इस बार उर्दू के चंद लफ़्ज़ों को जोड़कर, एक नज़्म पेश करने का प्रयास किया है, आप पढ़कर बताएं कि प्रयास कितना सफल रहा...
तरन्नुम सी चलती रही...
ज़िंदगी ता उम्र,
यूं ही चलती रही।
कभी समाई मुठ्ठी में,
कभी रेत सी फिसलती रही।
गोया हम न कर सके,
नाज़ ज़िंदगी पर कभी।
क्योंकि चार कदम संभली,
कभी किसी लम्हा गिरती रही।
मगर शिकायत करें हम,
किस से भी क्या?
रिवायतें, सबकी ज़िंदगी में,
यह ही चलती रही..
ज़माने की महफ़िल में,
हैं मेहमां सभी।
मुकम्मल जिंदगी,
किसी को भी मिलती नहीं..
ज़िन्दगी में अश्क,
कभी हमने बहाए नहीं।
खुशी हो चाहे ग़म,
फ़र्क पड़ता नहीं।
हर ख़ुशी मुझको,
ग़म पर भारी लगी।
इसलिए जिंदगी अपनी,
तरन्नुम सी चलती रही...