आज Dr. भीमराव अम्बेडकर की जयंती है, जिसके उपलक्ष्य पर school, college, सरकारी कार्यालयों में अवकाश है।
पर भीमराव अम्बेडकर थे कौन? और ऐसा भी उन्होंने क्या विशेष किया था कि उनके जन्मदिन पर अवकाश घोषित किया जाता है।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर, निम्न माहर जाति के गरीब परिवार के बेटे थे।
यह बात आजादी से पहले की है। उस समय बहुत अधिक छुआछूत का बोलबाला था, अतः निम्न जाति के लोगों को बहुत से कष्ट झेलने पड़ते थे।
कुशाग्र बुद्धि के भीमराव ने देखा कि आजादी के मतवाले, अपनी जान कुर्बान करने को तैयार थे, देश को आजाद कराने के लिए।
उस समय क्रान्ति की लहर अपने चरम पर थी, जिसे देखकर, सभी को प्रतीत हो रहा था कि अब देश जल्द ही आजाद हो जाएगा।
भीमराव ने सोचा कि, अब जब देश आजाद हो ही जाएगा, तो अगर निम्न जाति के उत्थान के लिए भी प्रयास किया जाए, तो देश की आजादी के साथ-साथ निम्न जाति का भी उद्धार हो जाएगा।
काम करो तो भीम जैसा
दुनिया-भर के देशभक्त देश की आजादी के लिए हर संभव प्रयास कर रहे थे, वहीं भीमराव अपनी उच्च शिक्षा के अध्ययन में लग गए।
वो अच्छी तरह से जानते थे कि केवल जूलुस निकालने और नारेबाजी से system को नहीं बदला जा सकता है, अगर system को बदलना है, तो पहले खुद की स्थिति मजबूत होनी चाहिए।
और यदि आप धनाढ्य परिवार से जुड़े हुए नहीं हैं तो अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए उच्च शिक्षित होना, उच्च पद पर आसीन होना ही दूसरा विकल्प है।
धनाढ्य परिवार से थे नहीं और उन्हें सिर्फ अपना ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण निम्न जाति की स्थिति को मजबूत करना था।
अतः वे जी-जान से उच्च शिक्षा प्राप्त करने में जुट गए, जिसके चलते उन्होंने Alfinston School से पढ़ाई की थी। उन्होंने Bombay विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र व राजनीतिज्ञ विज्ञान में degree प्राप्त की। डॉ. अम्बेडकर ने कुल 32 शैक्षणिक degrees हासिल कीं जो अपने आप में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
Graz IN में कानून की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने London School of Economics (LSE) में उच्च अर्थशास्त्र की degree भी हासिल की। 1923 में London School of Economics ने उनकी thesis को मान्यता दी और उन्हें doctor of science की उपाधि से सम्मानित किया। एक ही वर्ष में वे doctor और barrister दोनों बन गए।
अगर यह समझना है कि वो अपने लक्ष्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध थे, तो वो भी देख लेते हैं।
क़िफायत से रहने के लिए लंदन में वे हमेशा पैदल चलते थे। खाने पर पैसे ख़र्च ना हों, ये सोच कर वे कई बार भूखे रह जाते थे। लेकिन पढ़ाई पर उनका पूरा ध्यान लगा रहता।
लंदन में बाबा साहेब आंबेडकर के roommate होते थे असनाडेकर। वे अम्बेडकर से कहते, ''अरे अम्बेडकर, रात बहुत हो गई है। कितनी देर तक पढ़ते रहोगे, कब तक जगे रहोगे? अब आराम करो, सो जाओ।"
Lieutenant धनंजय कीर की लिखी डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर की जीवनी में इसका ज़िक्र मिलता है। अंबेडकर अपने roommate को जवाब देते, ''अरे, मेरे पास खाने के लिए पैसे और सोने के लिए समय नहीं है। मुझे अपना कोर्स जल्द से जल्द पूरा करना है। कोई दूसरा रास्ता नहीं है।''
इससे यह पता चलता है कि डॉ. अंबेडकर अपने लक्ष्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध थे।
वो समय आ चुका था, जिसका भीमराव को बड़ी शिद्दत से इंतजार था, देश आजाद हो चुका था और उनकी शिक्षा भी पूर्ण हो चुकी थी...
भीमराव के जुनून ने उन्हें वो पद दिला दिया, जिसकी उन्हें आकांक्षा थी। देश के संविधान निमार्ण कार्य की नींव रखी जा रही थी।
जिसके अन्य निर्माताओं के साथ उनका भी नाम था। बल्कि अत्यधिक शिक्षित और काबिल वही थे तो नाम मुख्य निर्माता में शामिल था।
बस फिर क्या था, बहुत से नियम-कानून के साथ-साथ उन्होंने निम्न जाति के उत्थान के लिए कई कानून बना दिए, जिसमें आरक्षण देने का प्रावधान, मील का पत्थर साबित हुआ।
हालांकि उन्होंने आरक्षण का प्रावधान केवल दस साल के लिए बनाया था, क्योंकि किसी का भी उत्थान करना हो, तो उसके लिए 10 साल की लंबी अवधि more than enough है।
उनका आरक्षण देने का मुख्य उद्देश्य, निम्न जाति के लोगों को समान अवसर प्रदान कराना था, जिससे योग्य व्यक्ति का विकास हो सके।
इतने सालों के आरक्षण से समान अधिकार दिलाने का कार्य पूर्ण हो चुका है।
पर राजनीतिक ध्रुवीकरण के लाभ को बरकरार रखने के कारण आज भी जातिगत आरक्षण यथावत वैसे ही चल रहा है।
अपनी जाति, अपने समाज को सर्वप्रथम रखना और उसका उत्थान करना, यही वजह है कि भीमराव अंबेडकर को आज भी लोग जानते हैं, पूजते हैं। जगह-जगह उनकी मूर्ति लगी है, उनके नाम से शहर हैं, universities हैं और उनके जन्मदिवस के उपलक्ष्य में अवकाश भी घोषित किया गया है।
इसलिए कहा जाता है कि काम करो तो भीमराव जैसा, अर्थात सिर्फ अपने विकास के लिए न सोचें, बल्कि उत्थान अपनी, सम्पूर्ण जाति, समाज और देश का करने का सोचें...
पर जब हम बाबा भीमराव अम्बेडकर को इतना सम्मान देते हैं तो वही मान हमें उनकी दूरदर्शिता और सोच को भी देना चाहिए।
उनकी सोच थी कि योग्य व्यक्ति को अवसर मिलने चाहिए, चाहे उसके पास साधन हो या न हो, या वो किसी भी जाति धर्म हो।
क्योंकि योग्यता ही देश को सफल बनाने के लिए आवश्यक है।
अतः अब आरक्षण केवल साधन विहीन योग्य व्यक्ति को ही मिलना चाहिये।
जिससे देश का सर्वांगीण विकास हो और देश सही मायने में आजादी के मतवालों और बाबा भीमराव अंबेडकर के सपनों का भारत बने...
जय हिन्द, जय भारत 🇮🇳