Monday, 18 March 2019

Story Of Life : बस एक बार


Holi special

बस एक बार


रीता की नयी नयी शादी हुई थी, सब कुछ बहुत अच्छा था। भरा 
पूरा परिवार था, सास-ससुर, जेठ-जेठानी, ननद, देवर और साथ ही में दो छोटे चुनमुन, गुनगुन भी। रीता का परिवार भी ऐसा ही था, माँ-पापा, भाई-भाभी, बहन सब ही थे। इसलिए रीता को अपना ससुराल बहुत ही अच्छा लग रहा था। 
    सब में बहुत प्यार था, सब एक दूसरे के लिए जान छिड़कते थे। साथ ही उनके घर में सब बड़ों को भी बड़ा सम्मान दिया जाता था। किसी बड़े ने कुछ कह दिया, तो बस उसके बाद कोई भी if and but नहीं लगाया जाता था।
    इस हँसते खेलते, प्यार-सम्मान वाले परिवार में कब इतने दिन निकल गए, कि दिवाली आ गयी, रीता को ये पता ही नहीं चला। सारा घर दिवाली की तैयारी में जुटा था, सबको काम सौंप दिये गए थे, कोई सफाई कर रहा था, तो कोई बाज़ार के काम निपटा रहा था, कोई घर को सजाने के काम में लगा हुआ था, और कोई पकवान बना रहा था।
    रीता की अपने ससुराल की पहली दिवाली थी। वो खाना बनाने में बहुत ही निपुण थी, अतः उसे पकवान बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी। वो भी एक से एक मिठाई और नमकीन बनाने में लगी हुई थी। 
    जब रीता ने सबको taste करने को दिया, तो उसके देवर ने बोला, भाभी हमारे पूरे घर में तो छोड़ दीजिये, चार घर दूर तक आपके बनाए हुए पकवानों की महक उड़ रही है। जब लोग खाएँगे, तब सामने वाले हलवाई की तो दुकान ही बंद हो जाएगी। तैयार हो जाइए, भाभी आपको मिठाई और नमकीन के बहुत order मिलने वाले हैं। 
    उसकी इस बात से सारा घर हँसने लगा। सासु माँ ने बड़े प्यार से रीता के सर पर हाथ फेरते हुए बोला, हम अन्नपूर्णा घर लाये हैं। 
    रात में आज जब रीता माँ से बात कर रही थी, तो उसकी आंखे नम थी। माँ फोन पर ही समझ गयीं, पूछने लगीं, क्या हुआ बेटा, आज कुछ उदास हो?

    हाँ माँ, आज मुझे आप सब की बहुत याद आ रही है, हम सब दिवाली की कितनी तैयारी करते थे, पता नहीं आपने सारी मिठाई बनाई, कि नहीं? 
    उतनी नहीं बनाई लाडो, जितनी तुम बनाती हो। पापा भी कह रहे थे, मेरी लाडो चली गयी है, अब कहाँ उतनी मिठाई नमकीन मिलेंगे।
    माँ, मैं आ जाऊँनहीं बेटा, अब तुम्हारी शादी हो गयी है, तुम उस घर की लक्ष्मी हो। वहीं सब त्योहार करना है।
    माँ, मैं किसी भी त्योहार में नहीं आऊँगीआएगी ना, लाडो, पहली होली में तो बेटी मायके ही आती है, जिससे सबको पता चले कि इस घर की बेटी की ज़िंदगी खुशियों के रंगों से भरी हुई है।
    सच माँ, रीता खुश होते हुए बोली, पहली होली मायके की होती है, तो मैं तब जरूर से आऊँगी, मुझे होली का इंतज़ार रहेगा।
    दिवाली वाले दिन रीता बहुत खुश थी, उस ने सबके साथ खूब मन से पूजा की, उसको VIP treatment मिल रहा था, वो नई दुल्हन जो थी।
    दिन बीतते गए, होली भी आने वाली थी। रीता ने अपनी सारी planning शुरू कर दी, कि वो कभी अपने मायके वालों के साथ मिल कर अपने पति रजत के खूब रंग लगाएगी, कभी रजत की ढाल बन जाएगी।
    उधर रीता के मायके में भी खूब ज़ोर शोर से बेटी दामाद के आगमन की तैयारी चल रही थी। रीता के पापा ने, रजत के पिता जी से बात की। समधी जी, होली आने वाली है, होलाष्टक लगने से पहले मैं रीता के भाई को उसे लेने भेज देता हूँ। होली वाले दिन दामाद जी आ जाएंगे, तो रीता उनके साथ वापस लौट जाएगी। बताइये, कब भेजूँ?
    रीता के ससुर बोले, हमारे यहाँ की बहुएँ, त्योहार घर का ही मनाती हैं।
    रीता के पापा बोले, जी बिल्कुल अपने ससुराल में ही सारे त्योहार मनाएगी। पर ये तो पहली होली है, इसमे तो सभी लड़कियाँ अपने मायके ही आती हैं। बस एक बार की तो बात है। 
    हम नहीं भेजते हैं, एक बार भी नहीं, रीता के ससुर ने बोला। 
रीता की भाभी वहीं खड़ी सब बात सुन रही थी, बोली मैं बात कर लूँ?
    रीता की भाभी ने भी कहा, मैं भी अपने मायके गयी थी, आप रीता को please भेज दीजिये। हम सब उसका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं।
    रीता के ससुर ने साफ बोल दिया, तुम गयी होगी, हमारे यहाँ नहीं भेजते, इसलिए रीता नहीं आएगी।
    रीता की सास को जब पता चला, तो वो भी बोलीं, रीता मायके चली जाएगी, तो हमारा त्योहार तो सूना हो जाएगा। बाकी सभी ससुराल वाले भी इसी पक्ष में थे। ।
    रीता, सोचने लगी, जब तक उसकी शादी नहीं हुई थी, तब तक क्या उसकी ससुराल के सारे त्योहार सूने थे? नहीं थे, तो अब कैसे हो गए? और क्या उसके मायके के त्योहार सूने हो रहे हैं, उसका कोई मोल नहीं है? पर अब तक वो भी जान चुकी थी, उसके ससुराल में बड़े जो बोल देते हैं, वो नहीं बदलता है। रीता होली में अपने मायके नहीं जा पाई।
    उसने होली में सब अच्छे से किया, पकवान बनाए, रंग खेला पर वो खुश नहीं थी।
    वक़्त गुजरा, उसकी ननद नेहा की शादी हो गयी, कुछ दिन बाद फिर होली आई, रीता के ससुराल में सभी नेहा के होली में आने की तैयारी ज़ोर-शोर से कर रहे थे।
    रीता के ससुर ने जब नेहा के ससुराल में फोन किया, कि होली में नेहा को भेज दें, पहली होली है, पर उन्होंने इन्कार कर दिया।
    उनका इंकार सुन कर सभी दुखी हो गए। तब रीता बोली, पापा जी मैं एक बार बात कर लूँ।
    रीता के ससुर ने फोन रीता को दे दिया। रीता ने फोन पर नेहा के ससुर से कहा, आप सही कह रहे हैं, अगर  बहू त्योहार में 
घर पर ना रहे, तो त्योहार सूना हो जाता है। रीता की ऐसी बात सुन कर उसे सभी क्रोध से देख रहे थे। कि ये बात बना रही है, या बिगाड़ रही है?
    रीता बात करती जा रही थी, पर आप सोचें, हमने तो अपनी बेटी देकर, अपने सारे त्योहार सूने कर लिए। क्या बस एक बार त्योहार में हम अपने बेटी दामाद के साथ रौनक नहीं ला सकते? क्या हमारी बेटी इतनी पराई हो गयी है, कि बस एक बार भी अपने मायके में खुशियों के रंग नहीं भर सकती।
    बस एक बार की ही बात है, उसके बाद के तो सारे त्योहार वो आपके साथ ही मनाएगी।
    रीता की ऐसी बात सुन कर नेहा के ससुर ने उसे मायके भेज 
दिया। त्योहार बहुत धूम से मनाया गया। आज रीता के ससुराल में सबको पता चला था, बेटी की मायके की पहली होली क्या होती है। 
    रीता के ससुर को अपनी गलती का एहसास हो गया, उन्होंने रीता और उसकी जेठानी के मायके में बात कर के माफी मांगी। और कहा कि अब एक एक होली, उनकी दोनों बहुएं अपने मायके में जरूर से मनाएंगी।