Friday, 20 December 2019

Story Of Life : पड़ाव (भाग-4)

पड़ाव (भाग-1)...
पड़ाव (भाग-2)... और 
पड़ाव (भाग-3)... के आगे  
पड़ाव (भाग-4) 

पति जब अन्दर आए, तो उनके बालों में आई सफेदी मुझे बहुत भा रही थी।

जब मैंने उनकी तरफ पति को इशारे से बताया, तो वो झेंपते हुए बोले, अरे तुम्हारे बेटे की सुनता तो वो इन्हें भी काले कर देता। पर उम्र से इस पड़ाव पर थोड़ी सफेदी अच्छी लगती है, तुम्हें नहीं लगी?

मैं उनके नज़दीक जाकर बोली, मुझे आज सारे प्रोग्राम में सबसे अच्छी यही लगी। उन्होंने ज़ोर से ठहाका लगाया। फिर हम दोनों घंटों जीवन के उतार-चढाव के बारे में बात करते रहे।

बात करते-करते पति नींद के आगोश में चले गए, और मुझे हँसी आ गयी।

मैं अवलोकन करने लगी, कैसे जब मैं अल्हड़ थी, किस सोच की थी। मुझे राजकुमार चाहिए था, पर माँ की पसंद ने जीवन संवार दिया। 

पहली रात भी पति सो गए थे, तब कितना क्रोधित हुई थी, आज हँस रही हूँ।

जो सपने 1st anniversary के थे, वो 25th anniversary में पूरे हुए।

पर खुश तब भी नहीं थी, और आज भी वो खुशी नहीं मिली।

शायद इसलिए क्योंकि आज मन कथा की सोच रहा था। 

फिर लगा, ज़िंदगी के हर पड़ाव की इच्छा भी अलग होती है, और खुशी भी। 

क्योंकि अनुभव तब तक जीवन की हकीकत समझा चुका होता है।

खुशी अपनों के साथ, ईश्वर की कृपा और संतुष्टि में ही है, बाकी तो सब क्षण भंगुर है। आज मैं ऐसे पड़ाव पर आ चुकी हूँ, जहाँ से जीवन क्या है, साफ दिखता है।