Sunday, 16 February 2020

Stories of Life : तृप्ति

तृप्ति


आज 25 साल बाद, देहरादून की हंसी वादियों में आस्था और सुगंधा की मुलाक़ात हो गयी,
आस्था पहले के ही समान दुबली-पतली, लंबे घने बालों की लहरती चोटी, माथे में लाल बिंदी, simple से सलवार सूट में भी बड़ी सुंदर दिख रही थी,
जबकि सुगंधा ने अच्छा खासा weight put on  कर लिया था, jeans top, short haircut में थी।

सुगंधा ने आस्था को तुरंत पहचान लिया, उसको पहचानते ही वो आस्था की ओर चल दी, आस्था के पास आते ही वो आस्था के गले लग गयी। आस्था को सुगंधा को पहचानने में थोड़ा वक़्त लगा, पर पहचानते ही, बस फिर क्या था, दोनों की ढेरों बातें शुरू हो गयी।

दोनों ही D.U. की पढ़ी हुई थीं। आस्था वहाँ की topper थी, सुगंधा भी पढ़ाई में second स्थान पर थी। सुगंधा हमेशा आस्था से आगे निकलने का प्रयास करती रहती थी, इसलिए जब उसकी अच्छी job लगी थी, वो तब से ही आस्था से मिलने के लिए आतुर थी।
आस्था से मिलते ही उसने सब से पहले उससे यही पूछा, तुमने कौन सी job join की?

आस्था ने बड़े ही सधे शब्दों में कहा – अपने बच्चों के भविष्य निर्माण की।

मतलब!

मैंने अपनी सफलता की ऊंचाइयों के बदले अपने बच्चों की सफलताओं को चुना है।

अरे यार, क्या पहेलियां बूझा रही हो, क्या कर रही हो साफ साफ बताओ, सुगंधा खीजते हुए बोली।
I am home maker- आस्था ने बताया।

ओह, तो तुम house wife हो! तुमने तो अपना जीवन ही बर्बाद कर लिया। तुम भूल गयी तुम DU topper हो, तुम्हें तो कोई भी job मिल सकती थी, तुम आज किसी company की MD/CEO होती। तब तुमने ऐसा क्यों किया, तुम्हारे husband का decision है? बहुत पुराने ख्यालत के हैं क्या? ये सारा सुगंधा एक ही सांस में बोल गयी।

अरे अरे रुक जा सुगंधा, सब बताती हूँ तुझे। यहीं पास में मेरा घर है, चल वहीं चलते हैं, तेरी पसंद के पकौड़े और coffee बनातीं हूँ, वहीं तेरे सारे सवालों के जवाब भी दे दूंगी।

आस्था का घर बहुत ही सुंदर, सुव्यवस्थित था। घर का एक एक समान बहुत सोच समझ के लिया हुआ लग रहा था, घर में घुसते ही भीनी भीनी सी सुगंध आ रही थी, जैसे किसी मंदिर में प्रवेश कर रहे हों। अंदर आते ही बहुत शांति और तृप्ति का एहसास हो हा था

अभी उन लोगों ने प्रवेश किया ही था, कि अंदर से.......

आगे पढ़ें तृप्ति (भाग-2) में