Monday, 10 January 2022

Poem : ना जाने कब तक....

 ना जाने कब तक....


यह मास्क जब चेहरे से हटेंगे,

दुनिया के रुख बदल चुके होंगे,

किसी का बचपन गुजर चुका होगा,

कहीं जवानी ढल चुकी होगी।

कहीं रौनक-ए-बहार होगी,

कहीं ढल चुकी बयार होगी,

शायद कुछ चेहरे,

इतने भी बदल जाएं कि,

वो पहचान में भी ना आएं।

ना जाने कब तक हमें,

यूं कैद में रहना होगा,

ना जाने कब तक,

अपनों के बिना जीना होगा।

ना जाने कब तक हमें हसरतें,

यूं सीने में दबानी होगी,

ना जाने कब तक मास्क को,

अपनी निशानी बनानी होगी,

ना जाने कब तक....।।