आज सर्वपितृ अमावस्या है। अपने पूर्वजों की अर्चना-आराधना करने का विशेष दिन...
क्या होता है सर्वपितृ अमावस्या, और क्यों होता है यह विशेष?
पितृपक्ष का आखिरी दिन सर्वपितृ अमावस्या कहलाता है। सर्वपितृ इसलिए क्योंकि इस दिन हम अपने सभी पितरों का श्राद्ध-तर्पण आदि क्रिया विधि कर सकते हैं, हमें जिनकी तिथि पता हो या न हो।
सर्वपितृ अमावस्या
• Date (Vikram Samvat) :
हिन्दी calendar के अनुसार हर महीना 15-15 दिनों के 2 पक्षों (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) में बंटा होता है।पितृपक्ष भी 16 दिनों में विभाजित होता है।
अगर आप के पूर्वजों की तिथि, इन 15 दिनों में से किसी एक दिन होती है और आपको ज्ञात है तो श्राद्ध तर्पण आदि क्रिया विधि उस दिन विशेष में होती है।
पर अगर तिथि नहीं ज्ञात है, तो क्या पूर्वजों की पूजा अर्चना नहीं कर सकते हैं?
कर सकते हैं, और उसी स्थिति के प्रावधान (व्यवस्था) के लिए सर्वपितृ अमावस्या रखी गई है, जिसमें आप अपने सभी पूर्वजों की पूजा-अर्चना कर सकें।
सभी तिथियों से सर्वपितृ अमावस्या को विशेष महत्व दिया जाता है, क्योंकि यह एक ऐसी तिथि है, जिस दिन आप अपने सभी पूर्वजों की पूजा, अर्चना, श्राद्ध तर्पण आदि क्रिया विधि कर सकते हैं। फिर चाहे वो पूर्वज पुरुष हों या स्त्री... वैसी स्त्री पूर्वजों के लिए मातृ नवमी तिथि का भी प्रावधान है।
यूँ ही नहीं हिन्दू धर्म को सत्य-सनातन और सर्वश्रेष्ठ कहते हैं, अपितु यह है क्योंकि सिर्फ और सिर्फ हिन्दू धर्म ही है, जहाँ सब को पूजा जाता है, सम्मान दिया जाता है।
• Why these ‘16’ days?
अब एक सवाल और आता होगा आपके मन में, कि यह 16 दिन श्राद्ध पक्ष के लिए क्यों चुने जाते हैं।
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध पक्ष वह अवधि है जब पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं। और सर्व पितृ अमावस्या पर पितृ पृथ्वी छोड़कर अपने लोक लौट जाते हैं। अतः यह दिन, हिंदू धर्म में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
• More about Garud Puran :
अब यह गरुड़ पुराण क्या है और किसने लिखी है?
गरुड़ पुराण वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित एक महापुराण है। इसकी रचना गुरु वेदव्यास जी ने की है।
यह सनातन धर्म में मृत्यु के बाद सद्गति प्रदान करने वाला माना जाता है। अतः सनातन हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण के श्रवण (सुनने) का प्रावधान है।
इस पुराण के अध्भयक्ष भगवान विष्णु हैं। इसमें भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार, निष्काम कर्म की महिमा के साथ यज्ञ, दान, तप तीर्थ आदि शुभ कर्मों में सर्व साधारण को प्रवृत्त (तत्पर) करने के लिये अनेक लौकिक और पारलौकिक फलों का वर्णन किया गया है।
इसके अतिरिक्त इसमें आयुर्वेद, नीतिसार आदि विषयों के वर्णन के साथ मृत जीव के अन्तिम समय में किये जाने वाले कार्यों का विस्तार से व्यवस्थित वर्णन किया गया है। आत्मज्ञान का interpretation भी इसका मुख्य विषय है।
• Summary :
तो आप को ज्ञात हो गया होगा कि सर्वपितृ अमावस्या क्या है और क्यों महत्वपूर्ण है तो अपने सभी पूर्वजों की पूजा अर्चना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। आपकी कर्मकांड करने की इच्छा न हो तो 10-15 minutes के लिए उनका मनन ध्यान तो कर सकते हैं, उनके नाम से प्रसाद तो चढ़ा सकते हैं, जैसे ईश्वर को चढ़ाते हैं।
जैसे ईश्वर की पूजा-अर्चना करते हैं, वैसे ही अपने पितरों की भी अवश्य कीजिए। ईश्वर के लिए हम सभी समान हैं, इसलिए उनकी कृपा भी सब पर एक समान होगी। किन्तु पितर आपके अपने पूर्वज हैं, इसलिए आप पर उनकी विशेष कृपा रहेगी।
सभी पूर्वजों को ह्रदय से आभार, दंडवत प्रणाम... आप सभी का आशीर्वाद सदैव बना रहे 🙏🏻
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