Wednesday, 28 September 2022

India's Heritage : Navratri - why 9 nights?

 नवरात्र में नौ रात ही क्यों?


नवरात्रि में पूजा की नौ रात ही क्यों होती हैं? 

हिन्दू धर्म, को सर्वश्रेष्ठ धर्म माना गया है, पर क्यों?

ऐसा क्या विशेष है इसमें? क्यों इसे सनातनी कहा गया है?

क्या आप ने कभी सोचा है, ऐसा क्यों?

ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर आप गहराई में जाकर, हिन्दू धर्म का अध्ययन करेंगे तो आप पाएंगे कि हिन्दू धर्म में एक-एक विधि एक-एक पर्व अपने अंदर विज्ञान को समेटे हुए है। कोई भी तथ्य बिना किसी पुष्टि के हिन्दू धर्म में सम्मिलित ही नहीं है।

आज कल नवरात्र चल रहे हैं तो आज के विरासत अंक में हम नवरात्र के विशिष्ठ रुप पर ही बात करते हैं। 

आप जानते हैं कि, नवरात्रि चार बार आती है, दो गुप्त और दो सामान्य।

जिसमें गुप्त नवरात्रि, तांत्रिक लोग मनाते हैं, क्योंकि ऐसा माना गया है कि गुप्त नवरात्रि, तांत्रिक साधनाओं की सिद्धि के लिए होती है जबकि सामान्य नवरात्रि, शक्ति की साधना के लिए। 

कहा जाता है कि नवरात्रि में साधना करने से, उसके सफल होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

फिर ऐसा क्या कारण है कि नवरात्रि में पूजा-अर्चना के मात्र 9 दिन ही होते हैं? 

जब नवरात्रि में पूजा पाठ का इतना महत्व है तो 9 दिन से अधिक की नवरात्रि क्यों नहीं होती?

इसका बहुत बड़ा कारण है – प्राकृतिक कारण और शारीरिक कारण

नवरात्र के दौरान होने वाले महत्वपूर्ण परिवर्तन:

दरअसल इन नौ दिनों में, प्रकृति में विशेष प्रकार का परिवर्तन होता है और ऐसा ही परिवर्तन, हमारी आंतरिक चेतना और शरीर में भी होता है। प्रकृति और शरीर में स्थित शक्ति के महत्व को समझना ही शक्ति की आराधना का केंद्र बिन्दु है।

अगर आप विचार करेंगे तो आपको ज्ञात होगा कि चैत्र और आश्विन के नवरात्रि का समय ऋतु परिवर्तन का समय है।

ऋतु-प्रकृति का हमारे जीवन, चिंतन एवं धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। 

इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने बहुत सोच-विचार कर सर्दी और गर्मी की इन महत्वपूर्ण ऋतुओं के मिलन या संधिकाल को नवरात्रि का नाम दिया — चैत्र नवरात्र व शारदीय नवरात्र।

यदि आप नवरात्र के नौ दिनों अर्थात साल के 18 दिनों में सात्विक, फलहारी या निराहारी रहकर, (जैसा भी आप से सध सके) भक्ति भाव से माँ की आराधना करते हैं, तो आपका शरीर और मन पूरे वर्ष, निरोगी वो प्रसन्न रहता है। 

नवरात्र के नौ दिनों में जो व्यक्ति, माता की भक्ति या ध्यान करता है, माँ उसकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। बहुत से लोग संकल्प के साथ आराधना करते हैं। वे जो भी संकल्प लेकर नौ दिन साधना करते हैं, उनका वह संकल्प पूर्ण हो जाता है।

इस दौरान कठिन साधना का ही नियम है। कुछ लोग मन से अन्य नियम बनाकर भी व्रत या उपवास करते हैं, जो कि अनुचित है। जैसे कुछ लोग चप्पल पहनना छोड़ देते हैं, कुछ लोग सिर्फ खिचड़ी ही खाते हैं, इत्यादि। इस प्रकार के नियम साधना के उद्देश्य से अनुचित है। शास्त्र सम्मत व्रत ही उचित होते हैं। 

'नौ' अंक महत्वपूर्ण क्यों? 

अगर आप देखेंगे तो पाएंगे कि हिन्दू धर्म में सात अंक व नौ अंक का विशेष महत्व है।

लोक सात, आसमान सात, समुंद्र सात, हफ्ते में दिन सात, जन्म सात, शरीर में चक्र सात...

इन्हीं सात को सम्पूर्ण करता है, अंक नौ।

नौ ग्रह, नवरस, नवरत्न, पुराण भी नौ, गर्भावस्था के महीने भी नौ..

इसलिए अंकों में नौ अंक पूर्ण होता है, अर्थात नौ के बाद कोई अंक नहीं होता है। 

नौ ग्रहों का, हिन्दू मान्यता के अनुसार, महत्वपूर्ण स्थान होता है, क्योंकि किसी भी जीव के जीवन पर ग्रहों का विशेष प्रभाव पड़ता है।

अब आते हैं साधना पर, वो भी नौ दिन की ही उपयुक्त मानी गई है, जिसका पूरा सम्बन्ध मानव शरीर से जुड़ा हुआ है। 

कैसे? आइए, जानते हैं –

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि किसी भी मनुष्य के शरीर में सात चक्र होते हैं, जो जागृत होने पर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं, और मानव जीवन तभी सार्थक है, जब मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

नवरात्रि के नौ दिनों में से 7 दिन तो, चक्रों को जागृत करने की साधना के लिए होते है। 8वें दिन शक्ति को पूजा जाता है और 9वा दिन, सबसे विशेष होता है, क्योंकि यह दिन शक्ति की सिद्धि का होता है। शक्ति की सिद्धि यानि हमारे भीतर शक्ति का जागृत होना। अगर सप्तचक्रों के अनुसार देखा जाए तो यह दिन कुंडलिनी जागरण का माना जाता हैं। अर्थात् मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करने का दिन...

इसीलिए इन नौ दिनों को, हिन्दू धर्म ने, माता के नौ रूपों से जोड़ा है। शक्ति के इन नौ रूपों को ही मुख्य रूप से पूजा जाता है। वे नौ रूप हैं - शैलपुत्री देवी, ब्रह्मचारिणी देवी, चंद्रघंटा देवी, कूष्मांडा देवी, स्कंद माता, कात्यायनी देवी, मां काली, महागौरी और देवी सिद्धिदात्री।

माँ के हर रुप की अपनी विशेषता और महत्व है। इसलिए सभी दिनों में समभाव रुप से मातारानी की आराधना, उपासना व साधना करनी चाहिए।

जयकारा शेरावाली दा...

बोलो सांचे दरबार की जय...

बोलो अम्बे मात्र की जय... 

माता रानी जी की कृपा हम सब पर सदैव बनी रहे 🙏🏻🙏🏻