आप को महाकुंभ महोत्सव Heritage segment में महाकुंभ से जुड़े तथ्य, आस्था और वैज्ञानिक रूप में share किया था।
अमृत स्नान क्यों किया जाता है, उसका विवरण विस्तार से share करते हैं....
प्रयागराज के त्रिवेणी संगम तट पर महाकुंभ महोत्सव आरंभ हो गया है।
आप ने सुना होगा कि महाकुंभ में शाही स्नान का विशेष महत्व होता है। पर क्या होता है शाही स्नान? कब-कब है शाही स्नान? और क्या महत्व है इसका?
हालांकि, इस बार से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने शाही स्नान का नाम, अमृत स्नान और पेशवाई का नाम कुंभ मेला छावनी प्रवेश कर दिया है।
तो जब नाम बदल ही दिया गया ,है तो शाही स्नान को हमने भी आगे अमृत स्नान ही लिखा है...
आइए जानते हैं, सब कुछ विस्तार से...
महाकुंभ के अमृत स्नान
महाकुंभ के दौरान कुल तीन अमृत स्नान होंगे, जिसमें से पहला मकर संक्रांति के दिन, 14 जनवरी को होगा। दूसरा, 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर और तीसरा 3 फरवरी को वसंत पंचमी के दिन किया जाएगा।
इसके अलावा माघी पूर्णिमा, पौष पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के दिन भी स्नान किया जाएगा, लेकिन इन्हें अमृत स्नान नहीं माना जाता है।
क्यों कहा जाता था इन्हें शाही स्नान?
1) अमृत स्नान (शाही स्नान) :
महाकुंभ के दौरान कुछ विशेष तिथियों पर होने वाले स्नान को "शाही स्नान" कहा जाता था। इस नाम के पीछे विशेष महत्व और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है। माना जाता है कि नागा-साधुओं को उनकी धार्मिक निष्ठा के कारण सबसे पहले स्नान करने का अवसर दिया जाता है। वे हाथी, घोड़े और रथ पर सवार होकर राजसी ठाट-बाट के साथ स्नान करने आते हैं। इसी भव्यता के कारण इसे शाही स्नान नाम दिया गया था।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में राजा-महाराज भी साधु-संतों के साथ भव्य जुलूस लेकर स्नान के लिए निकलते थे। इसी परंपरा ने शाही स्नान की शुरुआत की।
इसके अलावा यह भी मान्यता है कि महाकुंभ का आयोजन सूर्य और बृहस्पति जैसे ग्रहों की विशिष्ट स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है, इसलिए इसे "राजसी स्नान" भी कहा जाता है। यह स्नान आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है।
ऐसा माना जाता है कि ये पवित्र स्नान अनुष्ठान, या शाही स्नान, आत्मा को शुद्ध करते हैं और पापों को धो देते हैं, जिससे ये इस आयोजन का आध्यात्मिक आकर्षण बन जाते हैं।
2) महाकुंभ में स्नान करने के नियम :
स्नान करते समय 5 डुबकी ज़रूर लगाएं, तभी स्नान पूरा माना जाता है। स्नान के समय साबुन या shampoo का इस्तेमाल न करें, क्योंकि इसे पवित्र जल को अशुद्ध करने वाला माना जाता है।
3) यहाँ ज़रूर करें दर्शन :
महाकुंभ में कुंभ अमृत स्नान-दान के बाद बड़े हनुमान और नागवासुकी का दर्शन जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि कुंभ अमृत स्नान के बाद इन दोनों में से किसी एक मंदिर के दर्शन न करने से महाकुंभ की धार्मिक यात्रा अधूरी मानी जाती है।
4) महाकुंभ 2025 अमृत स्नान की तिथियां :
I. पौष पूर्णिमा - 13 जनवरी (सोमवार); स्नान
II. मकर सक्रांति - 14 जनवरी (मंगलवार); अमृत स्नान
III. मौनी अमावस्या - 29 जनवरी (बुधवार); अमृत स्नान
IV. बसंत पंचमी - 3 फरवरी (सोमवार); अमृत स्नान
V. माघी पूर्णिमा - 12 फरवरी (बुधवार); स्नान
VI. महाशिवरात्रि - 26 फरवरी (बुधवार); स्नान
5) अमृत स्नान का समय :
अमृत स्नान के लिए 13 अखाड़ों के बीच समय आवंटित किया जाता है, जिसमें शिविर छोड़ने, घाट पर अनुष्ठान स्नान करने और वापस लौटने के लिए आवश्यक समय शामिल होता है। महानिर्वाणी और अटल अखाड़ा सबसे पहले अमृत स्नान शुरू करेंगे, जो सुबह 5:15 बजे से सुबह 7:55 बजे तक निर्धारित है, जिसमें अनुष्ठान के लिए 40 मिनट निर्धारित हैं। उनके बाद, निरंजनी और आनंद अखाड़ों को सुबह 6:05 बजे से सुबह 8:45 बजे तक का समय आवंटित किया गया है, जिसमें प्रस्थान, स्नान करने और वापस लौटने की पूरी प्रक्रिया शामिल है।
6) अमृत स्नान के मुख्य आकर्षण :
कुंभ मेले के दौरान, कई समारोह होते हैं; हाथी, घोड़े और रथों पर अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस जिसे 'पेशवाई' कहा जाता था, अब इसका भी नाम बदलकर कुंभ मेला छावनी प्रवेश यात्रा कर दिया गया है।
'अमृत स्नान' के दौरान नागा-साधुओं की चमचमाती तलवारें और अनुष्ठान, और कई अन्य सांस्कृतिक गतिविधियाँ जो कुंभ मेले में भाग लेने के लिए लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती हैं।
7) अमृत स्नान का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व :
I. धार्मिक महत्व -
इस दिन सबसे पहले नागा साधु संगम में स्नान करते हैं। उनके बाद आम लोग स्नान कर सकते हैं। शाही स्नान को बेहद खास इसलिए माना जाता है क्योंकि इस दिन संगम में डुबकी लगाने से कई गुना ज्यादा पुण्य मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन स्नान करने से न सिर्फ इस जन्म के, बल्कि पिछले जन्म के पाप भी खत्म हो जाते हैं। इसके साथ ही पितरों की आत्मा को भी शांति मिलती है।
II. सांस्कृतिक महत्व -
महाकुंभ भारतीय समाज के लिए न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि भी बेहद महत्वपूर्ण है। इसमें अमृत स्नान के साथ मंदिर दर्शन, दान-पुण्य और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
महाकुंभ में भाग लेने वाले नागा साधु, अघोरी और सन्यासी हिंदू धर्म की गहराई और विविधता को दर्शाते हैं। महाकुंभ का यह आयोजन धार्मिक आस्था, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।