Thursday, 29 February 2024

Short story: पानी का मोल

 पानी का मोल


अमन बहुत बड़ा व्यापारी था, साथ ही उसे अपने पैसों का बहुत अधिक घमंड भी था। उसे लगता था कि दुनिया में कोई चीज ऐसी नहीं है, जिसका मोल नहीं लगाया जा सकता।

एक बार वह अपने दोस्तों के साथ राजस्थान घूमने के लिए निकला, उन्होंने कुछ पानी की बोतलें अपने साथ ले लीं। उसकी दोस्त अनिका बोली, कुछ बोतलों से क्या होगा? रेगिस्तान में जा रहे हैं, ज्यादा बोतलें रख लेते हैं, ना जाने कहां कितना मंहगा पानी मिले या ना मिले... 

अनिका यार, कब तक डरती रहोगी...? तुम करोड़पति अमन के साथ हो, जिसका साथ होना ही काफी है, कुछ भी पाने के लिए.. 

अनिका चुप हो गई, क्योंकि वो जानती थी कि अमन, अपनी बात को सिद्ध करा के ही मानता है। 

उस दिन गर्मी ज्यादा थी, तो वो कुछ बोतलें जल्दी ही खत्म हो गईं।

उन लोगों का काफिला, जैसलमेर की ओर बढ़ चला था कि वहां रेत में गाड़ी के पहिए धंस गये। सबने बहुत प्रयास किया, पर उन्हें निकालना कठिन हो रहा था और कठिनाइयों का मुख्य कारण था, उनका प्यास से बेहाल होना। 

Actually, wheel जहां फंसे थे, वहां दूर दूर तक सिवाय रेत के और कुछ नहीं था। 

अमन ने हर संभव प्रयास किया, कि पानी उन लोगों तक किसी भी कीमत पर पहुंच जाए, पर यह संभव ही नहीं हो रहा था, क्योंकि उस समय mobile पर network issue हो गया था।

उस समय जो सबसे ज्यादा निढाल हो रहा था, वो अमन ही था।

तभी अनिका को कुछ औरतें पानी की मटकी लिए आती दिखाई दी। वो उस तरफ दौड़ी चली गई, उसने उन लोगों से अपनी परेशानी बताई और पानी देने के लिए बहुत request की...

औरतें पानी पिलाने को मान गईं।

जब वो अमन के पास पानी लेकर पहुंचीं, तो अमन फिर घमंड से भर गया और बोला, कितने में दे रही हो पानी? 

पानी! कितने में?.... भाई सा, हम तो बस आपको पीने के लिए पानी देने आए थे, आपको परेशान देखकर, वरना पानी का कोई मोल ना होवे है...

परेशान और अमन... तुमने मुझे पहचाना नहीं है, लगता है, 20-20 रुपए में बिकता है पानी... मैं तो तुम्हें और बहुत ज्यादा देने को तैयार हूं।

भाई सा, आपके शहर में बिकता होगा पानी... म्हारे देस  में ना बिके... आपको मैं देती हूं पैसे, आप हमें लाकर दे दो पानी... 

दुकान बता दो तो ले आऊंगा और तुम लोगों को भी दे जाऊंगा।

दुकान और पानी की! यहां कहां है? आपकी तरह हमारे यहां नल खोलते ही पानी नहीं आता है, कोसों दूर जाना पड़ता है, तब मिलता है पीने को पानी... 

आपको भी हमारे जैसे जाना हो तो, पानी अनमोल है समझ आ जाएगा। और हमारी बात गांठ बांध लो, तुम्हारे जैसे तेवर वालों के कारण ही सब पानी को तरस रहे हैं। 

आपसे तो हमारे ऊंट ज्यादा समझदार होते हैं, उन्हें भी पता है कि पानी अनमोल है...

यह कहकर वो लोग, गुस्से में आगे बढ़ गईं। उनको आगे बढ़ता देख अमन को अपनी ग़लती का एहसास हुआ कि अगर यह चली गई तो उसके पैसे किसी काम नहीं आएंगे।

वो तुरंत दौड़ता हुआ गया और माफ़ी मांगने लगा, मुझे माफ़ कर देना, मैं बहुत अच्छे से समझ गया कि पानी अनमोल है, इसकी हमेशा कद्र करनी चाहिए, इसकी अगर कमी हो गई तो हम कितना ही मोल चुका दें, कभी पा नहीं सकेंगे। साथ ही बिना पानी के जीवन भी संभव नहीं है... 

पानी पीकर सबकी जान में जान आई, तो उन सबने मिलकर गाड़ी को रेत से बाहर निकाला और आगे बढ़ गये।

अमन जब राजस्थान से वापस लौटा तो उसका स्वभाव बदल चुका था। उसे अच्छे से समझ आ गया था कि चाहे कितनी ही दौलत हो, पर जो अनमोल है, उसे खरीदा नहीं जा सकता। जल ही कल है 💦

Monday, 26 February 2024

Article: आया एक चोर

आया एक चोर


आज कल 'Justh' का एक गाना बहुत तेजी से वायरल हो रहा है

'कल रात, आया, मेरे घर एक चोर...'

पर सोचने वाली बात यह है कि ऐसा क्या है, इस गाने में, जो सबको इतना attract कर रहा है?

अगर आप सुनेंगे तो आपको पता चलेगा कि, कारण है सिर्फ एक, इसकी simplicity...

Music बहुत ही calm and soothing है, जो मन की गहराइयों में उतर जाता है।

जिसने गीत गाया है, उसने इतनी सरलता से इसे गाया है कि कोई भी इसे गा सकता है और आवाज़ भी ऐसी कि जिसे सुनकर हर किसी को लग रहा है, कि ऐसा तो वो भी गा सकता है।

पर सबसे ज्यादा खिंचाव, जिससे महसूस हो रहा है, वो है इसके बोल...

हर एक की जिंदगी से जुड़े हुए हैं बोल... 

आज की generation, पहले के जैसी महत्वकांक्षा के पीछे पागल नहीं रह गई है, बल्कि वो समझने लगी, जिंदगी क्या है? 

जिंदगी का मतलब केवल नाम, काम, जीत, हार, जात, औकात, हालात, जख्म, राज़, आदि नहीं है। वो इन से आज़ाद होकर, उस मुकाम को पाना चाहते हैं, जिसके लिए मानव जीवन हुआ है।  

इन सब की आवश्यकता है, पर इसके लिए उतना ही परेशान हों, जितनी जरूरत है और उन जरूरतों को अपनी हद में रहने दें, अपने ऊपर हावी कर के उसे अंतहीन नहीं बनाएं। 

क्योंकि इसके पीछे भागते रहने से हम जीवन के खूबसूरत लम्हों को खो देते हैं। 

हमें जीना है अपनों के लिए, अपने सपनों के लिए, ऊंचे आसमान को छूने के लिए, समुद्र की गहराइयों में डूबने के लिए, तितली सा उड़ने के लिए, अपने इतिहास से जुड़ने के लिए, फूलों की तरह महकने के लिए, चिडियों की तरह चहकने के लिए, बच्चों की किलकारियों के लिए... 

चलिए जीते हैं, एक सरल जीवन, जिसमें हमारे साथ, दूसरों की खुशियां भी शामिल हों...

पर इसके लिए जो सबसे ज्यादा जरूरी है, वो है अहंकार का त्याग.. 

एक छोटी सी कहानी, जो हमने बहुत पहले‌ share की थी, उसे पढ़िएगा जरूर, कुछ ऐसी है कि सच मानिए, आपके दिल को छू जाएगी 👇🏻

क्या करूँ अर्पण??

Saturday, 24 February 2024

Article : समस्या का सरल उपाय

समस्या का सरल उपाय 



कल आपको premium trains में मिलने वाले meal के विषय में  Ticket without meal article share किया था।

आज एक बात share कर रहे हैं, जो शताब्दी train में ही हुई थी, जिसने हमें एक सीख दी थी, और वो बात है, एक लड़की की...

उस लड़की के मम्मी-पापा उसे बिठाकर जाते time उससे पूछ रहे थे कि बेटा जी, अपना ध्यान ठीक से रख तो लोगी ना? 

वो बोली, हां मां, आप परेशान मत होइए, मैं ठीक से जाऊंगी।

ध्यान नाल जाना बेटा जी, ऐसा कहकर वो लोग उतर गये।

Train ने अपनी रफ़्तार पकड़ ली। जब supper serve हो रहा था तो लड़की ने बोला कि वो भी coffee and snacks लेगी। 

उन्होंने उसे भी serve कर दिया, लड़की ने रुपए पूछे नहीं और उन लोगों ने बताए भी नहीं...

Dinner and icecream के time भी उन लोगों ने लड़की से serve करने के लिए पूछा, पर उसने मना कर दिया... 

जब सब serve हो चुका था तो उस लड़की से उन्होंने 250 रुपए मांगे...

लड़की सकते में आ गई, क्योंकि उसने सोचा था कि 50 या 100 रुपए लगेंगे... ऐसा हमें इसलिए पता है, क्योंकि वो हमारे ठीक पीछे बैठी थी और वो फोन पर किसी को बोल रही थी कि उसने coffee and snacks लिए हैं, जिसकी कीमत ₹50 से ₹100 तक होगी। 

खैर पहले तो उसने पूछा नहीं था और अब वो सब कुछ खा भी चुकी थी। तो रुपए तो उसे उतने ही देने पड़ते, जो वो बोल रहा था। 

लेकिन रुकिए थोड़ा, यहां कहानी थोड़ी अलग थी... लड़की ने बोला कि आप ऐसे-कैसे इतना ज़्यादा रुपए बता सकते हैं। Serving करने वाले ने तुरंत, supper, dinner and icecream का breakup बता दिया, जिसके अनुसार ₹250 ही बन रहे थे। 

लड़की ने ₹500 दिए और कहा कि आप bill के साथ मेरे बचे हुए पैसे वापस लेकर आइएगा। 

आप जो पैसे बोल रहे हैं, मुझे वो लिखित में चाहिए या आप ऐसा कोई record दिखा दीजियेगा, जिसमें यह breakup लिखा हो, जो आप बता रहे थे। मैं उसकी picture खींचूंगी। 

मैं बहुत ज्यादा इन trains में सफ़र करती हूं तो मुझे पता है कि कितना पैसा लगता है।

Serving वाला भी चढ़कर बोलने लगा कि मैं कब मना कर रहा हूं कि आप सफ़र नहीं करती हैं, पर जो है मैं वही बोल रहा हूं, आपको यही देना होगा। सारे लोग लड़की की बेवकूफी के लिए उसके ऊपर मंद-मंद हंस रहे थे, कि पहले तो पूछा नहीं, बड़ी रईस समझ रही थी अपने को, अब दो, जो मांग रहा है...

लोगों के मौन मगर स्पष्ट भाव उस लड़की और serving वाले को भी समझ आ रहे थे। लोगों के हंसने से serving वाले के हौसले और बुलंद हो गये। 

वो जाने लगा तो लड़की ने फिर से confidently कहा कि आप बिल के साथ पैसे वापस कीजिए।

वो कड़क कर बोला, लाता हूं अभी, और वो चला गया वहां, जहां उसके और साथी थे। वो उनसे विचार-विमर्श करने लगा।

थोड़ी देर बाद वो फिर से अपने serving के काम में लग गया। हमने गौर किया, कि वो आने-जाने में लड़की से आंखें चुरा रहा था।

उस लड़की के साथ अब हमें भी इंतजार था कि क्या होगा? क्या वो उस लड़की का confidence था या overconfidence?

थोड़ी देर बाद एक दूसरा आदमी उस लड़की के पास आया और कहा, "अगर आप से मेरे साथी ने कुछ ग़लत व्यवहार किया है, तो मैं माफ़ी चाहता हूं।"

लड़की बोली, आप क्यों आएं हैं? वही क्यों नहीं आया जो मुझ से बात कर रहा था? आप बिल के साथ ही पैसा लौटाएं। 

मैं इस train से बहुत ज्यादा आती जाती हूं, मुझे बहुत अच्छे से पता है कि कितना पैसा लगता है।

उसने भी उसी composition में bill का breakup बता दिया। 

लड़की बोली, आप भी वही बोल रहे हैं, जो वो बोल रहा था, बस अंतर इतना ही है कि वो बहुत तरेरते हुए मुझे बिल देने की बात बोल कर गया था। 

अब आप बिल लेकर आएं या उचित पैसा लीजिए। वरना मुझे आप लोगों की complain करने में time नहीं लगेगा। लड़की का confidence चरम सीमा पर था...

वो बोला, ठीक है, तो आप को जो ठीक लगे, वो दे दीजिए और बात खत्म कीजिए।

लड़की बोली, मुझे नहीं बताना, आपको जो उचित लगता है, उतना काटकर बाकी पैसे मुझे वापस कीजिए।

उसने कहा, ठीक है तो मैं ₹80 काटकर आपको बाकी पैसे लौटा रहा हूं। यह कहकर वो लड़की को ₹420 देकर चला गया। 

थोड़ी देर में train का final destination-Delhi आ गया था और सभी उतर गये।

इस घटना ने सिखाया कि हम बच्चों को छोटा और नासमझ समझते हैं, जबकि आज की generation बहुत समझदार, confident and smart है, उसे situation को handle करना आता है। फिर वो चाहे लड़का हो या लड़की...

दूसरा अगर आप सही हो तो, पूरे confidence से अपनी बात कहें, फिर चाहे पूरी दुनिया आपके विपरीत हो, situation चाहे कितनी difficult हो, आप अकेले हों, फिर भी आपकी सच्चाई और confidence आपको ही जीत दिलाएगा।

तीसरी और सबसे important बात, कि system को समझने की कोशिश करें, अगर आप knowledgeable होंगे तो अपनी बात को ज्यादा proper तरीके से रख सकेंगे। 

अब last but not the least, कभी भी अपना temper loose मत कीजिए। गुस्सा बनते हुए काम को भी बिगाड़ देता है और शांत चित्त से बात करने से बात हमेशा बनती है, बिगड़ती नहीं है...

आज का यह article, आपके लिए मददगार साबित हो, इसी कामना से... 

धन्यवाद 🙏🏻

Friday, 23 February 2024

Article: Ticket without meal

Ticket without meal 



आज के article का topic पढ़कर आप सोच रहे होंगे कि, इस बात का क्या मतलब है? 

पर है, मतलब है इसका, बस आपने शायद ध्यान नहीं दिया होगा...

जितनी भी premium trains हैं, जैसे राजधानी, शताब्दी etc. इन trains में टिकट के साथ खाना भी included होता है। 

यही पता है ना आपको?

हमें भी यही पता था, ना जाने कितने बार तो इन premium trains में सफ़र किया है। 

लेकिन जब इस बार शताब्दी train से जाना हुआ तो बहुत सी बातें पता चली, तो सोचा आप से भी share की जाए।

हां, तो जो देखने को मिला, वो थोड़ा अटपटा सा लगा कि उसमें sleeper bogie की तरह बहुत सारे vendors बहुत तरह की चीजों को बेच रहे थे। जिनका rate, actual amount से ज्यादा था। और सामान तो क्या था, जो नहीं मिल रहा हो, soup, chips, snacks items, cold drink, ice cream etc...सब ही कुछ था। 

Rate ज्यादा होने से problem कम थी पर ज्यादा इस बात से थी कि जब यहां भी इतने vendor रहेंगे तो safety का क्या? क्योंकि इन trains से जाने का एक बड़ा कारण तो safety भी है।

चलिए अब जिस दूसरी बात पर गौर किया था, वो यह थी कि वहां कुछ लोगों को supper and dinner etc. serve नहीं किया जा रहा था, पर उसका कारण समझ नहीं आ रहा था...

जब साथ में बैठी family के साथ ऐसा हुआ तो उनसे कारण पूछा, तो पता चला, कि उन्होंने without meal वाला टिकट book किया था। जिसके कारण उनको serving नहीं की जा रही थी।

हमने उनसे पूछा कि ऐसा कब से हुआ? क्योंकि पहले तो meal लेना mandatory था। वो बोले यह after corona, effect है।

Actually, corona period और उसके बाद भी लोगों ने खाना को लेकर, precautions लेना शुरू कर दिया है। जिसके चलते, train में serve होने वाली खाने-पीने की चीजों को avoid करने लगे हैं।अतः railway department ने यह decide किया कि ticket without meal भी रखी जाए। Means, option रखा जाए कि passenger को अगर meal नहीं चाहिए तो वो उस option के बिना भी टिकट ले सकता है। जो की थोड़ा सा सस्ता भी होगा। 

बातें जो गौर की थी वो और भी हैं और important भी इसलिए पूरा article अवश्य पढ़ियेगा। 

जिनका without meal ticket था, वो अपने accordingly कुछ भी जैसे, supper लिया और dinner नहीं, या supper नहीं लिया पर dinner ले लिया या सिर्फ icecream ले ली, etc... वो सब easily available था और खरीदने पर जो लिया था, बस उसके लिए पैसा दे रहे थे।

Means अगर आपने without meal वाला ticket, book किया है तो भी आपको अपनी need के according facility मिल सकती है। बस आपको उसी समय pay करना होगा। 

लेकिन आपको एक बात और बता दें कि अब menu की list से soup, soup sticks or dinner rolls को हटा दिया गया है।

अब देखिए कि और क्या कर रहे थे लोग..., इन premium trains के meal charges तो काफ़ी high शुरू से ही हैं, पर taste and quality धीरे-धीरे deteriorate होती जा रही है। 

आज कल लोग पहले की तरह घर का बना हुआ खाना लेकर चलना prefer नहीं करते हैं। ऐसे में कुछ लोगों ने famous eatery outlet जैसे Haldiram's, Bikanerwala etc. से dinner packet ले लिए थे। इससे उन्हें taste and quality से compromise नहीं करना पड़ रहा था, varities भी बहुत थी, साथ ही चलने से पहले खाना बनाने का काम भी नहीं करना पड़ रहा था। तो है ना बढ़िया option? 

कल के article में आपको एक घटना बताएंगे जो कि railway से ही जुड़ी है, और बहुत interesting है, साथ ही आपको कठिन समस्या को कैसे हल र सकते हैं, वो भी बताएगी... 

समस्या का सरल उपाय..

तो पढ़िएगा जरूर.... 

Saturday, 17 February 2024

Story of Life : निर्लज्ज (भाग-4)

 निर्लज्ज (भाग-1)  ...

निर्लज्ज (भाग - 2) और

निर्लज्ज (भाग - 3) के आगे... 

निर्लज्ज (भाग-4)

कैसी निर्लज्ज स्त्री हैं आप? जिस उम्र में लोग पूजा पाठ करते हैं, आप उस उम्र में बच्चा पैदा करना चाह रही है। अपनी तो कोई इज्जत है नहीं और हमारी मट्टी में मिलाएं पड़ी हैं। 

आने दीजिए, कार्तिक को सब बताती हूं, क्या क्या गुल खिला रही हैं आप... 

जब श्वेता, तृषा को अनाप-शनाप बोलने में लगी हुई थी, उसी समय कार्तिक घर के अंदर आ रहा था।

उसने अंदर आते ही श्वेता पर बहुत जोर के चिल्लाते हुए कहा, ज़ुबान संभाल कर बोलो श्वेता, तुम मेरी मां से बात कर रही हो, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा...

दामाद जी, इसको क्या ज़ुबान संभालने के लिए बोल रहे हो, अपनी मां को बोलें, जो इस उम्र में भी संभल नहीं पाईं, लता ने फुंकारते हुए कहा...

कार्तिक ने घूरते हुए कहा, मौसी जी, अपने संस्कार भूल जाऊं, उसके पहले इतना ही कहूंगा कि आप हमारे घर के मामले में कुछ ना ही बोलें तो अच्छा है... 

तब से शर्म से गड़ी जा रही, तृषा बोली, यह सही है कि मैं pregnant हूं, पर मैं निर्लज्ज नहीं हूं।

आहा‌ हा‌ हा, यह कैसे हुआ कि आप pregnant हैं पर निर्लज्ज नहीं, श्वेता ने दबी हुई आवाज़ में बोला... 

कार्तिक भी आश्चर्य से तृषा को देख रहा था। 

बेटा, हम जो कमा रहे थे, उससे घर का खर्च ही पूरा नहीं पड़ रहा था, फिर तेरा ठीक से इलाज कैसे करती? 

इसलिए मैं doctor दीदी के पास गयी थी कि क्या करें? 

उनके पास एक धनाढ्य संतानहीन परिवार आया हुआ था कि क्या करें? कैसे बच्चा हो, क्योंकि उनकी पत्नी की कोख में बच्चा ठहरता नहीं था। 

थोड़ी देर सोचने के बाद वो बोली कि आप दोनों का साथ ही आपको बच्चे का सुख देगा... 

हम दोनों को समझ नहीं आया, दोनों ने एकसाथ पूछा, मगर कैसे?

वो बोली कि तृषा तुम्हें अपने बेटे को बचाने के लिए पैसा चाहिए, जो यह तुम्हें देंगे और इन्हें कोख चाहिए वो तुम इन्हें दे देना। मतलब इनके बच्चे की surrogate mother बन के। वैसे भी तृषा तुम्हारी उम्र अभी कम ही है...

दोनों को ही यह बात जंच गई। तो मेरी कोख में वही बच्चा है।

मैं आज ही तुम लोगों को सब बताकर घर छोड़कर जाने वाली थी, तो अभी सही...

नहीं मां, आप नहीं जा सकती मुझे ऐसे छोड़कर, कार्तिक के आंसू टपकने लगे...

अरे मेरे दिल के टुकड़े, हमेशा के लिए नहीं जा रही हूं, उनकी यह शर्त थी कि बच्चे के होने का confirm होते ही मैं उनके साथ रहूं, जिससे स्वस्थ व सुंदर बच्चा हो।

यह लो बहू, इन पैसों को संभालों, इससे कार्तिक का अच्छे से इलाज करना, साथ ही business का भी ध्यान रखना। 

बेटा, मैंने अपने पति को बहुत छोटी उम्र में खो दिया था, मैं नहीं चाहती थी कि तुम्हें भी वही दुःख सहन करना पड़े ...

श्वेता को काटो तो खून नहीं, जैसी अवस्था में हो गई। वह तृषा के पैरों पर गिर पड़ी। मां आप महान हैं जो अपने बेटे को बचाने के लिए इस उम्र में भी pregnancy के ख़तरे को उठाने को तैयार हैं। और मैं अभागी, कभी भी आपका प्यार और त्याग समझ ही नहीं पाई।

मैं निर्लज्ज, आपको अनाप-शनाप बोलती रही और आप मुझे अपना सब सौंपकर जा रही हैं।

तृषा ने प्यार से श्वेता को अपने गले से लगा लिया और कहा, बेटा कोई निर्लज्ज नहीं है, सब समय का फेर था, टल जाएगा, तुम बस मेरे कार्तिक का ध्यान रखना, जब तक मैं लौटकर ना आऊं..

मां, हम दोनों मिलकर भगवान जी से लड़ जाएंगे और कार्तिक को ठीक कर के रहेंगे। 

मां, श्वेता‌ भगवान जी से लड़ने लगी, तब तो मैं जरूर ही ठीक हो जाउंगा, क्योंकि इनसे लड़ाई में कोई नहीं जीत सकता, कार्तिक ने चुटकी ली...

देख कार्तिक, पीछे से मेरी बहू को परेशान मत करना, वरना मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं...

सब हंसने लगे और तृषा वहां से चली गई। 

पैसे के अच्छे इंतजाम से कार्तिक का उचित इलाज हो गया, वो ठीक होने लगा।

कुछ महीने बाद वो पूरी तरह से ठीक हो गया, उसने अपनी कंपनी भी join कर ली।

बीच-बीच में कार्तिक और श्वेता, तृषा से मिलने जाते थे। श्वेता बहुत अच्छी पत्नी और बहू बन चुकी थी।

वो दिन भी आ गया, जब उस नन्हे शिशु ने जन्म लिया, जिसके होने का कारण, दो परिवारों को खुशी दे गया। 

तृषा वापस अपने परिवार में लौट आई, कुछ सालों बाद आचार पापड़ का business भी बहुत अच्छा चलने लगा, कार्तिक और श्वेता दोनों ही उसे संभालने लगे थे। उनके एक छोटा सा बेटा भी था आरव... जिसे ‌तृषा संभालती थी, क्योंकि श्वेता का कहना था कि आरव को उसकी दादी से अच्छी परवरिश और कोई नहीं दे सकता...

तृषा के surrogate mother बनने के फैसले ने उसे सारी खुशियां दे दी थी, वो बीच बीच में उस बच्चे से भी मिलने जाती थी।

जब वो pregnant थी, उस समय ना जाने कितने लोगों ने उसे निर्लज्ज कहा था, पर सच्चाई पता चलने पर सब उसे देवी कहने लगे थे...

मां, इतनी महान होती है कि वो अपने बच्चे पर आई मुसीबत को खत्म करने के लिए ना भूख-प्यास की परवाह करती है, ना अपनी इज़्ज़त की ना जान की...

फिर उसके लिए ऐसा करने से बच्चे क्यों चूक जाते हैं???

मां को अपने जीवन में सर्वोपरि स्थान दें 🙏🏻🙏🏻😊

Friday, 16 February 2024

Story of Life: निर्लज्ज (भाग -3)

 निर्लज्ज (भाग-1)  और 

निर्लज्ज (भाग - 2) के आगे... 

निर्लज्ज (भाग - 3) 

कठिन से कठिन परिस्थितियों को मुंह तोड़ कर जवाब देने वाली तृषा भी, यह सुनकर अंदर तक बुरी तरह से हिल गई। पति का असमय जाना तो उसने बर्दाश्त कर लिया था, पर कार्तिक! नहीं भगवान इतना निर्दयी नहीं हो सकता.. इसकी कल्पना से ही उसके दिमाग की नसें फटी जा रही थीं... 

जब सब संयत हुए तो यह सोचा जाने लगा कि क्या किया जाए, क्योंकि एक तो तबीयत ख़राब होने के कारण कार्तिक सुचारू रूप से नौकरी नहीं कर सकता था, दूसरा दवाइयों और इलाज़ के लिए भी बहुत पैसा चाहिए था। 

तृषा बोली कि मैं सोच रही हूं, फिर से अचार पापड़ का business शुरू करते हैं ,उससे कुछ पैसे मिलेंगे तो सब संभालना आसान होगा। 

तृषा की बात से पहली बार श्वेता भी सहमत थी। उसने अचार पापड़ बनाने और बेचने में तृषा की मदद करनी शुरू कर दी। 

तृषा के हाथ में बहुत स्वाद था और पहले वाले customer तो चाहते ही थे कि तृषा फिर से अचार पापड़ बनाने लगे, तो उन लोगों का Business जल्दी ही ठीक-ठाक चलने लगा। 

उससे घर का खर्च तो निकलने लगा, पर इलाज और दवाइयों के लिए हाथ अभी भी tight चल रहा था।

कुछ हफ्ते ही बीते थे कि तृषा की तबीयत भी खराब रहने लगी, जब देखो तब उसे उल्टियां होने लगे, चक्कर आने लगे। खाने की इच्छा भी बहुत बार नहीं करता।

शुरू-शुरू में तो कुछ नहीं, पर कुछ दिन बाद श्वेता की मौसी लता कुछ दिन के लिए रहने आयी। 

वो बहुत प्रपंची और नाटक बाज थी, उन्हें भांपते देर नहीं लगी कि तृषा pregnant है।

जैसे ही उन्होंने यह बात, श्वेता को बताई, तो उसने हंगामा मचा दिया। 

उस दिन कार्तिक घर पर नहीं था, तो बस श्वेता ने मौके का फ़ायदा उठाया और लगी, अपनी सास को बुरा भला कहने।

कैसी निर्लज्ज स्त्री हैं आप? जिस उम्र में लोग पूजा पाठ करते हैं, आप उस उम्र में बच्चा पैदा करना चाह रही है। अपनी तो कोई इज्जत है नहीं और हमारी मट्टी में मिलाएं पड़ी हैं। 

आने दीजिए, कार्तिक को सब बताती हूं, क्या क्या गुल खिला रही हैं आप...

आगे पढ़े निर्लज्ज (भाग -  4) में ..

Thursday, 15 February 2024

Story of Life : निर्लज्ज (भाग -2)

निर्लज्ज (भाग-1) के आगे...

निर्लज्ज (भाग - 2)


जब वो लोग उठकर जाने लगे तो श्वेता के पिता ने, तृषा के पैर पकड़ लिए कि ऐसे ना जाएं, मेरी नौकरी का आखिरी महीना चल रहा है, फिर retirement हो जाएगा, तब रिश्ता होना और कठिन हो जाएगा। 

हमें आप और आपका बेटा दोनों बहुत पसंद आए हैं, आप से बेहतर, हमारी बेटी को दूसरा रिश्ता नहीं मिल सकता...

तृषा बहुत ही कोमल और सरल हृदय की थी, उसे श्वेता के पिता का यूं कहना, मन में कहीं कचोट गया और वो हां कर के आ गई।

कार्तिक ने घर आकर कहा, मां आपने हां क्यों कह दिया। 

तृषा बोली, बेटा उनसे ना कह कर आना, एक पिता के दिल को बहुत दुःखी कर देता। तुम परेशान मत हो, जब श्वेता हमारे घर में आएगी तो तुम्हारा प्यार पाकर हमारे घर में ढल जाएगी।

तृषा ने दान-दहेज के लिए साफ़ मना कर दिया। शादी के लिए ख़र्चा भी बराबर बांटने को बोल दिया, साथ ही बहुत कम बाराती लेकर गई। 

इन सब कारणों से श्वेता की शादी इतनी अच्छी और धूम से हुई कि, जिसकी कल्पना ना तो श्वेता ने की थी और ना ही उसके घर में किसी ने...

श्वेता के पिता ने तो इसके लिए तृषा का ना जाने कितनी बार आभार व्यक्त किया...

श्वेता ससुराल आ गई और चंद ही दिनों में उसने अपने तेज स्वभाव को दर्शाना प्रारंभ कर दिया। 

वो job करती थी तो उसने कहा दिया कि वो working है तो घर का कुछ भी काम नहीं करेगी। कार्तिक को यह बिल्कुल मंजूर नहीं था कि मां अकेले काम में लगी रहें।

पर तृषा ने ही कहा कि घर में कलह नहीं होनी चाहिए, घर का काम ही कितना होता है, वो अकेले संभाल लेंगी। वैसे भी अभी श्वेता के सुख वाले दिन हैं।

अब कार्तिक क्या ही बोलता? पर इस बात से श्वेता को ऐसी जीत मिली थी कि अब तो वो अपनी हर मनमानी मनवाने लगी। 

और कुछ दिनों बाद, तो उसने नौकरी भी छोड़ दी, कहने लगी मैंने शादी, जिंदगी भर नौकरी करने के लिए नहीं की थी और खर्चे... वो तो इतने अनाप-शनाप करती थी कि कार्तिक को अकेले के दम पर घर चलाना मुश्किल लगने लगा था।

उसके ऊपर कर्ज़ा बढ़ने लगा, tension और श्वेता की मनमानी से वो बहुत दुःखी रहने लगा और फिर उसको और तोड़ने के लिए, उसे कैंसर हो गया।

जब उसने घर आकर मां और श्वेता को बताया, तो नकचढ़ी श्वेता सकपका गई, उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके सपने यूं चकनाचूर होंगे।

और कठिन से कठिन परिस्थितियों को मुंह तोड़ कर जवाब देने वाली तृषा भी, यह सुनकर अंदर तक बुरी तरह से हिल गई। पति का असमय जाना तो उसने बर्दाश्त कर लिया था, पर कार्तिक! नहीं भगवान इतना निर्दई नहीं हो सकता.. इसकी कल्पना से ही उसके दिमाग की नसें फटी जा रही थी...

आगे पढ़े निर्लज्ज भाग -3 में....

Wednesday, 14 February 2024

Poem : एक पुष्प

 एक पुष्प 



लेकर चला पुष्प एक वो,

 प्रिया को ललचाने को। 

आज क्षण आया है वो,

नेह उस पर लुटाने को।


थोड़ा ठहर जा क्षणभर,

विचार कर ले तनिक भर।

क्या उससे पहले नहीं है,

कुछ फ़र्ज़ तेरे निभाने को।


पुष्प एक कर देना अर्पित,

विद्या ज्ञान की देवी को।

जिससे ज्ञान बुद्धि हो जाग्रत,

उचित मार्ग में जाने को।


पुष्प एक चढ़ा देना तुम,

पुलवामा के अमर शहीदों को।

जिसने प्राण निछावर कर दिए,

जीवन तुम्हें दिलाने को।


फिर कर लेना प्रेम की वर्षा,

प्रिया को अपनी रिझाने को। 

जिसने अर्पण किए दिन-रैन।

सर्वोपरि तुम्हें बनाने को।


आप सभी को बसंतोत्सव की हार्दिक

शुभकामनाएं 💐🙏🏻

माता सरस्वती की कृपा हम सब पर बनी रहे 🙏🏻🙏🏻 

पुलवामा के अमर शहीदों को श्रद्धांजलि🙏🏻

Happy valentine's day 💞 

Tuesday, 13 February 2024

Story of Life : निर्लज्ज

निर्लज्ज 



तृषा, बहुत ही कर्मठ और शांत स्त्री थी। उसकी शादी काशी के साथ हुई थी, जो बेहद अधीर और आलसी था। 

दोनों के विपरीत स्वभाव के कारण, घर का अधिकतम काम तृषा के सिर पर था। घर-बाहर दोनों के काम तृषा बखूबी निभाती थी। फिर भी काशी के मुंह से एक बार भी तृषा की तारीफ नहीं होती थी। 

दिन अपनी गति से बढ़ रहे थे। शादी के एक साल बाद ही कार्तिक पैदा हो गया, जिससे तृषा की जिम्मेदारी और बढ़ गई पर तृषा ने इसे भी पूरे जतन से निभाना शुरू कर दिया। वो अपनी छोटी सी दुनिया में बहुत खुश थी।

पर उसकी खुशी को ना जाने किस की नज़र लग गई, काशी को कैंसर हो गया और वो भरी जवानी में तृषा को छोड़कर चला गया।

चंद दिनों की कठनाइयों के बाद, तृषा संभल गई, क्योंकि पहले भी वही सब संभालती थी। उसने अपनी नौकरी के साथ ही अचार पापड़ का business शुरु कर दिया था। उसकी सारी दुनिया कार्तिक के ईर्द-गिर्द सिमट गई। कार्तिक भी अपनी मां को बहुत प्यार करता था।

कार्तिक भी अपनी मां जैसा ही था। समय अपनी रफ़्तार से बढ़ रहा था। कार्तिक जवान हो गया और उसकी बहुत अच्छी नौकरी लग गई।

कार्तिक ने मां से काम करने को मना कर दिया। बोला मां, आपके काम के दिन खत्म हुए और आराम के दिन शुरू हो गये हैं। बहुत दुख देख लिया, मेरी मां अब मेरी सिर्फ़ सुख भोगेगी। 

तृषा के सुख के दिन चलने शुरू हो गये। कार्तिक की अच्छी नौकरी थी तो उसके लिए जल्द ही रिश्ते आने लगे।

एक लड़की श्वेता, final की और उसे देखने गए वो लोग...

लड़की स्वभाव से तेज़ लग रही थी, कार्तिक को तो बिल्कुल पसंद नहीं आई, तृषा को भी कुछ ज्यादा समझ नहीं आई। वो हर मामले में कार्तिक से 19 थी। 

जब वो लोग उठकर जाने लगे तो श्वेता के पिता ने, तृषा के पैर पकड़ लिए कि ऐसे ना जाएं, मेरी नौकरी का आखिरी महीना चल रहा है, फिर  retirement हो जाएगा, तब  रिश्ता होना और कठिन हो जाएगा। 

हमें आप और आपका बेटा दोनों बहुत पसंद आए हैं, आप से बेहतर, हमारी बेटी को दूसरा रिश्ता नहीं मिल सकता...

आगे पढ़े निर्लज्ज (भाग - 2) में...

Monday, 12 February 2024

Article: सफ़र है सुहाना

सफ़र है सुहाना 



बहुत दिनों से मन था कि भारत को उसके border पर जाकर नतमस्तक करें, उन शहीदों को नमन करें, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया और उन वीर सैनानियों को प्रणाम करें, जो देश के आज़ाद हो जाने के बाद से निरंतर देश की सुरक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। 

साथ ही, बाबा जी की मेहर भी लेनी थी। 

दोनों इच्छाएं एक जगह पूरी हो सकती थीं, वो है अमृतसर.. 

इस 26 जनवरी के दिन वो इच्छा पूर्ण हो गई, तो हमने वहां क्या अनुभव किया, वो तो हम आपको share कर चुके हैं। 

हमारा वो सफ़र बहुत सुहाना रहा...

पर क्यों रहा?

उसे जानने और समझने की कोशिश करते हैं।

क्या अमृतसर बहुत अच्छा शहर है?

बिल्कुल है... 

बल्कि हम तो यही कहेंगे कि भारत के सभी शहर बहुत अच्छे हैं, हर शहर में कुछ विशेष मंदिर, fort और monuments हैं, जो आपके दिल को छू जाएंगे...

पर क्या इन से ही सफ़र सुहाना हो जाता है? 

नहीं, बिल्कुल नहीं... 

जब भी कोई किसी जगह घूमने जाता है, तो वो केवल सिर्फ घूमने नहीं जाता है बल्कि वो अपनी जिंदगी के कुछ हसीन लम्हों को जीने जाता है, एक अविस्मरणीय यादों को संजोने जाता है।

और वो पल, वो यादें केवल, मंदिर, monuments and fort से ही नहीं जुड़ती है, बल्कि उसे जोड़ने के लिए वहां मिलने वाले लोग भी शामिल होते हैं।

वो hotel जहां आप रुके हैं, वहां का staff, उस जगह को घुमाने के लिए ले जाने वाले cab driver, auto driver, rickshaw वाले, दुकानदार, वहां रहने वाले local लोग आदि सभी शामिल होते हैं।

हर एक को सोचना चाहिए कि आप के शहर में जब कोई मेहमान आया हो, चाहे वो देश का हो या विदेशी... वो आपके व्यवहार से ही आपके शहर की छवि लेकर जाएगा। 

हम सभी को अपना शहर प्यारा होता है, तो हमें ऐसा करना चाहिए कि आने वाला भी हमारे शहर की तारीफ करे...

और अगर मेहमान विदेशी है तो, वो तो शहर के साथ हमारे देश की छवि भी लेकर जाएगा। 

तो उनका ध्यान अवश्य रखें...

आज इस article द्वारा दो लोगों को धन्यवाद देना है, साथ ही एक अनुरोध भी करना है।

पहला अपने hotel के manager, Tony Ji को, दूसरा हमारी Hyundai Etios (cab) के owner cum driver, Sonu Ji को...

हमारी शताब्दी train, late हो गई थी, और वो रात को 1:30 बजे अमृतसर पहुंच रही थी, जो कि 10:10 पर पहुंचती थी। अंजान शहर, आधी रात और बच्चों का साथ, हम दोनों पति-पत्नी सोच नहीं पा रहे थे कि क्या करें?

फिर सोचा कि Tony Ji से ही बात की जाए, unknown तो वो भी थे, पर क्योंकि वो hotel के manager थे तो उनसे best option और कुछ नहीं लगा। 

हमने उनसे बात की, तो वो बोले, आप बिल्कुल चिंता मत करिए, मैं खुद लेने पहुंच जाऊंगा, बस आप गाड़ी लगने लगे, तब हमें call कर लीजिएगा। और platform number 7 पर आ जाना...

उनका यह कहना, मानों हम लोगो को अंदर तक confidence दे गया। लगने लगा था कि किसी ऐसे शहर में जा रहे हैं, जहां कोई अपना है। जो आधी रात को भी हम लोगों को लेने पहुंच जाएगा!..

Station पहुंच कर, पता चला कि Platform number 7 तो बहुत सुनसान है। हमने phone किया कि हम तो platform number 1 पर ही आएंगे। 

वो बोले कि, आप आ जाओ, कोई डर नहीं है, मैं आ गया हूं। पर हम अपने आपको राज़ी नहीं कर पा रहे थे और हम platform number 1 पर ही रहना चाह रहे थे। 

वो बोले, फिर आपको अपने आप आना पड़ेगा। बाकी डर की कोई बात नही है, आप किसी के भी साथ आओ।

हमने station के बाहर आकर देखा, सिवाय एक auto के अलावा कुछ नहीं था। हमारी मजबूरी देखकर उसने हम से दुगुना पैसा मांगा, हमारे पास कोई दूसरा option नहीं था, अतः हम उसी से hotel पहुंचे।

वहां जब हम पहुंचे तो Tony Ji हमारा इंतज़ार कर रहे थे, बिना किसी शिकन के, कि हमने इतनी रात को उन्हें station बुला लिया था, फिर उनके साथ नहीं आए। 

हमारा room उन्होंने ready कर रखा था। क्योंकि हमारे room के बाहर, open area था, तो ठंड ज्यादा लग रही थी, हमने extra blankets मांगें, उन्होंने वो भी दे दिया।

साथ ही उन्होंने geyser भी on करके रखा था कि अगर, नहाना हो या हाथ मुंह धोना हो तो गर्म पानी तैयार मिले...

Room में पहुंचने के साथ ही चाय-कॉफी, खाना देने के लिए भी पूछा। हमारे मना करने के बाद, वो इस हिदायत के साथ गये कि किसी भी तरह की कोई भी आवश्यकता हो तो, बिना झिझके बोल दें। और यह भी कि अगली सुबह जल्दी उठ जाएं, जिससे सब जगह अच्छे से घूम लें। 

वो चले गए, और ऐसा लगा, जैसे घर में ही आए हों, जहां हमारा इंतज़ार, एक परिवार के सदस्य जैसे, किया जा रहा हो। 

अगले दिन, सुबह 7 बजे हमने जब phone किया कि हमें घूमने के लिए कोई car मिल जाएगी? 

उन्होंने कहा कि अगर आप चाहें तो hotel से बाहर निकलते ही आपको बहुत सारे auto मिल जाएंगे। वो काफी सस्ते होंगे और आप सुविधापूर्वक घूम भी लेंगे।‌ मतलब हम घूमने आए हैं तो, वो हमें जबरदस्ती महंगा option बताएं, वो ऐसा हरगिज नहीं कर रहे थे।

हमने कहा कि, हमें पूरे दो दिन के लिए एक car चाहिए।  तो उन्होंने हमें अपने जानकार car वाले, Sonu ji से परिचय करा दिया। 

सारी बात हो गई। समय 8 बजे का निर्धारित हुआ। हमने breakfast का order, hotel में ही किया और नहा-धोकर तैयार होने लगे। पर समय ज्यादा लग रहा था, क्योंकि रात में बहुत देर से आए थे। तो कोई जल्दी उठना नहीं चाह रहा था।

पर Tony Ji, वो जितने रात में 1: 30 बजे active थे, उतने ही सुबह भी.. साथ ही बीच-बीच में आकर हम लोगों को झकझोर जाते कि जल्दी तैयार हों, जिससे सब जगह समय से पहुंच सके।

उनका इस तरह का व्यवहार हम लोगों के मन में अपनत्व भर रहा था, मानो जैसे कोई बड़ा भाई, हम लोगों के साथ हो। 

घूमने जाने से पहले हमने रात की ठंड का जिक्र किया तो उन्होंने कहा, आप लोगों घूम कर लौट आएं, हम room' change कर देंगे। और उन्होंने वैसा किया भी, पहले हमारा  three beds का room था, पर अब उन्होंने 2 double bed room दें दिया था, पर charge, same ही रहने दिया। हम से extra पैसे नहीं लिए...

जब हम घूमने जाने के लिए, car में बैठे तो Sonu ji बोले, Sir आपको जैसे-जैसे जहां जाना हो, हमें बता दीजिए। हर जगह आप सही समय से पहुंच जाएं और आपको बहुत ज्यादा भीड़ का सामना भी नहीं करना पड़े और जरूरत से ज्यादा चलना भी ना पड़े, मैं वैसी कोशिश करुंगा।

उसके बाद हम जहां के लिए कहते, वो वहां ले चलते, साथ ही जो अन्य देखने की जगह होती, वो भी बता देते और हमारे कहने पर वहां भी चल देते। किसी जगह का टिकट अगर ज्यादा महंगा था तो वो भी अगाह कर दे रहे थे और हमारे कहने पर वहां भी ले जा रहे थे। 

कुल मिलाकर दो दिन में उन्होंने हमें सभी दूर और पास की जगहें घूमा दी थी। जैसा उन्होंने कहा था, वैसा ही किया, सब जगह बहुत अच्छे से घुमायीं। दूसरे दिन हमें golden temple के नज़दीक छोड़ कर वो चले गए...

सब जगह वो हमें ले गए थे, बस जलियांवाला बाग और partition museum छोड़कर, क्योंकि वहां हमें तीसरे दिन जाना था। साथ ही हम golden temple भी गये थे, जाने से पहले एक बार फिर से पवित्र स्थान पर माथा टेकने....

हमारे अमृतसर के सुहाने सफ़र में इन दोनों का ही हाथ है, दोनों को ही धन्यवाद। साथ ही उन local citizens को भी, जिन्होंने हमें बीच-बीच में सहायता प्रदान की थी, जब हमें अमृतसर से जुड़ी बातें समझनी थी। 

साथ ही गुज़ारिश है, बाकी उन सभी लोगों से जो कि tourism से किसी भी तरह से जुड़े हों, वो सब भी अपने अतिथि का ऐसे ही ध्यान रखें। अपने चंद रुपयों के margin के लिए, लोगों के सुखद पल, सुहाने सफ़र और अपने शहर की छवि को धूमिल ना करें। 

अपने चंद रुपयों के margin के लिए लोगों को ग़लत जगहों पर ले जाना, गलत सामान दिलवाना, या किसी जगह पर जबरदस्ती ले जाना या उनसे उनकी इच्छा के विपरीत सामान खरीदने को कहना और उनके मना करने पर उनके साथ दुर्व्यवहार करना, उसे भला-बुरा कहना, किसी भी तरह से उचित नहीं है।

आप के ऐसा करने से ज्यादा लाभ, आपके अच्छे से व्यवहार करने से होगा, क्योंकि जब कोई खुश होकर जाता है तो वो आपकी चार जगह तारीफ करता है, चार लोगों को आपके पास आने को कहेगा तो आप को अपने आप लाभ मिल जाएगा।

और एक बात, जब लोग खुश होते हैं तो ईश्वर से भी आपके लिए अच्छा करने की कामना करते हैं। और उससे जो आपको लाभ होता है वो स्थाई और शुभ फलदाई होता है, क्योंकि उसमें ईश्वर भी आपके साथ होते हैं।

किसी का सुहाना सफर और आप का सुख, एक-दूसरे के पूरक हैं। सुख दीजिए, सुख पाइए... 

आज इस article को लिखने का मुख्य उद्देश्य सबके सुख की कामना है...

सर्वे भवन्तु सुखिन: 🙏🏻😊

Saturday, 10 February 2024

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का - 5

 Trip Review : Amritsar - सफर

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का 

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का -2

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का -3  

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का - 4 

अब तक आपको तलवार म्यूजियम, वाघा बॉर्डर, रामतीरथ, golden temple, लाल माता देवी मंदिर और सड्डा पिंड के विषय में बता चुके हैं, अब आगे...

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का - 5  



सड्डा पिंड के बाद हमारी सवारी चल दी, अमृतसर के एक और खूबसूरत मंदिर की ओर, जो है दुर्गियाना मंदिर... 

दुर्गियाना मंदिर 


Golden temple की तरह ही दुर्गियाना मंदिर भी सरोवर के बीच में था, और उसी की तरह बहुत सुंदर, पवित्र माहौल और असीम शांति, वहां भी थी। 

वहां पर मूर्तियां, इतनी सुन्दर थीं कि उनसे नजर ही नहीं हट रही थी।

मंदिर में कोई धक्का मुक्की नहीं, कोई किचकिच नहीं, पंडितों का किसी प्रकार का कोई प्रोपेगंडा नहीं...  

अत्यंत सुख की अनुभूति हुई वहां, आत्मा तृप्त हो गई...

गोविन्दगढ किला  


वहां दर्शन करने के बाद हम चल दिए गोविंदगढ़ किला...(Gobindgarh fort)

चूंकि शाम हो चुकी थी और हम लोग थक भी
गये थे तो fort घूमने का हमारा कोई विचार नहीं था। पर हम वहां गए थे क्योंकि हमने सुना था कि वहां पर होने वाले shows बहुत बढ़िया होते हैं। ध्यान रखिएगा सारे shows everything में होते हैं।

वहां पहुंच कर पता चला कि वहां तीन तरह के टिकट थे। एक केवल fort घूमने के, दूसरा including show, तीसरा including meal, उनकी cost भी उसके according मंहगी होती गई। 

क्योंकि हमें fort के बाद golden temple जाना था और वहां लंगर प्रसाद ग्रहण करना था, अतः हमने without meal वाली टिकट ली थी। 

जिसमें shows, events, games and ridings शामिल थी।

हमने वहां सब बहुत enjoy किया। 7d show and laser show बहुत amazing था। Games and riding भी बहुत मजेदार था। 

वहां AI based games भी थे, जिनका अलग से payment करना था, बच्चों ने उन्हें भी खेला और बहुत enjoy किया। 

वहां पर खाना कैसा था, और क्या-क्या dishes थीं, हम नहीं बता सकते हैं, हां welcome drink में soups थे, जिन्होंने meal वाला टिकट लिया था, उनको serve किया जा रहा था।


उसके बाद हम लोग golden temple के लिए निकल गये थे, जिसके बारे में हम आपको पहले ही बता चुके हैं। 

तीसरे दिन हम लोगों के जो point छूटे थे वो cover करने थे। जिसमें जलियांवाला बाग और partition museum था। 

जलियांवाला बाग  




तो बस उस दिन सुबह सबसे पहले हम लोग, जलियांवाला बाग गये थे। वहां ज्यादा समय नहीं लगा, क्योंकि वहां एक कुआं है, जहां वो भयंकर त्रासदी हुई थी, क्रूर जनरल डायर के द्वारा चलवाई गई गोलियों के निशान हैं, साथ ही कुछ gallery भी...

यहां पर show भी है उस त्रासदी का, जो evening में होता है, पर हम उसे नहीं देख पाए।


उसके बाद हम एक बार फिर golden temple गये, शायद कुछ भीड़ कम हो और हम लोग माथा टेक लें। पर नहीं, भीड़ अभी भी बहुत ज्यादा थी। अतः कुछ देर golden temple के प्रांगण में बैठ कर हमने वहीं से बाबा जी को शत-शत प्रणाम किया। 


अब चल दिए उस आखिरी जगह के लिए, जिसके लिए यही कहेंगे कि अगर आप अमृतसर में वहां नहीं गए तो आप ने भारत की उस घड़कन को नहीं समझा, जब हमारे देश ने सबसे कठिन पल जिया था।

यह वो पल था, जब भारत को अपने उस पल की खुशियां मनानी थी, जिसका वो बरसों से सपना देख रहा था, जिसके लिए, उसके ना जाने कितने लाल ने हंसते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। 

आजादी का पल... 

पर उस पल का भारत जश्न भी नहीं मना पाया था कि  भयंकर यातना देने वाली त्रासदी ने भारत को जकड़ लिया था। वो है partition.... 

Partition museum  



हम बात partition museum की कर रहे हैं। वहां उस पल को जैसे आज भी जीवंत कर के रखा है। वहां जाने पर उस त्रासदी को देखकर, महसूस कर, के एक सिहरन सी दौड़ गई। 

मन में रोम रोम एक तीव्र वेदना से भर गया। आंखें नम हो गई। वहां बजती हुई train की whistle, उसका announcement, आरी से किया हुआ विभाजन, घर की गिरीं हुई ईंटें, headphones में उस समय की आवाजें, वहां रखे सामान और उनकी कहानियां। और भी बहुत कुछ... 

वो सब इतनी सजीव और मार्मिक हैं कि अगर आप उन सबको देख कर आएंगे तो आपको पता चलेगा कि भारत ने बहुत कठिन समय व्यतीत कर के आज का समय पाया है, आज का भारत, धरोहर है उन सपनों की, जो वो हमें सौगात में दे गए थे। उनका मान करें, अपने देश का सम्मान करें और हर वो काम करें, जो देश को उन्नत, सुदृढ़ और समृद्ध करें...

इसके साथ ही हमारा अमृतसर की आस्था और देशभक्ति से परिपूर्ण सफ़र समाप्त हुआ। पर हम अपने साथ आशीर्वाद और देशभक्ति को लेकर लौटे और आप सबसे कहेंगे कि एक बार अपने बच्चों को वहां जरूर लें जाएं, जिससे हमारे बच्चे, देशभक्ति और आस्था दोनों से जुड़े... 

एक प्रयास था कि आपको अपने देश की संस्कृति और परंपरा से जोड़े, थोड़ा लम्बा हो गया, पर हमारी कोशिश थी कि आपको एक एक बात ऐसी बताएं कि जब भी आप वहां जाएं, आपकी यात्रा मंगलमय हो और वो जीवन में एक मीठी याद बन कर रहे। 

जय हिन्द जय भारत 🇮🇳

Thursday, 8 February 2024

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का -4

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का 

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का -2

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का -3 

अब तक आपको तलवार म्यूजियम, वाघा बॉर्डर, रामतीरथ, golden temple के विषय में बता चुके हैं, अब आगे...

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का - 4  



माता लाल देवी मंदिर 



अगले दिन हम माता लाल देवी मंदिर गए, माता लाल देवी, वैष्णो माता रानी की बहुत बड़ी भक्त थीं। अतः उन्होंने अमृतसर में वैष्णो माता रानी जी मंदिर बनवाया, जिससे जब तक माता रानी के दरबार ना जा पाएं तो वहीं दर्शन कर लें। लाल माता मंदिर के ऊपर ही वैष्णो देवी मंदिर बना है। मंदिर बहुत अच्छा था, इसमें हम घूम-घूम कर आगे बढ़ते जा रहे थे, पूरा रास्ता बहुत अच्छे से समझाया गया था, और कोशिश की गई है कि वहां पहुंच कर आपको वैष्णो देवी मंदिर जैसा ही एहसास हो। 

अंत मे एक गुफा भी है, जिससे होकर माता रानी जी के दरबार में पहुंचते हैं।

हालांकि वैष्णो माता के दरबार सा, पूरी तरह तो नहीं लगेगा, लेकिन जब तक माता रानी का बुलावा नहीं आ जाता, यहां दर्शन करने जाना, सुख की अनुभूति प्रदान करता है।

उसके बाद हम लोग चल दिए अमृतसर की जान सड्डा पिंड की ओर...


सड्डा पिंड 


सड्डा पिंड अमृतसर में एक fun loving place है। इसका टिकट थोड़ा मंहगा ज़रूर है, पर यहां जाकर आपको पंजाब के पूरे culture के विषय में पता चल जाएगा।पंजाब की संस्कृति, विरासत एवं परंपराओं को दर्शाने के लिए एक अनोखे open air musium साड्डा पिंड में कलाकृतियों एवं इमारतों का दुलर्भ संग्रह देखने को मिलता है। लगभग 12 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में फैली इस जगह को पंजाब के ग्रामीण परिवेश को दर्षाने वाली जगह के रूप में विकसित किया गया है। 

वहां की दिलेरी, वहां का बांकपन, वहां का उल्लास, उत्साह और उमंग, वहां की बेबाकी, वहां का खान-पान, वहां की आस्था, वहां की देशभक्ति, वहां की मेहमाननवाजी, in short क्या है पंजाब...

यहां आप को बहुत कुछ ऐसा देखने को मिलेगा, जो आपने अपने बचपन में देखा होगा या बचपन की मीठी कहानियों में सुना होगा।

सड्डा पिंड का अर्थ है, हमारा गांव...

यहां पहुंच कर आपको लगेगा, जैसे आप किसी गांव में आ गए हैं। वहां आपके स्वागत में सबसे पहले आपको पंजाब का देशी या यूं कहें गांव के खाने का आनन्द मिलेगा। मस्त सरसों का साग और नर्म-नर्म मक्के की रोटी, ठंडी-ठंडी छाछ और गर्मागर्म स्वादिष्ट बाजरे की खिचड़ी, मठ्ठी मटर और मीठे चावल... यह सब देते हुए प्रसन्न और मस्त लोग, कि यह सब खाकर आप भी पंजाब के रंग में रंगने लगेंगे। खाना कितना है, और कितनी बार खा सकते हैं? यह तो आपके मन पर निर्भर करेगा... क्योंकि वो लोग तो बहुत प्रेम से परोसते जाएंगे।

पर ध्यान रखिएगा आगे होटल की शान वाले items भी आपके स्वागत के लिए lunch or dinner में आपका इंतजार कर रहे हैं। कहीं बहुत अधिक पेट भर जाने से आप उसका लुत्फ़ उठाने से वंचित ना रह जाए।

एक बात बता दें आपको, आप चाहें मौसम में जाएं या बेमौसम, आपके स्वागत के लिए सरसों का साग और मक्के की रोटी हमेशा तैयार मिलेगी। 

अंदर और बढ़ने पर एक के बाद एक event थे, एक से एक बढ़कर, अद्भुत और अनोखे। सबसे एक से एक जुड़े रहते हैं, एक ख़त्म होता है और दूसरा शुरू। पर हां एक भी छोड़िएगा नहीं, क्योंकि यहां छोड़ने पर फिर वो आपको कहां मिलेंगे पता नहीं?

आगे बढ़ने पर कुछ games थे। हर टिकट पर per head दो games free थे। हम चार थे तो 8 games free थे तो बच्चों ने उसमें भी खूब enjoy किया, हमने भी। उसके अलावा झूले भी बहुत तरह के थे, उसका भी अलग आनन्द था।  

साड्डा पिंड में स्थानीय कुम्हारों, लोहारों, बुनकरों एवं अन्य कारीगरों के खोखे भी बने हुए हैं, जिनमें उन्होंने अपना सामान प्रदर्शित किया है। यहां पर फुलकारी दुपट्टे, जूतियां, परांदियां, संगीत वाद्य, मिट्टी के खिलौने एवं कृषि औज़ार आदि ख़रीदे जा सकते हैं। 

यहां पर, camel ride, bullock cart ride, etc भी थी, जो reasonable price पर थी। पर वहां इतने event थे और हमारे पास time कम था इसलिए हमने वो rides नहीं ली।

क्योंकि हमें उस दिन और जगह भी जाना था तो हम lunch के लिए, उनके restaurant area में चले गए और वहां पर lunch enjoy किया। वहां भी बहुत varieties थी और taste लाज़वाब.. खाने में जो जितना मन करे उतना खाएं। बस एक बार serve कर लीजिए और अपनी table पर चले जाएं, उसके बाद आपको जो चाहिए वो आपकी table पर पहुंचा दिया जाएगा। वहां की दाल मखनी तो बेमिसाल थी, क्योंकि उसमें चूल्हे पर बनी सुगंध बेमिसाल थी...

अच्छा ध्यान रखिएगा कि restaurant में अंदर जाने के लिए आपके हाथ में band होना बहुत ज़रूरी है, जो कि टिकट लेने के साथ ही बांध दिया जाता है और restaurant से बाहर निकलते ही काट दिया जाता है।

सड्डा पिंड का आनन्द लेकर हमारा सफ़र बढ़ चला, दूसरी मंजिल की तरफ...

Wednesday, 7 February 2024

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का -3

अब तक के trip review में हम आपको तलवार म्यूजियम और वाघा बॉर्डर के बारे में बता चुके हैं। 

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का 

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का -2

चलिए अब आगे के सफ़र में चलते हैं -

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का -3 


राम तीरथ 




Border से चल कर हम लोग रामतीरथ‌ या लवकुश मंदिर गये। यह वो जगह है, जहां त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि जी का आश्रम था और माता सीता उस समय उनके पास थी, जब वो pregnant थी। 

इसी आश्रम में उन्होंने अपने पुत्र लव को जन्म दिया था और महर्षि वाल्मीकि जी के आशीर्वाद से कुश को भी पुत्र रूप में प्राप्त किया था।

जब प्रभु श्री राम जी ने अश्वमेध यज्ञ किया था तब यहीं पर लव व कुश ने उनके घोड़े को पकड़ा था तथा हनुमान जी भी दोनों बच्चे के प्रेम और प्रभु श्री राम जी की भक्ति में यहीं बंधे थे। 

यह आश्रम रुपी मंदिर बहुत सुंदर है। एक और विशेषता है, अमृतसर के बड़े मंदिरों की, कि वो सरोवर के बीच में स्थित होते हैं। और यह विशेषता वहां के मंदिरों में चार चांद लगा देती है। 

साथ ही सरोवर का हल्का हल्का बहता हुआ पानी एक विशेष शांति और जीवटता उत्पन्न करता है। जिससे मंदिर का वातावरण पूजा अर्चना और positive vibes के लिए अनुकूल हो जाता है।

यहां के पवित्र माहौल के बाद, हमने golden temple जाने का विचार बनाया था। 

पर हमारे car driver ने कहा कि आज बाबा दीप सिंह जी का जन्म हैं, अतः अत्यधिक भीड़ होगी। अतः आज के बजाए कल का program रखें। 

तो हम उस दिन वापस अपने hotel आ गये। पर हम आपसे यही कहेंगे कि आप पहले दिन ही golden temple जाएं और माथा टेक लें। क्योंकि वहां माथा टेकने जाना बहुत आसान नहीं है। बहुत भीड़ होती है।

Golden temple  ‌


Golden temple, बहुत सुन्दर, बहुत भव्य और अत्यंत दिव्य। वो जितना खूबसूरत है उतना ही शांत और पवित्र भी। उसका वर्णन करना सूरज को दीपक दिखाना है। पर अपनी आस्था और श्रद्धा के दीपक द्वारा यह धृष्टता कर रहे हैं। बाबा जी, हमारे आस्था के फूल स्वीकार करें। 

यह हम लिखकर उनके श्रीचरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित कर रहे हैं 🙏🏻

वहां रहकर समय का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है, क्योंकि आप ऐसे सुख और आनंद की अवस्था में रहेंगे कि आप को अपनी सुध-बुध ही नहीं होगी। वहां सब बाबाजी की मेहर लेने आते हैं। 

Golden temple के लिए लोगों के मन में बहुत अधिक श्रृद्धा है। वहां सुबह के 2 बजे से ही लोग नहा-धोकर पहुंच जाते हैं और तभी से ही line में खड़े हो जाते हैं, सुबह के 3 बजे से गुरुद्वारे में जाना आरंभ हो जाता है।‌ जो कि रात 10 बजे तक होता है। गर्मियों में मंदिर के दरवाजे बंद होने का समय 11 बजे है।

वहां जाने के लिए आपको शालीन वस्त्र पहनने होंगे। सिर ढककर रखना होगा, पर वहां टोपी पहनना allowed नहीं है। 

वहां अंदर पहुंचने से पहले अपने जूते-चप्पल, जूता घर में रखकर हाथ धोकर व पैर भी नीचे बहते हुए जल से धोकर जाना होता है। 

मंदिर के चारों ओर सरोवर है, जो कि बहुत पवित्र और मनोकामना को पूर्ण करने वाला माना जाता है। वहां हाथ, मुंह, पैर धोकर जल को सिर-माथे लगाया जाता है। आप चाहे तो सरोवर में डुबकी भी लगा सकते हैं। कहा जाता है इस का जल दुःख, कष्ट, व्याधि को दूर करने वाला होता है।

मंदिर में पंहुचने तक आप आधे मंदिर की परिक्रमा लगा लेते हैं। उसके बाद आप वहां पहुंचेंगे जहां, अंदर जाने के लिए line बनती है। 

वहीं अकाल तख्त साहिब भी है, वहां भी माथा टेकते हैं। 

हम भी line में लगे थे, पर भीड़ बहुत होने के कारण line बहुत धीरे धीरे बढ़ रही थी।

और फिर वही हुआ, जिसका हमें डर था। रात के दस बज गए थे और हम अंदर जाने से वंचित रह गए। 

हम मायूस होकर लौटने लगे, तभी किसी ने कहा कि स्वरुप अभी आएंगे और उनके दर्शन, माथा टेकने के समकक्ष ही हैं।

थोड़ी देर में एक पालकी में गुरू ग्रंथ साहिब को लेकर आए और हम ने वहीं खड़े खड़े माथा टेक लिया। हम पर बाबा जी की मेहर हो गई।

अकाल तख्त साहिब पर माथा टेकने गये तो हमें हलवा का प्रसाद भी मिल गया।

उसके बाद हम लोग ने प्रसाद रुपी लंगर भी ग्रहण किया। Golden temple में 24 घंटे लंगर चलता है। लंगर चखने से पहले और बाद में दोनों समय पैर धोकर ही जाते हैं। वहां पर उपस्थित सभी सेवादार, चुस्त दुरुस्त अपने कार्य को पूजा मानकर लगे हुए थे। दिन भर में ना जाने कितने हजारों लोग लंगर खाकर जाते हैं, पर भोजन व्यवस्था बहुत सुचारू रूप से चलती है कि कुछ भी कमी या गड़बड़ी नहीं होती है। 

सिखों के गुरुद्वारे का एक ही नियम है कि सब याचक हैं, सब एक समान हैं। बाबा जी के दरबार में जो कोई आएगा, उनकी मेहर जरुर से पाएगा।

शायद यही वजह थी कि हम वहां जाकर खाली हाथ नहीं लौटे, हम उनके स्वरुप के दर्शन भी हुए, हमने माथा टेका, हलुआ रुपी प्रसाद व लंगर प्रसाद ले सके। 

बाबा जी की मेहर हो गई। तो हम आप से यही कहेंगे कि अगर किसी कारण वश आप दिन में गुरुद्वारा साहिब नहीं आ पाए हों तो रात में जाएं और भीड़ के कारण अंदर प्रवेश ना कर पाए तो रुक कर स्वरुप के दर्शन अवश्य करें। उसे ही अपने आंखों में बसा कर जाएं।

जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल वाहेगुरु जी का खालसा वाहे गुरु जी की फतेह 

एक विशेष बात ध्यान देने योग्य की अगर संभव हो पाए तो यह पता कर के जाएं कि वहां किसी व्यक्ति विशेष जैसे उनके किसी गुरु जी या किसी विशेष व्यक्ति का जन्म तो नहीं है, क्योंकि ऐसा होने पर golden temple पर भीड़ बढ़ जाती है, शनिवार और रविवार को भी भीड़ बहुत ज़्यादा होती है।‌ अगर आप ऐसे दिन में पहुंच गए हैं तो बस बाबा जी पर श्रद्धा और धैर्य रखकर आगे बढ़ते जाएं, आगे उनकी मेहर तो मिल ही जानी है, वो अपने भक्तों पर कृपा अवश्य बरसाते हैं 🙏🏻

Tuesday, 6 February 2024

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का -2

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का - 2




हमने कल के  Trip Review : Amritsar  - सफर देशभक्ति और आस्था का से अपना सफ़र शुरू किया था, और आपको तलवार म्यूजियम के विषय में बताया था। चलिए आगे चलते हैं, उसके बाद हम बार्डर की ओर चल दिए।

क्योंकि हम लोग 26 January को गये थे, इसलिए हम लोगों को 1:30 बजे तक वहां पहुंच जाना था। 

Wagah Border 




वहां उस समय देशभक्ति गीत बज रहे थे। वहां हम जैसे ही पहुंचे, उस समय केसरी फिल्म का गीत बज रहा था,

 "तलवारों पे सिर, वार दिए, अंगारों पर जिस्म जलाया है, तब जाकर कहीं हमने, यह केसरी रंग सजाया है।"

यह गाना कई बार सुन चुके हैं, पर सच मानिए, उस समय, वह गाना सुनते हुए जब एक-एक कदम हम अंदर की ओर बढ़ रहे थे और हमारे शरीर में देशभक्ति की भावना यूं ओतप्रोत हो रही थी कि हम सब goosebumps feel कर रहे थे। और उसके बाद एक के बाद एक देशभक्ति गीत बदलते रहे, नहीं बदला तो बस यह, वहां मौजूद हम सब लोगों की feeling...

उस दिन हम भारत के उस हिस्से को देखने जा रहे थे जो पाकिस्तान से जुड़ा हुआ था। 

जब हम अंदर बढ़ रहे थे तो दो गगनचुंबी झंडे लहरा रहे थे, एक भारत का तिरंगा और दूसरा पाकिस्तान का। दोनों ही झंडे दूर से दिख रहे थे।

अंदर पहुंचने के बाद एक लंबी सी सड़क थी जिसके दोनों तरफ़ stadium form में stairs थीं जो कि बहुत ऊपर तक थी और एक कोने में दोनों तरफ उन stairs पर कुर्सियां रखी थीं। 

कुर्सियों के बाद में वो gate था, जो भारत और पाकिस्तान को जोड़ता था। 

जब हम उस जगह पहुंचे तो वहां भीड़ आनी शुरू हो चुकी थी, सब अपने-अपने लिए जगह देखकर बैठते जा रहे थे। 

Cultural program लगभग 2 बजे से शुरू हो गया। आपने बहुत से cultural program देखे होंगे, पर जो जोश और उत्साह वहां था वो अलग ही level का था। 

वहां program conduct कराने वाले और सबमें जोश भरने वाले उस व्यक्ति विशेष की जितनी तारीफ की जाए, कम है।

2:30 से 3 बजे तक में पूरा stadium ऐसे खचाखच भर गया था कि तिल रखने की जगह नहीं थी। लगभग हजार से भी ज्यादा लोग वहां मौजूद थे और जब सारे भारत माता की जय, वंदे मातरम् और हिन्दुस्तान जिंदाबाद... के नारे लगाते थे तो बहुत ही गर्व की अनुभूति हो रही थी। 

हम सब सरहद पर बैठे हैं, इस बात से किसी के मन में भी किंचित मात्र भी भय नहीं था, बल्कि सभी के हौसले इतने बुलंद थे कि लग रहा था कि वो नारे मानों ऐलान हों कि कोई भी भारत से टकरा नहीं सकता। 

फिर वो घड़ी आ गई, जिसका हम सब को बेसब्री से इंतज़ार था। लगभग 4 बजे Beating retreat का program शुरू हो गया और चंद मिनटों बाद वो Gate भी खुल गया और उसके बाद दोनों तरफ की सेना का शक्ति प्रदर्शन...

अद्भुत और दुर्लभ... 

और फिर वो ceremony, जिसके कारण इसका नाम है, beating retreat... 

Flags के fold होने का...

दोनों ही देशों के छोटे बड़े कई झंडे थे। दोनों ही देशों के एक-एक सबसे बड़े झंडे को छोड़कर, बाकी सभी झंडों को slant कर के fold कर दिया जाता है।

26 January और 15 August को वाघा बार्डर या अटारी बार्डर पर 2 बजे से cultural program शुरू हो जाते हैं, और beating retreat 4 बजे से शुरू होती है।

ठंड में beating retreat का time 4 से 5 बजे का होता है और गर्मियों में समय 5 से 6 का होता है।

Beating retreat रोज ही शाम को होती है। 26 January and 15 August में बस उस से  पहले cultural program भी add हो जाता है।

यहां बहुत भीड़ होती है, इसलिए सही समय से पहुंचना और निकलना बहुत जरूरी होता है।

आपको अपने साथ खाने-पीने की कोई भी चीज अपने साथ ले जाने की जरूरत नहीं है, पानी से लेकर cold drink, chips, biscuits, chocolate, popcorn, icecream etc सब वहां बिकता है और वो भी लगभग rate to rate... पर कोई चीज महंगी होगी भी तो दस-बीस रुपए ज्यादा... Picture hall, जितना दुगुने चौगुने दाम पर नहीं...

अगर आप को chair वाली जगह चाहिए तो वो online book होती है, जिसका कोई charge नहीं है, बस timely booking देखनी होगी। 

बाकी ऐसा नहीं है कि chairs वाली जगह नहीं मिली तो कुछ भी उत्साह और जोश कम होगा, ऐसा बिल्कुल नहीं है... 

जय हिन्द जय भारत 🇮🇳 

अभी बहुत कुछ बाकी है तो बस ऐसे ही आपको हर रोज़ बताते जाएंगे तो बस आपको करना यह है कि हम से जुड़ा रहना है...

Monday, 5 February 2024

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का

Amritsar, इस शहर का नाम आते ही ज़हन में आता है, Golden Temple... 

पर अमृतसर में सिर्फ golden temple ही नहीं है बल्कि और भी बहुत कुछ है। 

इसलिए अगर आप कहीं घूमने जाने का plan कर रहे हैं तो अमृतसर का plan कर सकते हैं और एक अच्छी बात यह है कि इसके लिए आपको बहुत सारे दिन की जरूरत भी नहीं है।

अभी हाल ही में अमृतसर जाना हुआ, जहां का हमारा experience बहुत ही अच्छा रहा, तो आज़ आपके लिए उसी को share कर रहे हैं‌।

Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का 


अमृतसर शहर, एक ऐसा शहर है जो कि आस्था और देशभक्ति दोनों से ही परिपूर्ण है। यह एक ऐसा शहर है जहां सम्पन्नता भी है और प्रसन्नता भी है। एक और विशेषता मिली इस शहर में कि यहां के रहने वाले अधिकांशतः लोग किसान हैं, पर सभी दूसरे कामों द्वारा भी अपना जीवन यापन कर रहे हैं, इसलिए यहां के किसान उतने गरीब नहीं है, जितने बाकी जगह पर हैं और क्योंकि अधिकांशतः किसान हैं, इसलिए वे मेहनती भी है, जिसके कारण वो बाकी काम भी बड़ी मुस्तैदी से करते हैं। एक और महत्वपूर्ण बात, यहां पर स्त्री-पुरुष बराबर से सभी काम करते हैं तो इनकी सोच संकीर्ण नहीं है।‌ कुल मिलाकर यहां आप सुरक्षित भी रहेंगे और प्रसन्न भी... यह तो हुई वहां के लोगों की और उनकी संस्कृति की बात।

चलिए अब अमृतसर की जगहों की भी बात कर लेते हैं और जान लेते हैं कि अगर आप अमृतसर शहर घूमने जा रहे हैं तो आप को कितना समय लगेगा...

अमृतसर बहुत बड़ा और बिखरा हुआ शहर नहीं है, अतः  2½ से 3 दिन बहुत हैं, सभी जगहों को देखने के लिए। 

बस आपको उसके लिए अपना पूरा program ऐसे plan करना होगा कि वहां के कुछ special जगहों के timing meet-up हो जाए। 

जी हां वहां कुछ जगहें ऐसी हैं, जहां पर कुछ timings है तो सबसे पहले हम आपको उन timings के बारे में बताते हैं, फिर सभी जगहों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं।


1. Golden temple :- 

सुबह 3 बजे से रात 10 बजे तक, ध्यान रखिएगा कि अगर 10 बज गए और आप line में लगे भी होंगे तो भी माथा नहीं टेक पाएंगे, अतः line में time देखकर ही लगें और बता दें, भीड़ बहुत ज़्यादा होती है तो माथा टेकने में कम से कम तीन से चार घंटे लग सकते हैं।


2. Jallianwala Bagh :-

यह सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक खुलता है तो इसका भी ध्यान रखें।

 

3. Wagah Border :- 

Beating retreat: शाम 4 बजे से 5 बजे तक सर्दियों में

5 बजे से 6 बजे तक गर्मियों में 


4. Qila Gobindgarh :-

इसमें evening time में कुछ shows होते हैं जो interesting होते हैं तो एक evening का time आपको उसके लिए भी रखना होगा।


Mostly लोग golden temple के पास ही hotel लेना prefer करते हैं। जिससे पूरे समय गुरूबाणी सुनाई दे। अगर आप सिर्फ golden temple में माथा टेकने पहुंचे हैं तो यही best option है।

पर अगर आप का plan हमारी तरह golden temple और Attari border दोनों जगह नमन करना है तो आप hotel का plan हमारी तरह भी कर सकते हैं। 

हमारा hotel, hall gate पर था। जो कि golden temple से 2 km. पर और station से 500 meter पर था। 

Hall gate पर hotel होने से आपका hotel on road रहता है, जिससे सब जगह के लिए Conveyance easily मिल जाता है। Golden temple के पास जलियांवाला बाग और partition musium है, बाकी सब दूसरी तरफ है तो अगर आप उसको ध्यान में रखते हैं तो हमारे hotel की location बहुत अच्छी जगह पर थी। वहां से भी कुछ जगहें बहुत पास थी। तो hotel का चुनाव करते समय यह ध्यान रखिएगा। एक बात हम, आपको बता दें कि हमारे hotel में भी हमें गुरुबाणी सुनाई दे रही थी।

हम लोग ने अपना program ऐसे रखा था कि हम 26 January को भारत के अटारी बार्डर को नमन कर सकें। अतः हम 25 January की रात में अमृतसर पहुंच गए थे। 

चलिए अब आपको सभी जगहों की विस्तृत जानकारी देते हैं। 

पहला दिन: हम सुबह 9 बजे निकलेंगे, सबसे पहले War Memorial देखें।


War Memorial (तलवार museum) :-




यह museum इन दोनों नाम से मशहूर है। शुरुआत इसी से की थी हमने... क्योंकि हम लोगों के मन में देश को और उसके वीरों को नमन करने की लालसा सबसे ज्यादा बलवती थी।  

हमने यहां guide किया था, वैसे guide के बिना भी अगर आप इसे देखेंगे तो भी आप को बहुत कुछ समझ आ जाएगा क्योंकि वहां बहुत कुछ लिखा हुआ है और कुछ video clips भी चलती हैं।

तलवार museum में एक special और उसके अलावा 9 और gallery थीं। 

जब उसमें enter किया था तो एक बहुत बड़ी तलवार दिखी थी, जिसकी लंबाई 45 meters है, जो कि stainless steel की बनी है, साथ ही यह विश्व की सबसे लंबी तलवार है,

जो इस museum को यादगार बनाती है, और इस लिए ही  इसका नाम तलवार museum है।  

इसमें पहली special gallery में Indian army के सभी regiment के flags और बहुत तरह के युद्ध में प्रयुक्त होने वाले शस्त्र हैं।

बाकी की 9 gallery में India के हड़प्पा से लेकर आज तक के सेना युद्ध का वर्णन है। वैसे आप इसे 1 hour में देख सकते हैं, पर यह ऐसी जगह है जहां देश को प्रेम करने वालों की झलकियां हैं और अगर आप भी देशप्रेमी हैं और उन पलों को जीना चाहते हैं, जो इन वीरों के सीने को छूकर गुजरे थे, तो आपको यहां 2 से 3 घंटे लगेंगे इस museum को देखने में। एक बात आप को यह भी बता दें कि 10 galleries में से कुछ में wax के statues भी हैं, अतः उनमें gallery में ठंड कुछ ज्यादा रहती है। गर्मियों में तो अच्छा लगता है, लेकिन ठंड के दिनों के ठीक से गर्म कपड़े पहनकर जाएं। 

वैसे इस museum को जरूर से देखें, वो भी समय लेकर, यह आपको, आपके देश से बहुत गहरे तक जोड़ता है।

इस Trip Review को हम कुछ भागों में डाल रहे हैं, जिससे आपको छोटी छोटी बातों को बता सकें, जिससे आप की trip बहुत यादगार रहे। 

तो अगले भागों को भी जरुर से पढ़िएगा... 

हम आपको सारे भाग इस पूरे week में डालेंगे।