Thursday, 16 March 2023

Story of Life: मेरी सास ही मेरी सांस (भाग- 4)

 मेरी सास ही मेरी सांस (भाग-1) 

मेरी सास ही मेरी सांस (भाग-2) 

मेरी सास ही मेरी सांस (भाग-3)


मेरी सास ही मेरी सांस (भाग- 4)


मां बोली, अकेले जाएगा कि बहू को भी ले जाएगा?

पर रैना तो आपके पास..

मेरे लिए शादी की थी, भोलेनाथ? 

चल मैं ही बोल देती हूं रैना को... 

रैना बेटा, जल्दी से तैयारी कर लें, संयम के साथ तुम भी दिल्ली जा रही हो।

दिल्ली... पर मैं तो आपके साथ रहूंगी...

मेरे तो बेटा-बहू दोनों ही भोलेभंडारी हैं। शादी हुई है तुम दोनों की एक दूसरे के लिए, ना कि मां-पापा के लिए...

अच्छा मां, कहकर रैना अपने कपड़े pack करने लगी।

अरे यह क्या बांवरी, तुम्हरा पति गांव देहात में नौकरी नहीं करता है जो साड़ी पर साड़ी रखती जा रही है। 

कुछ अच्छी साड़ी और कुछ सूट रख लो, और हां संयम बहू को कुछ ढ़ंग की jeans and western dress भी दिला देना। 

रैना बड़े आश्चर्य से अपनी सास को देख रही थी, कितनी खुली सोच की हैं मां...

अरे ऐसे क्या देख रही हो, तुम दिल्ली में जो चाहे पहनो, मुझे कोई ऐतराज नहीं है, बस ध्यान रखना कि dress ऐसी हो, जो कि मर्यादा में हो।

और एक बात याद रखना,  यहां जब भी आओगी, साड़ी ही पहननी है। 

जी मां, हमेशा याद रखूंगी...

घर में सब गायत्री जी से बहुत डरते हैं, पर रैना ने सारे डर को भूलाकर गायत्री जी के गले लगा गई। मां ने भी बहू को बहुत सारा प्यार किया। 

संयम बड़े अचरज से मां को देख रहा था, कोई मां के गले से भी लग सकता है। मैंने यह हिम्मत कभी क्यों नहीं की...

थोड़ी देर बाद मां बोली, अब छोड़ मुझे, वरना यहीं रुकना होगा। रैना ने झट छोड़ दिया, सभी जोर जोर से हंसने लगे।

रैना संयम के साथ दिल्ली चली गई। उन लोगों के जाने के बाद गायत्री जी अपने कार्यों में यथावत लग गई पर संयम और रैना के जाने से उन्हें बहुत खाली खालीपन महसूस हो रहा था।

वो सोचने लगी कि बेटा तो हर बार जाता था पर कभी ऐसा नहीं लगा, फिर इस बार क्यों?

बहू को बुला लूं? वो भी कहां जाना चाहती थी... 

आगे पढ़े...मेरी सास ही मेरी सांस (भाग- 5) अंतिम भाग में..

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