किनारे बसा हुआ था। नर्मदा नदी की कल-कल की ध्वनि अलग ही तरह के सुख का एहसास दे रही थी। उसके साथ ही नदी के दूसरे छोर पर ओंकार पर्वत था। बेहद हरियाली से आच्छादित और शंकराचार्य जी की विशाल मूर्ति, जिससे कमरे से बाहर देखने पर अद्भुत दृश्य दिखाई देता था।

मतलब सर्वश्रेष्ठ जीवनयापन का सब साधन, उस आश्रम में मौजूद था। और उसको सम्पूर्णता दे रहा था, उस आश्रम का माहौल और शिव शंभू मय वातावरण.. 

जिसका एहसास आपको सम्पूर्ण article पढ़कर होगा...


3. आश्रम के समयबद्ध नियम :

आश्रम था, तो नियम भी थे और वो भी एकदम पक्के, मतलब जो जिस समय होना है, वो उसी समय ही होगा। वहां समय और नियम का पाबंद होना ज़रूरी था।

सुबह 5:30 बजे शिव शंभू जी की सुबह की वंदना-आरती होती थी।

6:00 से 6:30 बजे तक नाश्ता वितरण किया जाता था। उसके बाद आपको जो भी साधना, योग इत्यादि करना हो, वो कर सकते हैं। या ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने जाना हो तो, जा सकते थे।

11 बजे से भोजन वितरण हो जाता था। तत्पश्चात सभी विश्राम या अन्य कार्यकलापों को कर सकते हैं।

संध्या समय 7 बजे से शिव जी की आरती, संध्या, पूजा-अर्चना, शिव महिम्न स्तोत्र पाठ, सत्संग इत्यादि होता है, जो कि 8:30 बजे तक होता है। उसके बाद रात्रि भोजन वितरण किया जाता है।


4. महादेव की अराधना :

आश्रम में भी शिव जी का विशाल मंदिर था।महादेव जी की हर पूजा-अर्चना, खूब बड़े-बड़े घंटे-घड़ियाल, ढोल, नगाड़े, शंखनाद के साथ होती है, साथ ही सभी मंत्र और आरती इत्यादि भी तेज स्वर में होती है।

आप आश्रम के किसी भी कोने में हों, किसी भी कमरे में हों, आपकी आत्मा शिव स्तुति से पवित्र अवश्य हो रही थी।

एक अलग ही माहौल, सब बस शिव ही शिव मय.. उससे इतर कुछ भी नहीं...

मतलब आप हर पल सनातन को जी रहे हैं। नर्मदा नदी पर डुबकी लगाना, ईश्वरीयता के और करीब ले जा रहा था।


5. भोजन का सारांश (summary):

एक नियम और था, आपको नाश्ता व खाना खाने के बाद, अपने बर्तन स्वयं धोने होते थे।

नाश्ता, खाना पूर्णतः सात्विक था, पर बहुत स्वादिष्ट, साथ ही complete diet वाला, अर्थात, दाल, रोटी, सब्जी, चावल, सलाद, चटनी, अचार, मीठा सब कुछ। वो भी जो जितना खाना चाहें। 

वहां भोजन बनाने वाले और वितरण करने वाले सभी इस भाव में भोजन खिलाते थे, मानो सभी अतिथि, शिव भक्त हैं।

नियम यह भी था कि खाना खाते समय, मोबाइल नहीं लाना है, ना ही बात करनी है, भोजन जो कि प्रसाद है, उसे पूर्ण सम्मान दें, साथ ही प्रयास करें कि भोजन रूपी प्रसाद छोड़ा ना जाए। उतना ही लें थाली में कि व्यर्थ ना जाए नाली में 🙏🏻

हम लोगों ने उनसे श्रमदान की बात भी कही, पर उन्होंने साफ इंकार कर दिया, मानो कह रहें हों, अतिथि देवो भव:


6. आगे की योजना :

वहां entertainment के लिए आधुनिक युग का कुछ नहीं था, पर सच जानिए, उसकी आवश्यकता भी नहीं लग रही थी।

नियम कठोर थे, पर किसी पर भी थोपे नहीं जाते थे। 

हम लोग नाश्ता करने के पश्चात् ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने चले गए थे।


उसके बाद दोपहर के भोजन के समय हम लौट आए।

भादो मास चल रहा है तो, बीच-बीच में वर्षा तेज हो जाती, कभी झिसी पड़ती।

हमने सोचा लिया, अगले दिन माता अन्नपूर्णा और विकट हनुमान जी के दर्शन के बाद, (यह दोनों मंदिर आश्रम से बहुत नज़दीक थे)सारा समय आश्रम में रहकर, कुछ पल सनातन के बिताएंगे।


7. सनातन धर्म :

और सच बता रहे हैं, हमारे पतिदेव को तो आनंद आना ही था। बचपन के पलों को जो जी रहे थे। पर हमें और दोनों बच्चों को भी वहां विशेष आनन्द आ रहा था।

शायद उसका कारण था, सनातन सत्य है, कठोर भी है, पर वहां बाध्यता नहीं थी, स्वतंत्रता थी, स्वच्छंदता थी। 

उन पलों को जीने के लिए, शायद ज़िन्दगी के जितने भी पल मिले, कम ही हैं।

आप से सिर्फ इतना कहना कि अगर आप ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए जाएं, तो ऐसी जगह ही रुकिएगा, जहां पर नर्मदा नदी का तट रहे, क्योंकि मां नर्मदा के सानिध्य के बिना दर्शन अधूरे हैं और शिव शंभू की कृपा भी...


8. निशुल्क आश्रम / आवास :

हमें आश्रम में रुकने के लिए, कोई भी धन-राशि नहीं देनी थी। फिर भी हम लोग स्वेच्छा से धन राशि देकर आए। और आप सबसे भी अनुरोध है कि, अगर आप ऐसे स्थान पर जा रहे हैं, जहां धन-राशि नहीं देनी है…

तो अपने सामर्थ्य के अनुरूप धन राशि अवश्य दें, जिससे आश्रम की सभी गतिविधियां, सुचारू रूप से चल सके।

वहां उपस्थित ओंकार पर्वत की परिक्रमा भी की जाती है, पर समय के आभाव के कारण, हम वो नहीं कर सके।

मन तो इतना अधिक प्रसन्न था, कि वहां से ना जाएं, ऐसा ही लग रहा था।

पर ऐसा संभव नहीं था, अगले दिन हम अपने गंतव्य के लिए, मतलब महाकाल जी के दर्शन के लिए निकल गये...

वो पल भी सुखद थे, आपको उनके विषय में भी बताएंगे...


हर हर महादेव...

जय ओंकारेश्वर महाराज...

जय ममलेश्वर महादेव...

जय जय महाकाल...

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