Tuesday, 8 December 2020

Articles : किसान बिल पर हाय-तौबा क्यों?

 किसी भी देश का विकास करना है तो उसके दो मुख्य घटक होते हैं -

अर्थव्यवस्था और देश की सुरक्षा।

जब से मोदी सरकार आयी है, अपने देखा होगा, हमारी देश की सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ हो गई है। आज दुश्मन देश, भारत की ओर आंख उठाकर नहीं देख सकते हैं।

जिस चीन, आतंकवाद और पाकिस्तान ने भारत पर दहशत कायम कर रखी थी, आज उनके हर मनसूबों को सेना सफलता पूर्वक ध्वस्त कर रही है और आज दहशत वहाँ कायम हो गई है।

मोदी सरकार ऐसा इसलिए कर सकी क्योंकि सेना को बरगलाना आसान नहीं था।

अब अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है, क्योंकि, भारत एक कृषि प्रधान देश है, और यदि सही मायने में देश का विकास करना है तो किसानों का विकास अति आवश्यक है।

अतः उसी को मद्देनज़र किसान बिल पारित किया गया है।

किसान बिल पर हाय-तौबा क्यों?



किसान बिल पर हाय-तौबा क्यों? क्या है सरकार का दावा और विपक्ष का विरोध, चलिए इसे समझने की कोशिश करते हैं-

मोदी सरकार ने लोकसभा में तीन कृषि विधेयकों को पारित किया जिसको लेकर जबरदस्त विरोध हो रहा है। यहां तक कि बीजेपी के साथ गठबंधन वाली पार्टियां भी इसका विरोध कर रही हैं। सरकार पर किसान विरोधी होने का आरोप लग रहा है।

1. कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020 (The Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, 2020):  प्रस्तावित कानून का उद्देश्य किसानों को अपने उत्पाद नोटिफाइड ऐग्रिकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (APMC) यानी तय मंडियों से बाहर बेचने की छूट देना है। इसका लक्ष्य किसानों को उनकी उपज के लिये प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक व्यापार माध्यमों से लाभकारी मूल्य उपलब्ध कराना है। इस कानून के तहत किसानों से उनकी उपज की बिक्री पर कोई सेस या फीस नहीं ली जाएगी।

लाभ 

यह किसानों के लिये नये विकल्प उपलब्ध करायेगा। उनकी उपज बेचने पर आने वाली लागत को कम करेगा, उन्हें बेहतर मूल्य दिलाने में मदद करेगा। इससे जहां ज्यादा उत्पादन हुआ है उस क्षेत्र के किसान कमी वाले दूसरे प्रदेशों में अपनी कृषि उपज बेचकर बेहतर दाम प्राप्त कर सकेंगे।

विरोध

यदि किसान अपनी उपज को पंजीकृत कृषि उपज मंडी समिति (APMC/Registered Agricultural Produce Market Committee) के बाहर बेचते हैं, तो राज्यों को राजस्व का नुकसान होगा क्योंकि वे 'मंडी शुल्क' प्राप्त नहीं कर पायेंगे। यदि पूरा कृषि व्यापार मंडियों से बाहर चला जाता है, तो कमीशन एजेंट बेहाल होंगे। लेकिन, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है, किसानों और विपक्षी दलों को यह डर है कि इससे अंततः न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) आधारित खरीद प्रणाली का अंत हो सकता है और निजी कंपनियों द्वारा शोषण बढ़ सकता है।

किसान अनुबंध विधेयक 2020

मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020 (The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement of Price Assurance and Farm Services Bill, 2020) : इस प्रस्तावित कानून के तहत किसानों को उनके होने वाले कृषि उत्पादों को पहले से तय दाम पर बेचने के लिये कृषि व्यवसायी फर्मों, प्रोसेसर, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ अनुबंध करने का अधिकार मिलेगा।

लाभ

इससे किसान का अपनी फसल को लेकर जो जोखिम रहता है वह उसके उस खरीदार की ओर जायेगा जिसके साथ उसने अनुबंध किया है। उन्हें आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट तक पहुंच देने के अलावा, यह विपणन लागत को कम करके किसान की आय को बढ़ावा देता है।

विरोध

किसान संगठनों और विपक्षी दलों का कहना है कि इस कानून को भारतीय खाद्य व कृषि व्यवसाय पर हावी होने की इच्छा रखने वाले बड़े उद्योगपतियों के अनुरूप बनाया गया है। यह किसानों की मोल-तोल करने की शक्ति को कमजोर करेगा। इसके अलावा, बड़ी निजी कंपनियों, निर्यातकों, थोक विक्रेताओं और प्रोसेसर को इससे कृषि क्षेत्र में बढ़त मिल सकती है।

असेंशियल कमोडिटी बिल 2020

आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 (Essential Commodities (Amendment) Bill 2020): यह प्रस्तावित कानून आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, प्याज और आलू जैसी कृषि उपज को युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि व प्राकृतिक आपदा जैसी 'असाधारण परिस्थितियों' को छोड़कर सामान्य परिस्थितियों में हटाने का प्रस्ताव करता है तथा इस तरह की वस्तुओं पर लागू भंडार की सीमा भी समाप्त हो जायेगी।

लाभ और सरकार का पक्ष

इसका उद्देश्य कृषि क्षेत्र में निजी निवेश / एफडीआई को आकर्षित करने के साथ-साथ मूल्य स्थिरता लाना है। 

विरोध

इससे बड़ी कंपनियों को इन कृषि भंडारण की छूट मिल जायेगी, जिससे वे किसानों पर अपनी मर्जी थोप सकेंगे। 

सरकार का पक्ष

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि किसानों के लिये फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था जारी रहेगी। इसके अलावा, प्रस्तावित कानून राज्यों के कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) कानूनों का अतिक्रमण नहीं करता है। ये विधेयक यह सुनिश्चित करने के लिये हैं कि किसानों को मंडियों के नियमों के अधीन हुए बिना उनकी उपज के लिये बेहतर मूल्य मिले। उन्होंने कहा कि इन विधेयकों से यह सुनिश्चित होगा कि किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम मिले, इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और निजी निवेश के साथ ही कृषि क्षेत्र में अवसंरचना का विकास होगा और रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

अब बात करते हैं कि, इस बिल का विरोध सबसे पहले पंजाब और हरियाणा से क्यों हुआ -

क्योंकि MSP का लाभ यहाँ के किसानों को above 90% है, जबकि अन्य राज्यों के किसानों को मात्र 6% .

हम सब में से कोई भी व्यक्ति, जो किसान नहीं है, वो नहीं समझ सकता है कि, इस बिल का साथ दिया जाए या विरोध किया जाए।

पर अपने किसान साथियों को सिर्फ इतना कहना है कि, आप को जो कुछ भी करना है, उसका निर्णय स्वयं लें।

किसी भी राजनीतिक दबाव और celebrity की बात मत सुनिए, यह आज साथ हैं, कल पहचानेंगे भी नहीं।

पर आप का निर्णय, आप के जीवन को सदैव प्रभावित करेगा।

कहीं ऐसा ना हो कि आपका एक ग़लत फैसला, आप के विकास में बाधा बन जाए।

जय जवान, जय किसान 👮 ⛏️