वो भयानक रात (भाग -2) के आगे...
वो भयानक रात (भाग -3)
सन्नी आगे दरवाजे की ओर बढ़ा, तभी आशा ने उसका हाथ ज़ोर से पकड़ लिया... अरे क्या कर रहे हो सन्नी बाबा?
पीछे हट जाओ, दरवाजा खोलने की जरूरत नहीं है, मेरा मरद होगा.. पक्का मुझे लेने आया होगा...
आपके पति आंटी? वो क्यों आएंगे इतनी रात में???
अरे मैं जानती हूं, अपने मरद को, वो ही होगा..
आशा का कहना सही था, वो आशा का पति संजीव ही था।
वो ज़ोर ज़ोर से आशा का नाम लेकर बाहर बुला रहा था, शायद उसने बहुत अधिक शराब भी पी रखी थी... क्योंकि उसकी आवाज़ में लडखडाहट साफ सुनाई दे रहा था।
सुनकर सुरेश जी बोले, जब संजीव तुम्हें लेने आया है, तो दरवाजा भी खोलना चाहिए और तुम्हें उसके साथ जाना भी चाहिए।
आशा, सुनीता के पैरों से लिपट गई, दीदी, भैया को मना करो, वरना संजीव मुझे पीट-पीटकर अधमरा कर देगा।
बस रात भर की बात है, सुबह होते ही मैं गांव चली जाऊंगी... तुम्हारे घर इतने दिन काम किया है, तुमने मेरा हमेशा साथ दिया है, एक आखिर बार और दे दो।
एक बार बच्चों को अपनी मां के पास गांव छोड़ आऊं, फिर ठीक से निपटूंगी संजीव से...
मुझे अपनी चिंता नहीं है, एक बार बच्चों की चिंता से मुक्त हो जाऊं, वरना यह नकारा इंसान शराब के लिए मेरे बच्चों को बेच देगा।
आशा, बिना सांस लिए बस बोले जा रही है, साथ ही वो बहुत बुरी तरह से कांप भी रही थी, न जाने डर से या क्रोध से...
उधर संजीव भी दरवाजा पीटे जा रहा था, साथ ही गाली-गलौज भी कर रहा था।
कुछ देर में उसने आशा के साथ-साथ सुनीता के घर के सब लोगों को भी गाली देना शुरू कर दिया और वो भी बहुत तेज़ स्वर में...
अब तो शोर शराबे से पूरे apartment के लोग जाग गये, कुछ के तो फोन भी आने लगे कि वो लोग आधी रात को क्या तमाशा करवा रहे हैं? दरवाजा खोलकर maid को भेज क्यों नहीं देते हैं?
सुरेश जी भी तंग आकर सोच रहे थे कि क्या करें? एक तरफ हद का मचता हुआ शोर, दूसरी ओर आशा का गिड़गिड़ाना...
इससे पहले कि वो निर्णय लेते, बहुत तेज़ भढाम से आवाज़ हुई...
आगे पढ़े वो भयानक रात (भाग -4) में ...