Monday 21 December 2020

Story of Life : बहू का हिसाब (भाग-5)

 बहू का हिसाब (भाग-1),

बहू का हिसाब (भाग -2),

बहू का हिसाब (भाग -3 ) और

बहू का हिसाब (भाग - 4) के आगे.

बहू का हिसाब (भाग-5)



अरे यार, यह क्या तमाशा कर रही हो? सब अच्छे से तो चल रहा था। सूरज ने झल्लाकर सुलक्षणा से कहा।

नहीं चल रहा था और बहुत अच्छे से चले, शायद इसलिए ही मैं इस घर में आई हूँ, सुलक्षणा ने विन्रम शब्दों में कहा।

फिर सुलक्षणा सब की तरफ मुखातिब होते हुए बोली, अब आप लोग परेशान और नाराज़ ना हों।

सबसे पहले तो आप सब मुझे यह बताएं कि  इन दो दिनों में किस को क्या खाना है, और कितना खाना है, यह भी बताएं, जिससे उतना ही बना दूँ।

आप सबको आप की पसन्द का खाना मिलेगा।

रमा जी गुस्से से बोलीं, क्या खाना है, वो ठीक है। पर कितने से क्या मतलब है तुम्हारा? किसी चीज की कोई नहीं है हमारे घर में, जो नापतोल कर बने।

माँ जी, हिसाब से बनने से स्वाद भी अच्छा आता है और व्यर्थ का खाना भी बर्बाद नहीं होता।

तुम और तुम्हारा हिसाब!

प्रेम प्रकाश जी बोले, बेटा तुम्हे परेशान होने की जरूरत नहीं है, खाना दो दिन बाहर से order कर लेंगे, और काम के लिए भी कुछ लोगों को hire कर लेंगे।

नहीं पापा जी, मैं सब manage कर लूंगी।

अच्छा तो सुनों, मुझे माँ के हाथ का बना पोस्ता बादाम का हलवा खाना है। सूरज चहकता हुआ बोला।

पोस्ता बादाम का हलवा! 

अरे उसमें तो बहुत मेहनत है। आ जाने दे cook को, तुरन्त बनवा दूंगी।

माँ जी आप मुझे बता दीजिए, मैं बना दूंगी।

नहीं..... माँ से अच्छा कोई उसे नहीं बना सकता। सूरज ने रमा जी की तरफ, बड़े प्यार से देखते हुए कहा।

Ok माँ, मैं तैयारी कर दूंगी, आप बना दीजिएगा। फिर सबने अपनी-अपनी पसंद का खाना बता दिया।

आप सभी को एक काम करना है, अपनी cupboard में से वो कपड़े निकाल देना है, जो आप कभी नहीं पहनेंगे।

अगले दिन सुलक्षणा ने जल्दी उठकर सारा काम खत्म कर दिया।

सब अपनी पसंद का नाश्ता करके बहुत खुश हुए, नमक- तेल मसाले सब बिल्कुल सही amount में थे। और breakfast बहुत yummy था।

प्रेमप्रकाश जी व सूरज का tiffin भी pack था।

सूरज बोलकर गया, आज जल्दी घर आऊंगा, माँ के हाथ का हलवा जो खाना है।

सुलक्षणा ने सबके अलग किये हुए कपड़े इकठ्ठा कर के एक तरफ रख दिए। सारे एकदम नये और बहुत costly थे।

शाम को सुलक्षणा और रमा जी ने हलवा बनाने की तैयारी शुरू कर दी। आज रमा जी पूरे 15 साल बाद हलवा बना रहीं थीं।

जब प्रेम प्रकाश जी और सूरज घर आए, उस समय पूरा घर हलवे की खुशबू से महक रहा था।

सब खाना खाने बैठे तो, सुलक्षणा ने सबको खाने के साथ थोड़ा थोड़ा हलवा भी दिया।

अरे ठीक से दो सूरज को, इतने से क्या होगा?

माँ, यह finish कर लें, फिर और दे दूंगी। एक साथ ज्यादा लेने से बचने पर waste होता है।

तुम और तुम्हारा हिसाब। हद है भाई!

सब खाना खाने लगे, जब सबने हलवा खाया तो सब एक साथ बोल उठे," मज़ा आ गया"। 

सब ने हलवा, बार बार लिया और सूरज ने तो जितनी बार लिया, उतनी बार कहा, माँ आप का जवाब नहीं, सच! आप से ज्यादा tasty इसे कोई नही बना सकता है।

रमा जी, इतनी तारीफ सुनकर, बहुत खुश हुईं।

आज उन्हें भी एहसास हुआ था कि एक साथ बहुत देने के बजाय, हिसाब से देने से खाना ज्यादा स्वादिष्ट लगता है और व्यर्थ बर्बाद भी नहीं होता है।

दूसरा दिन भी, हंसी खुशी और तारीफ में बीत गया।

सारे servant अपनी list के साथ आ गये थे।

सुलक्षणा ने घर के हर काम के लिए सिर्फ 2-2 लोगों को काम दिया।

उनमें से 4 लोगों को घर के सब लोगों के ऊपर के काम के लिए भी रखा। 

जिनका एक काम यह भी था कि किसी के कमरे में बिना बात के lights, fan and ac ना चले। पानी कहीं waste ना हो।

खाना के लिए तैयारी servant करते और खाना सुलक्षणा खुद बनाती, जिससे खाने में उचित मात्रा में तेल-मसाले पड़े । जिससे खाना स्वास्थ्यवर्धक हो, स्वादिष्ट हो, साथ ही आवश्यकता से अधिक ना बने।

सारे servant को काम देने के बाद भी 20 servent बच गए।

उसने 10 लोगों को रमा जी से हलवा सीखने को कहा।

बाकी बचे 10 लोगों को कहा, आप को एक हफ्ते बाद आप का काम दिया जाएगा।

तब तक आप घर के काम में मदद करें और माँ जी से हलवा बनाना सीखें।

अगले दिन उसने प्रेम प्रकाश जी से बात करके दो showroom बनावाने को कह दिया।

1 हफ्ते बाद एक में रमा जी के हलवे को market में launch कर दिया।

दूसरे में हटाए गए कपड़ों को बहुत कम rate पर rent पर देना शुरू कर दिया।

बस कपड़े rent पर लेने की शर्त, यह रहती थी कि कपड़ों को ठीक condition में रखना होता था, वरना आगे नहीं मिलेंगे।

जिससे गरीब लोग भी शादी-विवाह में अच्छे कपड़े पहनने का सुख ले सकें।

उन सारे 20 servants में से कुछ को हलवा बनाने का काम, कुछ को दोनों showrooms में काम करने की job दें दी।

अब घर में, व्यर्थ की बरबादी नहीं हो रही थी।

घर के सब लोग संतुष्ट थे। नौकर भी अपनी मर्जी का काम करके प्रसन्न थे।

कुछ दिन में ही, प्रेम प्रकाश जी के धन और सम्मान में बहुत वृद्धि होने लगी। साथ ही रमा जी के हलवे की धूम सब जगह मचने लगी, उनका नाम भी एक celebrity में शामिल होने लगा।

रमा जी ने सुलक्षणा को बुला कर सबके सामने अपना खानदानी  खजाना उसे दे दिया और कहा, बहू, धनाढ्य घर से लाने के बजाय संस्कारी घरों से लानी चाहिए। जो बुद्धिमान और संस्कारी हों, वो घर में मान-सम्मान और प्रेम सब ला सकती है।

आज तेरे हिसाब- किताब ने हमारे खानदान का मान सम्मान सब और बढ़ा दिया।

आज से हमेशा के लिए घर, मेरी बहू के हिसाब से चलेगा।

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