Friday, 8 March 2019

Poem : नारी हूँ मैं


नारी हूँ मैं



नारी हूँ मैं, अबला नहीं
चिंगारी हूँ मैं, कोयला नहीं
धरा से नभ तक हूँ फैली
अब ना मैं, बैठी रोती अकेली
ठानूँ जो, कर के दिखाऊँ
कंधे से कंधा मिलाऊँ  
क्षेत्र कोई बाकी नहीं
जिसमें, मैं दिखती नहीं
हो खेलकूद, या हो जंग
लोहा लेती मैं सबके संग
ज्ञान हो, या हो विज्ञान  
है, इसमें भी मेरी पहचान 
घर के हों या बाहर के काम
गूंजे चहूं ओर मेरा नाम
जिम्मेदारी हो या रुप रंग
संभाल लूं, सबको एक संग
संपूर्णता मुझ बिन अधूरी
हर बात की मैं हूं धुरी
सृष्टि की सृजनकारी हूँ मैं
नारी हूँ मैं, नारी हूँ मैं

समस्त नारी को समर्पित( महिला सशक्तिकरण)
Happy women's day