Tuesday 26 March 2024

Article : बदलता समाज, ज़िम्मेदार कौन?

बदलता समाज, ज़िम्मेदार कौन?

आज कल लोग, काम करने में इतने व्यस्त होते जा रहे हैं कि जो जीवन की सबसे बड़ी ज़रूरत है, उसी काम को करने से कतराने लगे हैं। 

जी, बिल्कुल सही समझे, खाना बनाने से...

पहले Gents, working होते थे और Ladies, housewife... 

घर, बाहर दोनों का काम सुचारू रूप से चल रहा था। 

देखा जाए तो काम दोनों के पास बहुत थे और दोनों कामों का महत्व और आवश्यकता भी बराबर की थी।

पर social setup ऐसा था कि working और पैसे कमाने को ज्यादा waitage दिया जाता था और housewife को हेय दृष्टि से देखा जाता था। 

इसका नतीजा यह हुआ कि ladies को अब housewife बनना, अपना अपमान समझ में आने लगा। Housewife कहलाया जाना उन्हें रास आना बंद हो गया।

हो भी क्यों नहीं? दिन से लेकर रात तक काम, काम और काम करते जाने के बाद भी जब यही सुनने को मिले कि तुमने किया क्या है? 

दिन भर महारानी की तरह घर में एशो-आराम के सिवाय...

तुम्हारे ऊपर कौन है? तुम्हें डांटने फटकारने के लिए, targets achieve करने का tension तुम क्या जानो? 

दिन भर लगे रहो, तब कहीं जाकर पैसे मिलते हैं कि तुम्हारा घर चला सकूं, तुम्हारे नाज-नखरे उठाएं, तुम्हारे शौक पूरे करे।

पर उन्होंने कभी नहीं सोचा कि ladies भी एक पैर पर खड़ी होकर घर के सारे काम, खाना-पीना, बच्चे से बूढ़ों तक सब की जिम्मेदारी, सारी रिश्तेदारी संभाल रही थी, इसलिए gents सुकून से काम पर जा सकते हैं। 

पर इन सबका कोई मोल नहीं था, यह सब ladies के काम थे, उसके फ़र्ज़ थे... पर इन्हें gents द्वारा किए जाने वाले काम का counter part समझा जाए, बराबर का मान दिया जाए, ऐसा नहीं था।

नतीजतन ladies ने भी घर से बाहर निकल कर पढ़ाई-लिखाई कर के working woman का status बना लिया। 

अब जब उनका भी status working ही है, तो वो भी क्यों करें? ऐसे काम, जिसका कोई मोल नहीं है। 

पहले घरों के घरेलू काम, जैसे बर्तन, झाड़ू-पोछा, कपड़े धोना आदि काम के लिए maids रखी जाने लगी। 

बच्चे घर की बजाए, daycare में पलने लगे। उनकी पढ़ाई-लिखाई के लिए जहां tuitions 10-12 classes में लगाई जाती थी, वहीं अब playschool, nursary-primary से ही शुरू कर दी जाती है, क्योंकि अब किसी भी चीज के लिए ना time है, ना मन..

उसका ही नतीजा है कि market भर गया है, बड़े-बड़े branding name से, FIITJEE, Aakash, Byju's, Vidyamandir etc. इनसे पढ़ना status symbol भी समझा जाता है और यह भी कहा जाता है कि हमारा बच्चा tuition नहीं पढ़ रहा है, coaching कर रहा है, वो पैदा होने के साथ ही engineering, medical और professional courses के लिए train हो रहा है... पर सच्चाई क्या है, सब जानते हैं, आप कहें कुछ भी, मानें कुछ भी...

उसके बाद, जीवन से जुड़े सबसे आवश्यक काम पर भी इसका असर पड़ने लगा, कि अब तो नंबर खाना बनाने पर भी आ गया है। 

Ladies अब खाना भी बनाना नहीं चाहती हैं, उसके लिए भी या तो maids रखी जाती हैं और जिस दिन वो ना आएं, खाना बाहर से order कर दिया जाता है। 

फिर business तो need bases पर चलता है, इतनी ज्यादा eateries, half cooked, readymade items, बढ़ गये हैं कि कभी किसी ने सोचा ही नही था।

और इसका प्रचलन इतना ज़्यादा बढ़ता जा रहा है कि जो खाना अपने आप बनाते हैं, उन्हें low standard, गरीब या backward सोच का समझा जाने लगा है।

इसका असर यह पड़ रहा है कि, जहां पहले लड़कियां खाना बनाना 12-15 साल की age से सीख जाती थीं। आज कभी भी सीखना ही नहीं चाहती हैं, साथ ही आज-कल, उनके माता-पिता ने भी उन्हें सिखाना लगभग बंद कर दिया है। आखिर कौन चाहता है कि अपने बच्चों को सुख और मान ना मिले? 

अब जिंदगी बस एक ही हो गई है, खूब सारे पैसे कमाओ, सब चीज़ें outsource कर दो, किसी से मतलब नहीं, बस अपना आराम, अपनी मौज-मस्ती...

पर इन सब में कहीं, अस्वस्थ रहना बढ़ता जा है। साथ ही अपनापन, प्यार, एहसास, संतुष्टि और सच्चा सुख, विलुप्त होता जा रहा है और होता ही जाएगा...

पर इसका जिम्मेदार कौन?

हम सब ही ना....

कल के article में आपको कुछ ऐसे appliance बताएंगे, जो आपको बहुत उपयोगी लग सकते हैं, so stay tuned...