Monday, 16 May 2022

India's Heritage : ताकत का परिचय ( भगवान बुद्ध)

भारतीय संस्कृति के हर रंग में आपको सम्पूर्णता दृष्टिगोचर होगी।

फिर बात, चाहे मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभू श्रीराम की महानता की हो, भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाओं से परिपूर्ण लीलाओं की हो या भगवान बुद्ध की सौम्यता की हो‌...

हर रंग अपने में जुदा, पर सम्पूर्णता से परिपूरित।

आज बुद्ध पूर्णिमा के पावन पर्व पर आप सभी को भगवान बुद्ध से जुड़ी, एक सच्ची कहानी बताने जा रहे हैं।

शांति और सौम्यता की मूर्ति भगवान बुद्ध ने सबको ईश्वर की प्राप्ति का बहुत सुगम और सरल मार्ग बताया था।

भगवान बुद्ध, जब भी, किसी को शिक्षा या ज्ञान प्रदान करते थे। उसका तरीका, इतना सरल और स्पष्ट होता था कि उसका प्रभाव मनुष्य के सीधे ह्रदय पर होता था।

आप सबसे अनुरोध है कि उनके व अंगुलिमाल के संवाद पर विशेष ध्यान दीजिएगा, जो हमें एहसास कराता है, कि सृजनकर्ता ही शक्तिशाली है।

उनकी इसी सरलता और स्पष्टता को उजागर करती, विरासत की, आज की कहानी है।

ताकत का परिचय




प्राचीनकाल की बात है। मगध देश की जनता में आतंक छाया हुआ था। अँधेरा होते ही लोग घरों से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे, कारण था अंगुलिमाल।

अंगुलिमाल एक खूँखार डाकू था जो मगध देश के जंगल में रहता था। जो भी राहगीर उस जंगल से गुजरता था, वह उसे रास्ते में लूट लेता था और उसे मारकर उसकी एक उँगली काटकर माला के रूप में अपने गले में पहन लेता था। इसी कारण लोग उसे 'अंगुलिमाल' कहते थे।

एक दिन उस गाँव में महात्मा बुद्ध आए। लोगों ने उनका खूब स्वागत-सत्कार किया। 

महात्मा बुद्ध ने देखा वहाँ के लोगों में कुछ डर-सा समाया हुआ है। महात्मा बुद्ध ने लोगों से इसका कारण जानना चाहा। 

लोगों ने बताया कि इस डर और आतंक का कारण डाकू अंगुलिमाल है। वह निरपराध राहगीरों की हत्या कर देता है। 

महात्मा बुद्ध ने मन में निश्चय किया कि उस डाकू से अवश्य मिलना चाहिए।

बुद्ध जंगल में जाने को तैयार हो गए, तो गाँव वालों ने उन्हें बहुत रोका क्योंकि वे जानते थे कि अंगुलिमाल के सामने से बच पाना मुश्किल ही नहीं असंभव भी है। 

लेकिन बुद्ध अत्यंत शांत भाव से जंगल में चले जा रहे थे। तभी पीछे से एक कर्कश आवाज कानों में पड़ी- "ठहर जा, कहाँ जा रहा है?"

बुद्ध ऐसे चलते रहे मानो कुछ सुना ही नहीं। पीछे से और ज़ोर से आवाज आई-"मैं कहता हूँ ठहर जा।" 

बुद्ध रुक गए और पीछे पलटकर देखा तो सामने एक खूँखार काला व्यक्ति खड़ा था। लंबा-चौड़ा शरीर, बढ़े हुए बाल, एकदम काला रंग, लंबे-लंबे नाखून, लाल-लाल आँखें, हाथ में तलवार लिए वह बुद्ध को घूर रहा था। उसके गले में उँगलियों की माला लटक रही थी। वह बहुत ही डरावना लग रहा था।

बुद्ध ने शांत व मधुर स्वर में कहा- "मैं तो ठहर गया। भला तू कब ठहरेगा?"

अंगुलिमाल ने बुद्ध के चेहरे की ओर देखा, उनके चेहरे पर बिलकुल भय नहीं था जबकि जिन लोगों को वह रोकता था, वे भय से थर-थर काँपने लगते थे। 

अंगुलिमाल बोला- "हे सन्यासी! क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा है? देखो, मैंने कितने लोगों को मारकर उनकी उँगलियों की माला पहन रखी है।"

बुद्ध बोले- "तुझसे क्या डरना? डरना है तो उससे डरो जो सचमुच ताकतवर है।" अंगुलिमाल ज़ोर से हँसा - 'हे साधु! तुम समझते हो कि मैं ताकतवर नहीं हूँ। मैं तो एक बार में दस-दस लोगों के सिर काट सकता हूँ।'

बुद्ध बोले - 'यदि तुम सचमुच ताकतवर हो तो जाओ उस पेड़ के दस पत्ते तोड़ लाओ।' अंगुलिमाल ने तुरंत दस पत्ते तोड़े और बोला - 'इसमें क्या है? कहो तो मैं पेड़ ही उखाड़ लाऊँ।' 

महात्मा बुद्ध ने कहा - 'नहीं, पेड़ उखाड़ने की ज़रूरत नहीं है। यदि तुम वास्तव में ताकतवर हो तो जाओ इन ‍पत्तियों को पेड़ में जोड़ दो।' 

अंगुलिमाल क्रोधित हो गया और बोला - 'भला कहीं टूटे हुए पत्ते भी जुड़ सकते हैं।' महात्मा बुद्ध ने कहा - 'तुम जिस चीज को जोड़ नहीं सकते, उसे तोड़ने का अधिकार तुम्हें किसने दिया?

एक आदमी का सिर जोड़ नहीं सकते तो काटने में क्या बहादुरी है? अंगुलिमाल अवाक रह गया। वह महात्मा बुद्ध की बातों को सुनता रहा। एक अनजानी शक्ति ने उसके हृदय को बदल दिया। उसे लगा कि सचमुच उससे भी ताकतवर कोई है। उसे आत्मग्लानि होने लगी।

वह महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और बोला - हे महात्मन् ! मुझे क्षमा कर दीजिए। मैं भटक गया था। आप मुझे शरण में ले लीजिए।

भगवान बुद्ध ने उसे अपनी शरण में ले लिया और अपना शिष्य बना लिया। आगे चलकर यही अंगुलिमाल एक बहुत बड़ा साधु हुआ।

ऐसे महान थे भगवान बुद्ध... और उनकी महानता की, यह ही नहीं बल्कि बहुत सी कहानियांँ हैं। और हर कहानी आप को यही संदेश देगी, कि काम और क्रोध से नहीं अपितु शांत और सौम्य रहकर, प्रेम और विश्वास से प्रभू की प्राप्ति होती है।

बुद्ध पूर्णिमा पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏🏻💐