Wednesday, 2 December 2020

Poem : कौन बाँचेगा मेरी कथाएँ

आज आप सब के साथ मुझे श्रीपाल सदन लोहरवाड़ा,ऋषभदेव जिला उदयपुर राजस्थान के  रचनाकार नरेंद्रपाल जैन जी की कविता को साझा करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।  

आप सभी इस कविता का आनन्द लीजिए।


कौन बाँचेगा मेरी कथाएँ




भाव के कागज़ पे अंकित,

मौन  बैठे शब्द सारे,

आस के अम्बर से टूटे,

पँक्तियों के कुछ सितारे।   

नयनों में सब बंद मेरी नीर में भीगी व्यथाएँ।

कौन बाँचेगा मेरी कथाएँ।


चल के बाजारों में आई

एक पुस्तक ज़िन्दगी की।

कुछ पुराने कुछ फ़टे-से

प्रेम रंगों में सजी-सी।

मोड़कर पन्नों में उलझन की यहां प्रचलित प्रथाएँ,

कौन बाँचेगा मेरी कथाएँ।


रीत की होती नीलामी

प्रीत अनुबंधों में अक्सर,

रह गए सारे कथानक,

आवरण पृष्ठों में दबकर।

हासिये पर सो गई हैं मन की सारी वेदनाएँ,

कौन बाँचेगा मेरी कथाएँ।


वक्त ने पलटे जो पन्ने

धूल यादों की उड़ाई।

प्यार उनका याद आया

जिनसे हरदम थी लड़ाई।

फाड़कर कागज़ चली हैं नेह की विपरीत हवाएँ,

कौन बाँचेगा मेरी कथाएँ।


बादलों को जब पढ़ाया

बारिशें छम-छम के नाची,

भीगकर भारी हुई तब

ज़िन्दगी की हर उदासी।

बिजलियों ने घेरकर पूछा कहो कितनी जलाएँ,

कौन बाँचेगा मेरी कथाएँ।


Disclaimer:
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