Thursday, 15 November 2018

Article : भ्रष्टाचार मिटाओ, नया भारत बनाओ


भ्रष्टाचार मिटाओ, नया भारत बनाओ




आज–कल का ज्वलंत मुद्दा बन गया है भ्रष्टाचार। उसको दूर करने के नारे तो सब खूब लगते हैं। सरकारें इसके लिए क्या कर रही है, इस पर चर्चा भी बखूबी कर लेते हैं। सरकार पर दोषारोपण करके 
सभी सरकारों को नकारा सिद्ध करने में सब आगे भी रह लेते हैं। 

पर उसको दूर करने के लिए स्वयं क्या कर रहे हैं? क्या हम को भी जब मौका मिलता है, तो हम अपना उल्लू सीधा नहीं करते हैं? अगर हमारा कोई फंसा हुआ कार्य भ्रष्टाचार के द्वारा सिद्ध हो रहा होता है। उस क्षण हमे भ्रष्टाचार से कोई आपत्ति नहीं होती है, क्यों? क्योंकि हम सभी के लिए सर्वोपरि हम हैं, हमारे काम हैं। हाँ पर, हमारा कोई काम सिद्ध नहीं हो रहा हो, तब उस समय हम झण्डा लेकर खड़े रहेंगे, भ्रष्टाचार दूर करो का नारा लगते हुए। तब हम बहुत महान बन जाएंगे, देशभक्त बन जाएंगे।

पर अगर हम सचमुच चाहते हैं, कि भ्रष्टाचार दूर हो, तो आरंभ स्वयं से करना होगा। क्योंकि स्व आचरण बदलना ही सबसे कठिन होता है। दूसरों पे दोषारोपण करना भी आसान है, और उन्हें सही करने की सीख देना भी।

पर कोई भी क्रांति तभी आती है, जब सब इसकी परवाह ना करें, कि मेरे करने से, या ना करने से क्या होता है, बाकी सब भी तो...... एक अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता?

क्योंकि अगर झाँसी की रानी, मंगल पांडे, भगत सिंह, चंद्र शेखर आज़ाद, सुभाष चंद्रबोस, गांधी जी, नेहरू और भी जो स्वतन्त्रता सेनानी थे, वे भी यही सोचते कि मेरे करने या ना करने से क्या होगा?.......  तो क्या होता ये तो पता नहीं है, पर हाँ भारत देश आज भी गुलामी की जंजीरों में जरूर जकड़ा होता।

जिस तरह से उस समय ये महान लोगों अपने मन में स्वतन्त्रता की मशाल जला कर आगे बढ़े थे, तो कारवां बन गया था  
उसी तरह हमारी सोच भी यही होनी चाहिए कि एक एक बूँद से सागर बनता है। और मैं वो पहली बूँद बन के यह शपथ लेता हूँ  मैं खुद कोई भ्रष्टाचार नहीं करूंगा”।

मैं शुरुआत करूंगा, कांरवा तो स्वयं बन जाएगा। और तब बनेगा हमारे सपनों का भारत  

भ्रष्टाचार मुक्त नवभारत


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