Thursday, 30 March 2023

India's Heritage : क्यों थे राम मर्यादा पुरुषोत्तम!..

 क्यों थे राम मर्यादा पुरुषोत्तम!


आज राम नवमी के पावन पर्व पर विरासत के अंतर्गत, आपको प्रभू श्रीराम के जीवन से जुड़ी हुई एक कहानी साझा कर रहे हैं, जिससे आप को ज्ञात होगा कि भगवान श्री राम, क्यों थे मर्यादा पुरुषोत्तम!...

बात त्रेतायुग की है। भगवान श्री राम के जीवन से संबंधित, जैसा कि आप सबको विदित ही होगा कि प्रभू श्रीराम ने 14 वर्ष का वनवास काटा था।

पर क्या वनवास, माता कैकई ने प्रभू श्रीराम को दिया था? 

नहीं दिया था...

क्या राजा दशरथ ने दिया था?

नहीं दिया था... 

क्या हुआ? 

आप सोच रहे हैं कि हमें पता भी है कि क्या हुआ था? या हम कुछ भी लिख रहे हैं!..

जी हमें भी बिल्कुल वही पता है, जो आपको पता है कि माता कैकई ने अपनी दासी मंथरा के उकसाने से राजा दशरथ से दो वरदान मांगे थे, जिसमें एक, राम को वनवास और दूसरा अपने पुत्र भरत को राजगद्दी...

जिसके फलस्वरूप प्रभू श्रीराम वनवास के लिए चले गए थे... आप इसी बात को कह रहे थे.. है ना? 

चलिए यह तो हुई वो बात, जिसे सब जानते हैं।

अब उस बात की तरफ चलते हैं, जिसे जानते तो सब हैं, पर उस तरह से मानते नहीं हैं।

हम क्या कहना चाह रहे हैं, बताते हैं आपको...

आप को क्या लगता है, माता कैकई को भगवान श्री राम कितना मान देते थे?

उनके द्वारा कही गई, बात को वो बिना किसी प्रश्न को पूछे, पूरा करते थे?

अवश्य पूरा करते थे... क्योंकि वो तो मातृ-पितृ भक्त थे..

माता कैकई को वह अपनी माँ कौशल्या से कम मान या प्यार देते थे?

नहीं बिल्कुल नहीं, प्रभू श्रीराम ने अपनी सभी माताओं को बराबर से मान व स्नेह दिया...

क्या माता कैकई, राम से अधिक अपने पुत्र भरत को स्नेह करती थी?

ऐसा कदापि नहीं था, क्योंकि माता कैकई को अपने पुत्र भरत से अधिक प्रिय राम थे।

अब बात करते हैं कि जब माता कैकई और भगवान राम का आपसी संबंध इतना सुदृढ़ था, तो क्या जरूरत थी, माता कैकई को अपने दो वरदान, राजा दशरथ से मांगने की?

वो तो प्रभू श्रीराम से सीधे ही कह भर देती कि, राम मुझे भरत के लिए राजगद्दी चाहिए, तो प्रभू श्रीराम तो जीवन पर्यन्त के लिए राज्य छोड़कर वनवास को चले जाते...

पर माता कैकई तो यह चाहती ही नहीं थीं, इसलिए ही तो उसने राजा दशरथ से दो वरदान मांगे थे...

नहीं चाहतीं थीं तो वरदान मांगे ही क्यों थे?

माता कैकई, भगवान राम को असीम स्नेह करती थीं, वो राम को तपोवन में भेज दें, ऐसा करना तो दूर, वो ऐसा सोच भी नहीं सकतीं थीं।

पर मंथरा के यह कहने से की, अपने पुत्र भरत के लिए भी सोचो... 

वो दुविधा में थीं, पुत्र के भविष्य के विषय में ना सोचें तो लोग कहेंगे कि कैसी माँ है? जिसे अपने पुत्र से स्नेह नहीं, उसके भविष्य की चिंता नहीं... पर उसके लिए अपने सुकोमल पुत्र राम को, जिसका अभी अभी विवाह भी हुआ है, उसे अपने से दूर वन में दुर्गम की ओर प्रस्थान करने के लिए कैसे कह दें..

माता कैकई बहुत दुविधा में पड़ गईं, तभी उन्हें अपने दो वरदानों की याद आई...

उन्होंने सोचा, राजा दशरथ से दो वरदान मांग ले, इससे एक तो यह होगा कि कोई नहीं कहेगा कि अपने पुत्र की चिंता नहीं.. दूसरा उन्हें यह विदित था कि राजा दशरथ, राम से अत्याधिक स्नेह करते हैं तो वो राम को वनवास जाने को कहेंगे नहीं... इस तरह राम को भी वनवास नहीं जाना होगा.. इस तरह से बिना अधिक प्रयास के सारे रिश्ते प्रेम के अटूट बंधन में बंधे रहेंगे...

इसी उधेड़बुन के साथ माता कैकई, कोप भवन में चलीं गईं। जब राजा दशरथ को यह पता चला, तो वो अपनी प्रिय रानी के पास पहुंच गए।

फिर वही हुआ जो आप सबको पता है...

राजा दशरथ कैकई को समझाते रहे कि राम के वनवास के अलावा कोई और वर मांग लें, पर वो नहीं मानीं..

जब बात श्री राम जी को पता चली, तो वो वहां पहुंच गए, जहां पिता दशरथ व माता कैकई थे।

उनके वहां पहुंच जाने के बाद भी ना पिता ने उनसे वनवास जाने को कहा, ना माता ने... क्योंकि दोनों में से कोई नहीं चाहता था कि राम वनवास जाएं...

जब कोई बच्चा अपने मां-पिता के द्वारा दी गई आज्ञा का मान ना रखे तो वह दुष्ट है, निर्लज्ज है...

जब कोई बच्चा अपने मां-पिता के द्वारा दी गई आज्ञा को शिरोधार्य करें, तो वह आदर्श.. 

पर जब आज्ञा दी ही नहीं गई हो, बस एक प्रस्ताव भर हो, उसे आज्ञा समझ कर शिरोधार्य कर लिया जाए, तो वो हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम..

दोनों में से किसी के भी आज्ञा दिए बिना, श्रीराम ने उनकी आज्ञा को यह कहकर स्वीकार कर लिया कि प्राण जाए पर वचन ना जाए...

उन्होंने इस आज्ञा को शिरोधार्य करते समय यह नहीं सोचा कि, महलों में रहने वाले, तपोवन में कैसे जीवन यापन करेंगे? जिसके एक इशारे से पूरे राज्य का प्रत्येक नागरिक उनकी सेवा में तत्पर हो जाता था, वो अपने हर काम कैसे करेंगे?

कैसे छप्पन भोग को त्याग कर, कंदमूल फल खाएंगे? सुकोमल शैय्या पर सोने वाले, कुशा के बिछौने में कैसे सोएंगे?

उनके लिए माता पिता से बढ़कर, कुछ था ही नहीं..

जबकि बात कुछ दिन, कुछ महीने और कुछ साल की नहीं, बल्कि 14 साल के लिए वनवास था... 

पर उन्होंने ना केवल पूरे 14 वर्ष का वनवास किया, बल्कि सहर्ष पूरा समय व्यतीत किया वो भी माता-पिता को वनवास भेजे जाने पर कोई अपशब्द कहे बिना....

प्रभू श्रीराम के तो हर दृष्टांत से यह विदित होता है कि वो मर्यादा पुरुषोत्तम थे। 

पर आज के इस विरासत अंक से यदि हम लोग भी अपने माता-पिता को वो मान दे सकें, जिसके वह अधिकारी हैं तो भले ही मर्यादा पुरुषोत्तम ना बन सकें, पर आदर्श पुत्र और पुत्री तो अवश्य बन सकते हैं...

जय श्री राम 🙏🏻🚩 

आप सभी को चैत्र नवरात्र व रामनवमी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🏻💐