Monday, 9 December 2019

Poem : फैशनेबल नारी


आज कल की शीत लहरी में भी शादी-विवाह के आयोजनों में फैशनेबल नारियों के परिधान पर हास्य की मीठी फुहार


फैशनेबल नारी 





आई जब से शीत सुहानी,
निकली पुरुषों की कोट, शेरवानी
पर हमारी फैशनेबल नारी,
पहने अभी भी झींनी साड़ी,
सोच-सोच शीत का, बुरा है हाल
नारी कैसे है, इतनी कमाल?
उम्र भले हो, पचपन की इनकी,
दिखना चाहें सोलह साल,
वो क्या जाने, अन्दर अन्दर
नारी भी कितना ठिठुरती है, 
सोलह साल की दिखने के लिए,
जतन वो कितने करती है,
दिखावे को ही, गर्म वस्त्र बनाती
दिखावे से ही शीत बचाती है,
लेकिन वापस घर पहुंँचकर, 
छींक छींक मर जाती है।