Friday, 20 April 2018

Article : सुख आपकी मुट्ठी में

सुख आपकी मुट्ठी में                 

सुख क्या है? कहाँ है? कोई नहीं जानता? वो ना तो महलों में है, ना झोपड़ों में, ना संपन्नता में हैना ही विपन्नता में, तो है कहाँ?

नहीं, मैं भी नही जानती।  

लेकिन अपने अनुभवों और बड़े बुजुर्गों की नसीहतों से यही ज्ञात हुआ है कि, सुख आपकी मुट्ठी में ही है,

क्या हुआ? हैरानी हो रही है? चलिये हम बताते हैंकैसे।  

बस एक शब्द अपनी ज़िंदगी से बाहर निकालना है, वो है तुलना(बराबरी)।  

जी हाँ, बस यही एक शब्द है, जो हमारी भरी हुई मुट्ठी को खाली कर देता है।  

कभी किसी से तुलना नही करनी चाहिए, क्योंकि हम जब किसी से तुलना करते हैं, तो बहुत ज्यादा पक्षपाती हो जाते हैं, हम जिससे तुलना कर रहे होते हैं, उसकी केवल उन्हीं बातों या आदतों पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं, जो हमारे पक्ष में हैं, और उन बातों को बड़ी आसानी से नज़र-अंदाज़ कर देते हैं, जो हमारे विपक्ष में हैं।  
ऐसा कैसा हो सकता है, कि कोई सर्वगुण सम्पन्न हो, और दूसरा सर्वगुण विपन्न हो, आखिर सबको बनाया तो एक ही ईश्वर ने है, वो पक्षपाती नहीं हैं, उनके लिए सब समान हैं।

हमारी असन्तुष्टता का सबसे बड़ा कारण तुलना ही है, वो भी एकपक्षी, क्योंकि कुछ भी grey हीं होता है, हर तथ्य में एक पक्ष सफेद होता है, तो एक काला भी होता है, हर बात के पीछे कोई न कोई कारण भी होता है, कोई सफल है, धनवान है, प्रसिद्ध है या सब का प्रिय है, तो उसके पीछे 

उसका अथक परिश्रमत्याग, अपनापन, समय की प्राथमिकता, बड़ो की सेवा से मिला आशीर्वाद भी शामिल होता है

अगर आप दोनों पक्षों को समभाव से देखते हैं, और वही आपके जीवन का लक्ष्य है, तो पूर्ण प्रयास रें, कदापि आप उससे भी अधिक सफल हो जाएँ, अन्यथा एकपक्षीय  तुलना करके, आप अपने सुखहाल जीवन को दुख के अंधकार में ढकेल देते हैं, और मृगतृष्णा के पीछे भागते भागते थक जाते हैं, जिससे ईश्वर ने जो आपको अच्छा दिया है, उसे भी गवां देते हैं