Wednesday 22 July 2020

Short Stories : बारिश

बारिश

किशन को हमेशा से बारिश का मौसम सबसे अच्छा लगता था।

उमड़- घुमड़ आए काले बादल, जिससे दोपहर भी शाम सी हो जाती थी।

फिर तेजी से बिजली का कड़कना, माँ का उसे अपने आंचल में छुपा लेना।

तभी मूसलाधार बारिश का होना, और उसका झूमकर नाचना।

फिर बहुत ही स्वादिष्ट भजियोँ की खूशबू का  उन पलों में चार चांद लगाना

उसकी खुशबू से दोस्तों का खिंचा आना

फिर पूरी टोली का बारिश में मस्त हो कर नहाना, और साथ ही भजिए का लुत्फ उठाना

यह सब उसे बारिश में दीवाना बना देता था।

पर यह कैसी बरखा? 

जिसमें बादल भी आए, बिजली भी कड़की, बरखा भी बड़ी जोर से थी बरसी, माँ ने वो स्वादिष्ट भजिए भी बनाए....

पर इस मुए कोरोना के कारण एक दोस्त भी ना आए...

माँ ने सोचा, आज तो उसके लाडले की आंखों से भी बरसात होगी, वो कैसे उन्हें रोक सकेगी?

पर नहीं, किशन बस एक टक बारिश देख रहा था, और भी ज्यादा बड़ी‌- बड़ी आंखें खोल कर।


ए किशन, क्या देख रहा है रे, इतनी बड़ी- बड़ी आंखें खोल कर, माँ ने पूछा

माँ, गिन रहा हूँ, बारिश की कितनी बूंदें गिर रही हैं।

सबसे मैंने कहा है, अगली साल दोगुनी हो कर गिरना, जो कुछ कमी रह गयी है। उसको पूरी करना।

इसलिए, बड़ी- बड़ी आंखें खोल कर देख रहा हूँ, कोई छूट ना जाए, मुझे मूर्ख ना बनाएं।

किशन की मासूमियत, विश्वास, जोश और उम्मीद ने उनके मन में कोरोना से लड़ने का नया उत्साह भर दिया।

वो सोचने लगी, कितनी बड़ी बात उनके लाडले की मासूमियत ने कह दी, 

यह तो हम पर है कि हम थक कर हार कर जिंदगी से मायूस हो जातें हैं, या दोगुने जोश, उत्साह और उमंग से आने वाली खुशियों का इंतजार करते हैं। उन्हें पूरी करने की कोशिश करते हैं।

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