Monday, 12 June 2023

Short story: ईश्वर की चिंता

 ईश्वर की चिंता  


एक छोटे से शहर में एक बहुत माना हुआ, हनुमानजी का सिद्ध मंदिर था। 

दूर-दूर तक उसकी मान्यता के चर्चे थे। जिसके कारण, हर रोज ही मंदिर में बहुत भीड़ रहा करती थी।

उसी शहर में रतन भी रहता था, जो कि हनुमानजी का बहुत बड़ा भक्त था और हर हफ्ते मंदिर में दर्शन करने आता था।

पर वो अन्य भक्तों से अलग था, वो मंदिर दर्शन करने इसलिए नहीं आता था कि उसे हनुमानजी से कुछ मांगने की चाह थी या उसे उनसे शिकायत करनी होती थी।

वो अलग ही था, उसकी सोच अलग ही थी।

वो उस दिन भीड़ को चीरता हुआ, किसी भी रोक-टोक की परवाह किए बगैर, हनुमानजी के चरणों में पहुंच जाता था।

और हनुमानजी के चरणों को दबाते हुए पूछा करता था, हे प्रभु, आप ठीक तो हैं? लोगों के दुःख-दर्द सुन सुनकर बहुत अधिक दुःखी तो नहीं हो गए? 

लोगों के कष्ट निवारण करते-करते थक तो नहीं गए? 

लोगों की ढेरों शिकायतें सुन-सुनकर कुपित तो नहीं हो गए? 

मजे में तो हैं ना?

आप के तो हजारों भक्त हैं, सभी आपके आसरे हैं। सबका ही भला करिएगा। आपके बिना सभी बेसहारा हैं, उनका साथ कभी ना छोड़िएगा। अपनी कृपा दृष्टि सब पर बनाकर रखियेगा 🙏🏻

अब चलता हूं, अगले हफ्ते फिर आऊंगा, तब तक अपना ध्यान रखिएगा। 

यह कहकर, वो अपने साथ लाए प्रसाद से हनुमानजी को भोग लगाता, फिर उस प्रसाद को मंदिर में सबको बांट देता। 

और फिर अगले हफ्ते आकर यही सब करता, यही उसके मंदिर आने का ध्येय था। 

मंदिर में आकर, उसके हनुमानजी के चरणों तक पहुंच जाने का बहुत लोग विरोध भी करते थे। 

ऐसे लोगों को मंदिर के पुजारी सिर्फ इतना कहते थे कि तुम सब अपनी चिंता से निहित होकर मंदिर आते हो। 

पर रतन, हनुमानजी का सच्चा भक्त और हितेषी है। वो उनकी चिंता में मंदिर आता है।

जिसे ईश्वर से कोई शिकायत ना हो, जिसे ईश्वर से कोई चाह नहीं हो, जो मंदिर सिर्फ इसलिए आता हो, कि उसे ईश्वर की चिंता हो, उसका स्थान तो हम से भी ऊपर है, उसका हक हम से भी ज्यादा है। 

जब तुम लोग भी ईश्वर की चिंता में आओगे, उस दिन तुम भी उनके चरणों तक अपने आप पहुंच जाओगे, क्योंकि तब ईश्वर खुद तुम्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें देंगे🙏🏻